तेलंगाना में CJI गवई के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी: 'विष्णु मूर्ति' को लेकर फैसले से नाराज़ होकर दो वकीलों ने व्हाट्सएप ग्रुप में निकाली भड़ास

FIR दर्ज लेकिन रिमांड नहीं, जमानत पर रिहा हुए
दो वकीलों ने व्हाट्सएप ग्रुप में CJI गवई को निशाना बनाते हुए जातिवादी और अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
दो वकीलों ने व्हाट्सएप ग्रुप में CJI गवई को निशाना बनाते हुए जातिवादी और अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
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हैदराबाद- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई पर हाल ही में एक सीनियर वकील द्वारा जूते फेंकने की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। लेकिन तेलंगाना के सिद्धिपेट में इससे दो हफ्ते पहले ही एक और शर्मनाक घटना घटी, जहां दो वकीलों ने व्हाट्सएप ग्रुप में CJI गवई को निशाना बनाते हुए जातिवादी और अपमानजनक टिप्पणियां कीं। उनकी दलित पहचान को निशाना बनाते हुए, टिप्पणियों में CJI को 'कुत्ता' जैसे शब्दों से संबोधित किया गया। सिद्धिपेट पुलिस ने दोनों वकीलों के खिलाफ FIR दर्ज की, लेकिन वे व्यक्तिगत जमानत पर रिहा हो गए।

यह मामला 18 सितंबर को शुरू हुआ, जब एक वकील राधारमन दास ने व्हाट्सएप ग्रुप में एक खबर शेयर की। खबर CJI गवई की अगुवाई वाली बेंच के फैसले के बारे में थी, जिसमें एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में एक कैथोलिक पादरी की सजा को स्थगित कर दिया गया था। दास ने अपनी पोस्ट में लिखा, "शॉकिंग! भगवान विष्णु और हिंदुओं का अपमान करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के दोषी कैथोलिक पादरी की सजा को सस्पेंड कर दिया।" यह पोस्ट सिद्धिपेट के वकीलों के दो व्हाट्सएप ग्रुप्स- 'एडवो फ्रेंड्स (सिद्धिपेट डिस्ट्रिक्ट)' और 'डिस्ट्रिक्ट बीएएस (नियर एंड डियर)' में शेयर की गई।

इसी पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए सिद्धिपेट मुंसिफ कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील प्रोड्डुटूरी श्रीकांत ने तेलुगु भाषा में लिखा, "कनकापु सिंहासनमुना..."। यह वाक्य 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध तेलुगु कवि बद्देना भूपालुडु के 'सुमति सतकम' काव्य से लिया गया है। सतही तौर पर यह सामान्य बात लगती है, लेकिन पूरा संदर्भ देखें तो यह बेहद अपमानजनक है। कविता का मूल अर्थ है कि अगर एक कुत्ते को सोने के सिंहासन पर बिठा दिया जाए और अच्छे मुहूर्त में राज्याभिषेक कर दिया जाए, तो भी वह अपनी आदतें नहीं छोड़ेगा। कविता का नैतिक संदेश यह है कि निचली जाति या 'नीच' व्यक्ति को कितना भी ऊंचा उठा लो, वह अपनी मूल प्रकृति नहीं बदल सकता।

दो वकीलों ने व्हाट्सएप ग्रुप में CJI गवई को निशाना बनाते हुए जातिवादी और अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
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श्रीकांत ने अपनी टिप्पणी को और स्पष्ट करते हुए जोड़ा, "पुराने दिनों में गांवों के कुत्ते गोबर खाया करते थे। कल्पना भी नहीं की थी कि वे पुराने कुत्ते वापस आ जाएंगे। अभी दिल्ली में एक ऐसा ही कुत्ता मिल गया है।" उन्होंने CJI का नाम लिए बिना उन्हें सीधे 'कुत्ता' कहा, जो उनकी दलित पृष्ठभूमि पर सीधा प्रहार था।

दूसरी ओर, दूसरे आरोपी वकील एम. मुरली मोहन राव ने भी ग्रुप में लिखा, "हाल ही में इस कुत्ते को वहां दो साल के लिए बिठा दिया गया है। इस कुत्ते की आदत है कि यह बुद्धिमानी वाली बकवास करता रहता है।" ये टिप्पणियां न केवल CJI का व्यक्तिगत अपमान हैं, बल्कि पूरी दलित समुदाय की अस्तित्व पर सवाल उठाती हैं।

इन मैसेजों के वकीलों के ग्रुप में शेयर होते ही भूचाल उठ गया। सिद्धिपेट कोर्ट के कई वकीलों ने इन टिप्पणियों की कड़ी निंदा की और CJI के सम्मान में विरोध प्रदर्शन किए। सिद्धिपेट के वकील कर्रोल्ला रवि बाबू ने 21 सितंबर को सिद्धिपेट वन टाउन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रोड्डुटूरी श्रीकांत और एम. मुरली मोहन राव ने दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले CJI गवई के खिलाफ अत्याचार किए हैं। पुलिस ने तुरंत FIR दर्ज की, लेकिन दोनों आरोपी वकीलों को रिमांड के बिना व्यक्तिगत जमानत पर रिहा कर दिया गया।

कई लोग मानते हैं कि CJI की दलित पहचान और एक धार्मिक मामले पर उनके फैसले ने उन्हें निशाना बनाया। सिद्धिपेट की यह घटना उसी कड़ी का हिस्सा लगती है, जहां ऊपरी जाति के कुछ वकील CJI को निशाना बना रहे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व के पैरोकार बनकर ये लोग वकीलों के ग्रुप में जहर घोल रहे हैं। कर्रोल्ला रवि बाबू ने कहा, "CJI गवई को अपमानित करने की साजिश देश के उच्चतम राजनीतिक स्तर पर हो रही है। इसका मकसद न्यायपालिका में डर पैदा करना है।"

उन्होंने कहा, "ये लोग CJI को निशाना बनाकर पूरे दलित समुदाय को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। व्हाट्सएप ग्रुप में ये संदेश फैलाकर वे हिंदुत्व का जहर बो रहे हैं।" सिद्धिपेट कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले कई वकीलों ने भी इसकी निंदा की। एक वकील ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "ये टिप्पणियां पढ़कर हम दंग रह गए। CJI जैसे विद्वान व्यक्ति का अपमान करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानवता के खिलाफ है।"

फिलहाल, दोनों आरोपी वकील जमानत पर बाहर हैं, लेकिन मामला अभी चल रहा है। सिद्धिपेट पुलिस ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये जमानत इतनी आसानी से मिलना चाहिए? कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि जातिवादी टिप्पणियों पर सख्ती की जरूरत है। दलित संगठनों ने भी इसकी कड़ी निंदा की है और मांग की है कि दोषियों को सजा मिले।

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