
चंडीगढ़- पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की मौत के मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या का दबाव डालना) के आरोप पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या इस तरह के आरोपों से आत्महत्या का दबाव डालने का मामला बनता है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। फिलहाल जांच चंडीगढ़ पुलिस की एक विशेष जांच दल (SIT) कर रही है।
लॉ चक्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि कुमार के साथ व्यवस्थित रूप से पक्षपात किया गया था। हालांकि कोर्ट ने सीधे तौर पर आत्महत्या का दबाव डालने के आरोप की संभावना पर सवाल उठाया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, "आरोपों (जातिगत उत्पीड़न) की गंभीरता को देखते हुए, क्या इस तरह के आरोपों से धारा 306 (आत्महया का दबाव डालना) का मामला बनता है? हमें सुप्रीम कोर्ट का एक भी फैसला बताइए जहां इस तरह के आरोपों के आधार पर सजा हुई हो।"
कोर्ट ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा, "मात्र गाली-गलौज... यहां तक कि अगर कोई किसी को थप्पड़ मार दे, तो भी धारा 306 का मामला नहीं बनता, सुप्रीम कोर्ट ने यही कहा है।"
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मामला संवेदनशील है और इसमें वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं, इसलिए स्वतंत्र जांच जरूरी है। वकील ने तर्क दिया कि यह मामला वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ व्यवस्थागत पीड़न को दर्शाता है। उन्होंने सीबीआई को जांच सौंपने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की दिशा-निर्देश पेश करते हुए कहा कि इस व्यवस्था में शीर्ष स्तर के अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि कुमार की मौत की जांच चंडीगढ़ पुलिस कर रही है, जबकि बाद में आत्महत्याकरने वाले एक अन्य पुलिस अधिकारी संदीप लठार की मौत की जांच हरियाणा पुलिस कर रही है, जिससे जांच में असंगति आ सकती है। वकील ने कहा, "उन्होंने (पूरन कुमार) आरोप लगाया था कि उनके साथ व्यवस्थित रूप से पीड़न किया गया... उन्होंने जिन अधिकारियों के नाम लिए हैं, उनमें से कई को तो स्थानांतरित भी नहीं किया गया है।"
हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि जांच हरियाणा पुलिस नहीं, बल्कि चंडीगढ़ पुलिस कर रही है, इसलिए पक्षपात का कोई स्पष्ट मुद्दा नहीं है। मुख्य न्यायाधीश नागू ने कहा, "अगर यह हरियाणा कर रहा होता, तो बात अलग होती।" अदालत ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश जारी करने से पहले, चंडीगढ़ पुलिस की एसआईटी द्वारा की जा रही वर्तमान जांच में कोई ठोस खामी दिखाने पर जोर दिया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह जांच में किसी त्रुटि या चूक को इंगित करें। कोर्ट ने कहा, "CBI पहले से ही काफी अतिभारित है। बिना सोचे-समझे जांच स्थानांतरित करने का आदेश नहीं देना चाहिए... आपको जांच में कोई विसंगति बतानी होगी।" न्यायपीठ ने ऐसे ठोस सबूत मांगे जो यह दर्शाते हों कि पुलिस एजेंसियां निष्पक्ष और निष्पक्ष जांच नहीं कर रही हैं।
चंडीगढ़ पुलिस की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि SIT में तीन आईपीएस अधिकारी हैं और मामले को स्थानांतरित करने का कोई कारण नहीं है। हरियाणा सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त एडवोकेट जनरल दीपक बाल्यान ने याचिका का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता का मामले से कोई सीधा संबंध नहीं है।
अंत में कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी और याचिकाकर्ता के वकील को अपने तर्क तैयार करने और अधिक सबूत पेश करने के लिए अतिरिक्त समय दिया। अगली सुनवाई में यह तय होने की उम्मीद है कि मामला चंडीगढ़ पुलिस के पास ही रहेगा या आगे की जांच के लिए इसे CBI को सौंप दिया जाएगा।
हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित उनके आवास पर मृत पाए गये थे।
उन्होंने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी और एक सुसाइड नोट छोड़ा। इस नोट में उन्होंने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) शत्रुजीत कपूर और तत्कालीन रोहतक के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नरेंद्र बिजारनिया सहित वरिष्ठ अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव और लक्षित होने का आरोप लगाया।
कुमार की पत्नी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमनीत अपने पति के लिए न्याय की मांग कर रही हैं। पूरन कुमार दलित समुदाय से थे। जनाक्रोश के बाद, डीजीपी कपूर और एसपी बिजारनिया दोनों को ही उनके पदों से अस्थायी रूप से हटा दिया गया था।
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