भिवानी दलित छात्रा आत्महत्या मामला: पुलिस की जांच पर NCSC सख्त, हैंडराइटिंग मिसमैच के खुलासे ने केस में लाया नया मोड़

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने पुलिस की जांच को बताया लापरवाही, छात्रा की उत्तर पुस्तिका में हैंडराइटिंग न मिलने पर एफआईआर में जुड़ीं नई धाराएं, विभागीय जांच की सिफारिश।
आत्महत्या
आत्महत्या (सांकेतिक तस्वीर)
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हरियाणा/भिवानी: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने भिवानी जिले में पिछले साल हुई एक 22 वर्षीय दलित छात्रा की आत्महत्या के मामले में स्थानीय पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। आयोग ने स्पष्ट किया है कि पुलिस अधिकारियों ने इस मामले की जांच में लापरवाही बरती है। आयोग ने सिफारिश की है कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ एससी/एसटी (पीओए) अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों के तहत विभागीय जांच शुरू की जाए।

आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाना के समक्ष 11 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान यह मामला जोर-शोर से उठा। आयोग ने मामले की गंभीरता को देखते हुए गठित विशेष जांच दल (SIT) को निर्देश दिया है कि वह समय सीमा के भीतर और निष्पक्ष तरीके से अपनी जांच पूरी करे। इसके साथ ही, आयोग ने 15 दिनों के भीतर 'एक्शन टेकन रिपोर्ट' (की गई कार्रवाई की रिपोर्ट) तलब की है।

हैंडराइटिंग को लेकर चौंकाने वाला खुलासा

सुनवाई के दौरान एक बेहद चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। डीएसपी (राज्य अपराध शाखा, फरीदाबाद) विकास कुमार ने 11 दिसंबर को आयोग को जानकारी दी कि मृतक छात्रा की हैंडराइटिंग उसकी उत्तर पुस्तिकाओं (Answer Sheets) से मेल नहीं खा रही है।

डीएसपी ने बताया, "सीएफएसएल (CFSL) रिपोर्ट के अनुसार, छात्रा की लिखावट का मिलान उसकी उत्तर पुस्तिका से नहीं हुआ है। इस खुलासे के बाद एफआईआर में बीएनएस (BNS) की धारा 338, 336 और 340 को भी जोड़ा गया है। मामले की तह तक जाने के लिए एक एसआईटी गठित की गई है जो फिलहाल जांच कर रही है।"

क्या था पूरा मामला?

पिछले साल दिसंबर में बीए पांचवें सेमेस्टर की इस 22 वर्षीय छात्रा ने आत्महत्या कर ली थी। आरोप था कि फीस जमा न होने के कारण कॉलेज प्रशासन ने उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी थी, जिससे वह मानसिक तनाव में थी। हालांकि, कॉलेज प्रबंधन ने छात्रा के परिवार द्वारा लगाए गए इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।

इस मामले ने राजनीतिक तूल भी पकड़ा था, जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने लोहारू से कांग्रेस विधायक राजवीर फर्तिया पर संस्थान चलाने का आरोप लगाया था। हालांकि, विधायक ने स्पष्ट किया था कि कॉलेज का कामकाज उनके बहनोई हनुमान देखते हैं।

पिछली जांच पर उठे थे सवाल

इससे पहले 14 मई को आयोग के समक्ष इस केस की सुनवाई हुई थी। उस समय छात्रा के पिता ने कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल पर अपनी बेटी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था। पिता का कहना था कि बकाया फीस के लिए उनकी बेटी को बार-बार परेशान किया गया और पांच में से दो पेपर देने से रोक दिया गया। उन्होंने आयोग से कहा था, "संस्थान द्वारा किए गए अपमान और आर्थिक दबाव ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, जिसके कारण उसने यह कदम उठाया।"

हालांकि, उस समय के जांच अधिकारी (तत्कालीन आईओ) विवेक चौधरी ने अपनी रिपोर्ट में एक अलग ही कहानी बयां की थी। उन्होंने दावा किया था कि छात्रा ने अपने माता-पिता को आरोपी राहुल के साथ अपने "रिश्ते" के बारे में पता चलने के बाद डर के मारे यह कदम उठाया। पुलिस ने तब कॉलेज निदेशक हनुमान, उनके बेटे राहुल और प्रिंसिपल के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई सबूत न मिलने की बात कही थी। इसके बाद 23 मार्च को आरोपियों को बरी करने की अर्जी दी गई थी, जिस पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया था।

आयोग ने पुरानी जांच को माना था 'असंतोषजनक'

14 मई की सुनवाई में आयोग ने पुलिस की जांच को असंतोषजनक और प्रक्रियात्मक रूप से अधूरा पाया था। आयोग ने तब आदेश दिया था कि उत्तर पुस्तिकाओं, हॉल टिकट, बस टिकट और कॉल डिटेल्स की फोरेंसिक जांच (CFSL) कराई जाए। आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि फोरेंसिक रिपोर्ट आने तक कोर्ट में कोई क्लोजर रिपोर्ट दाखिल नहीं की जाएगी।

आयोग ने यह भी पाया था कि मामले की संवेदनशीलता के बावजूद उत्तर पुस्तिकाओं की लिखावट की जांच जैसे महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए गए थे। आयोग की सख्ती के बाद जांच अधिकारी को बदला गया और फिर से विवेचना शुरू हुई।

नई धाराओं के साथ जांच जारी

डीएसपी विकास की अध्यक्षता वाली एसआईटी ने 5 दिसंबर को भिवानी कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट सौंपी। इसमें पुष्टि की गई कि 13 अगस्त को छात्रा की डायरी और पांचवें सेमेस्टर की उत्तर पुस्तिकाएं दिल्ली की फॉरेंसिक लैब भेजी गई थीं। 8 सितंबर को मिली रिपोर्ट में यह साफ हो गया कि लिखावट छात्रा की नहीं थी।

इस रिपोर्ट के आधार पर हनुमान और उनके बेटे राहुल के खिलाफ दर्ज एफआईआर (जो पहले बीएनएस की धारा 108, 3(5) और 238-बी के तहत थी) में अब नई धाराएं जोड़ी गई हैं और मामले की गहनता से जांच जारी है।

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