बुद्धिस्ट वेडिंग्स इन इण्डिया : अग्नि की बजाय नवयुगल मान रहे बुद्ध -भीम को विवाह का साक्षी !

बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले अन्य परंपराओं के विपरीत, विवाह को एक धर्मनिरपेक्ष विषय मानते हैं, जिसका अर्थ है कि यह व्यक्ति की पसंद है और संस्कार नहीं है। समारोह में फिजूलखर्ची और दहेज का लेनदेन नही होता है.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ और रवीना
सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ और रवीना फाइल फोटो

दलित समुदायों पर देशभर में हो रहे अत्याचारों, बारातों पर पथराव, दलित दूल्हों को घोड़ी से उतारने की चिंताजनक घटनाओं के बीच एक हैरान करने वाला लेकिन सुखद परिवर्तन देखने में आ रहा है। दलित समाज में युवा पीढ़ी विवाह के लिए हिन्दू रीति रिवाजों की बजाय बौद्ध परंपरा को अपना रही है। देश के कई भागों में दलित समुदायों में यह बदलाव हो रहा है, लेकिन सबसे ज्यादा संख्या में बौद्ध विवाह महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों मे हो रहे हैं, जिनकी संख्या पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है। सामूहिक विवाह समारोह आयोजन भी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रहे हैं.

द मूकनायक ने गुजरात के विभिन्न शहरों में युगलों से बात की और यह जाना कि आखिर क्या वजह है कि युवा पीढ़ी धूमधाम वाली हिन्दू वैवाहिक रिवाजों से विमुख होकर बौद्ध रीति से दांपत्य जीवन की शुरुआत कर रहे हैं। 

राजकोट में उपलेटा तहसील के समाधियाला गांव के 27 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ चौहान की शादी 2022 में बौद्ध संस्कार अनुसार हुई। सिद्धार्थ बताते हैं कि 28 साल पहले उनके माता-पिता की शादी भी बुद्धिस्ट रीति से हुई और उससे भी पहले उसके दादा-दादी की शादी भी ऐसे ही हुई। " बुद्धिस्ट वेडिंग बहुत सिंपल होती है, इसमें कोई सिंदूर मंगलसूत्र की रस्में नहीं होती। दूल्हा-दुल्हन सिर्फ एक दूसरे को फूल माला पहनाते हैं। रस्मों के नाम पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा और बाबा साहेब की तस्वीर के समक्ष नमन करके पंचशील और त्रिशरण की प्रतिज्ञा लेते हैं। इसके साथ ही बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञाएं लेते हैं जिसमें नशे से दूर रहना, कुरीतियों और अंधविश्वास का त्याग करना, भेदभाव नहीं करना, करुणा दया का भाव रखना, नारी का सम्मान आदि है। "

सिद्धार्थ की पत्नी रवीना जूनागढ़ की हैं और उनका परिवार हिन्दू रीति का पालन करता आया है लेकिन सिद्दार्थ के साथ शादी तय होने पर वर पक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया था कि विवाह बौद्ध रीति से किया जाएगा। सिद्धार्थ बताते हैं " हिन्दू रीति में पत्नी पति को परमेश्वर मानकर पांव छूती है, दूल्हे के पांव धोए जाते हैं.इसमें पत्नी का सम्मान और समता कहाँ है? क्या ये रस्में लड़की पक्ष को कमतर नहीं बताती हैं, मुझे यह स्वीकार नहीं था और मेरे परिवार में भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता है। मेरी दादी नाथीमा अभी 95 वर्ष की हैं, लेकिन पूरा परिवार उनकी छत्रछाया में एकजुट रहता है"। सिद्धार्थ की पत्नी रवीना कहती हैं , उन्होने बौद्ध रीति का विवाह कभी देखा नहीं था क्योंकि उनके घर में सभी शादियां हिन्दू संस्कार अनुरूप ही हुए लेकिन स्वयं अपनी शादी एक अलग तरीके से किये जाने से काफी उत्सुकता थी। ससुराल में आकर रवीना भी पूर्ण रूप से बौद्ध जीवन शैली में रच बस गयी हैं. वो कहती हैं " बौद्ध विवाह शैली ही नही बल्कि इस धर्म की सिखावनी ही अद्भुत है. आडम्बर , नशा , फिजूलखर्ची , भेदभाव , अंधविश्वास से दूर रहकर शिक्षा, समानता और सभी के साथ सम्मानपूर्वक तरह का आचरण करना इस धर्म का मूल है जो आज समाज में सबसे जरूरी है."

राजस्थान कैडर की आईएएस टीना डाबी का विवाह पिछले साल आईएएस प्रदीप गवांडे के साथ बौद्ध रीति से हुआ
राजस्थान कैडर की आईएएस टीना डाबी का विवाह पिछले साल आईएएस प्रदीप गवांडे के साथ बौद्ध रीति से हुआटीना डाबी

सुर्ख लाल जोड़े की बजाय सादी सफेद साड़ी

बौद्ध रीति से विवाह सादगी का प्रतीक है जिसमे हिन्दू विवाह संस्कार की तरह अनेक रस्में नही होती.अमरावती, महाराष्ट्र के भन्ते आनंद ने द मूकनायक को बताया कि बुद्ध धर्म में सफेद रंग को परिशुद्ध माना जाता है। चित्त, काया और वाणी को यह साफ करता है। इसलिए शादी में दुल्हन लाल रंग के जोड़े की बजाय सफेद साडी पहनती हैं और दूल्हा सफेद रंग की शेरवानी या कुर्ता.

बुद्धिस्ट रीति से 2013 में दक्षा का विवाह अहमदाबाद के जयसुख के साथ जब सम्पन्न हुआ तो वह उनके गांव की पहली बुद्धिस्ट वेडिंग थी। दक्षा के साथ उनकी बहन की भी शादी उसी दिन एक ही जगह दूसरे मंडप में हिन्दू संस्कार से हुई। स्टेशनरी व्यवसाय और एलआईसी अभिकर्ता 34 वर्षीय जयसुख द मूकनायक को बताते हैं कि उनके परिवार में भी सभी हिन्दू धर्म को मानते थे लेकिन वे स्वयं 14-15 साल की उम्र से ही बौद्ध धर्म मे विश्वास रखते थे। जयसुख कहते हैं, " मैंने अपने पिता के जरिये अपने होने वाले ससुर को कह दिया था कि अगर बौद्ध रीति से शादी को तैयार हो तो ही बात पक्की समझना। वे चट मान गए। बौद्ध परंपरा से शादी कभी उनके परिवार तो क्या गांव में हुई नहीं थी। ऐसे में दो मंडप बने, एक मे मेरी साली साहिबा का हिन्दू रीति से पाणिग्रहण हुआ और दूसरी तरफ मैंने और दक्षा ने बौद्ध नियम से दाम्पत्य जीवन मे प्रवेश किया। मजे की बात यह है कि बौद्ध रीति के विवाह को देखने के लिए पूरा गांव जमा हो गया जिसमें हिन्दू मुसलमान सभी जाति के लोग शामिल हुए और हमें आशीर्वाद दिया। " जयसुख भाई वर्ष 2002 से ही बौद्ध विचारधारा में आ गए थे लेकिन उन्होंने सपरिवार बौध धर्म का अंगीकार इस साल अप्रेल माह में स्वयं सैनिक दल द्वारा अहमदाबाद में आयोजित समारोह में किया जिसमे पचास हजार से भी अधिक लोगों ने हिन्दू धर्म का परित्याग किया था. वे कहते हैं बौद्ध धर्मं के मूल में अपने आचरण में बदलाव लाना है, बाबा साहब और गौतं बुद्ध की शिक्षा को अपने जीवन में उतारना है .

जयसुख भाई कहते हैं उनकी पांच बरस की बेटी है। " ना मैंने अपनी गर्भवती पत्नी की गोद भराई की रस्म करवाई ना ही अपनी बच्ची के कभी तिलक डोरा बांधा। पहली होली पर 'ढूंढ' की रस्म के लिए भी मैंने मनाही कर दी। सब बेकार की बातों पर पैसा बहाने की बजाय मैं समाज मे जरूरतमंद भाई बहनों को इलाज या शिक्षा के लिए मदद करने का प्रयास करता हूँ। "

स्वयं सैनिक दल के सक्रिय कार्यकर्ता रागेश कहते हैं बौद्ध धर्म को अंगीकार करने से पहले और उसके बाद सभी दलित परिवार हिन्दू रस्मों, पर्व त्योहारों का पूरी तरह परित्याग कर देते हैं। बाबा साहेब की प्रतिज्ञाओं में मूर्ति पूजा, हिन्दू देवी देवता में आस्था नहीं रखना, अंधविश्वास से दूर रहना प्रमुख शर्त है। बौद्ध धर्म मे विज्ञान, शिक्षा, समावेशी और समता की बात होती है, इसमें ऊंच नीच का भेदभाव नहीं होता है। 

विवाह में वर-वधू बुद्ध और बाबा साहेब की तस्वीर के समक्ष पंचशील और त्रिशरण की प्रतिज्ञा लेते हैं।
विवाह में वर-वधू बुद्ध और बाबा साहेब की तस्वीर के समक्ष पंचशील और त्रिशरण की प्रतिज्ञा लेते हैं।

विशद हड़मतिया में 3 दशकों से बौद्ध परंपरा का निर्वहन

जूनागढ़ के तालुका भेसन में विशद हड़मतिया गांव में 75 दलित परिवार रहते हैं जो पिछले 30 सालों से बौद्ध रीति रिवाजों का ही पालन करते आये हैं। हाल ही 21 मई को इन सभी परिवारों के 500 लोगों के बौद्ध धर्म को औपचारिक रूप से अपनाया भी है। गांव मव बौद्ध धर्म का प्रसार करने वाले मनसुख भाई वाघेला बताते हैं कि गांव में शादी ब्याह सभी कुछ बौद्ध परंपरा अनुसार ही आयोजित होते हैं।  यानी विवाह हो या निर्वाण, सब कुछ- बुद्धम शरणम गच्छामि। मनसुख भाई कहते हैं बौद्ध धर्म में फिजूल खर्ची को बढ़ावा नही दिया जाता। दिखावे और आडंबरों के लिए कोई जगह नही होने से सभी समारोह अत्यन्त सादगी से पूर्ण होते हैं। शादी में जो भी पैसा पंडितों दान दक्षिणा अनुष्ठान और हवन में खर्च होता है वह सभी वर वधु के काम आता है, इसी तरह किसी घर मे मौत होने पर कर्म काण्ड में पैसे नहीं खर्च किये जाते जिससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर बोझ नहीं पड़ता है। त्रिशरण, पंचशील वाचन के साथ बुद्धम शरणम गच्छामि मंत्र जाप होता है, यही सादगी अब हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुकी है। मनसुख भाई कहते हैं बौद्ध रीति को अपनाकर दलित समुदाय में शिक्षा का दरबढ़ा है, लोग नशे व्यसन से दूर हुए तो झगड़े फसाद, घरों में कलह भी कम हुए। 

बौद्ध रीति विवाह इसलिए है अलग-

बौद्ध धर्म में, विवाह को एक व्यक्तिगत पसंद माना जाता है, न कि धार्मिक कर्तव्य के रूप में। बौद्ध धर्म किसी व्यक्ति को विवाह करने के लिए बाध्य नहीं करता है। यह किसी को कुंवारा रहने के लिए भी मजबूर नहीं करता है। बौद्ध धर्म प्रत्येक व्यक्ति को विवाह से संबंधित सभी मुद्दों को स्वयं के लिए तय करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।

जो लोग विवाहित होने का विकल्प चुनते हैं, उन्हें गौतम बुद्ध के द्वारा लिखित वैवाहिक संदेशों को सुनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। 

एक बौद्ध विवाह सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाओं का सम्मान करता है और उनकी साझेदारी में ज्ञान, करुणा और सद्भाव के प्रति जोड़े की आस्था को व्यक्त करता है। अन्य आध्यात्मिक परंपराओं के विपरीत, बौद्ध विवाह को एक धर्मनिरपेक्ष मामला मानते हैं, जिसका अर्थ है कि यह व्यक्ति की पसंद है और संस्कार नहीं है। 

वेब सीरीज ' मेड इन हेवन - सीजन 2' के एपिसोड में दलित-बुद्धिस्ट वेडिंग का एक दृश्य
वेब सीरीज ' मेड इन हेवन - सीजन 2' के एपिसोड में दलित-बुद्धिस्ट वेडिंग का एक दृश्य

ऐसे होता है विवाह

कुंडली मिलान की बजाय बौद्ध धर्म में वर वधू की सहमति को अधिक महत्व दिया जाता है। वर वधू एक वेदी पर बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष नमन कर, प्रसाद चढ़ाकर सम्मान दिखाते हैं। वे समारोह के हिस्से के रूप में एक मंदिर भी जा सकते हैं और वहां अनुष्ठान कर सकते हैं। अधिकांश जोड़े मोमबत्तियां या धूप जलाते हैं और बुद्ध को फूल अर्पित करते हैं। पंचशील और त्रिशरण का वाचन किया जाता है. इस मौके पर फूलों और रोशनी की सजावट की जाती है।

कंबोडिया, भारत सहित कुछ देशों में, बौद्ध जोड़े की कलाई के चारों ओर एक लाल धागा बांधते हैं या उनके सिर के चारों ओर लंबे सफेद धागे लपेटते हैं। बौद्ध भिक्षु आशीर्वाद देते हैं । 

बौद्ध धर्म के केंद्र में मौजूद आदर्शों को सामूहिक रूप से 'तीन रत्न', या 'तीन खजाने' के रूप में जाना जाता है। ये हैं बुद्ध (पीला रत्न), धर्म (नीला रत्न), और संघ (लाल रत्न)। इन्हें अपने जीवन का केंद्रीय सिद्धांत बनाकर ही बौद्ध बनते हैं।

हाल ही में अमेजन प्राइम ओटीटी प्लेटफोर्म पर रिलीज हुई सुपरहिट वेब सीरीज ' मेड इन हेवन - सीजन 2' के एक एपिसोड में दलित-बुद्धिस्ट स्टाइल की वेडिंग बेहद खूबसूरती से दर्शाई गयी जो मुख्यधारा के मनोरंजन में दुर्लभ है। एपिसोड में अभिनेत्री राधिका आप्टे द्वारा निभाया गया किरदार पल्लवी मेनके, जो एक दलित लेखिका है, को अपने ही विवाह में बौद्ध अनुष्ठानों को शामिल करने के लिए अपने उच्च जाति के पति और ससुराल वालों से लड़ना पड़ता है। उसके ससुराल वालों को उसकी शैक्षणिक उपलब्धियों पर गर्व है, लेकिन उसकी जाति पर नहीं, जबकि उसका उदारवादी पति भी यह देखने में असमर्थ है कि उसका अपना परिवार कैसे जातिवादी हो सकता है। इस एपिसोड के अंत में वर वधू को बुद्ध की प्रतिमा और बाबा साहेब अम्बेडकर के चित्र के समक्ष नमन करते , मोमबत्ती जलाकर दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने की रस्मों को बेहद सुन्दरता के साथ चित्रित किया गया जिसपर अम्बेडकरवादियों के अलावा प्रगतिशील विचारधारा के दर्शकों की भी खूब सराहना मिली और एक बार फिर बुद्धिस्ट वेडिंग की चर्चा होने लगी.

राजस्थान कैडर की आईएएस टीना डाबी का विवाह पिछले साल प्रदीप गवांडे के साथ बौद्ध रीति से हुआ. शादी समारोह के चित्र उस समय सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हुए और लोगों ने सादगीपूर्ण तरीके से हुए इस समारोह की काफी सराहना की. टीना ने द मूकनायक के साथ अपने विवाह का एक चित्र सांझा किया और कहा कि " मेड इन हेवन ' के उक्त एपिसोड देखकर उनके अपने विवाह की स्मृतिया ताजा हो उठी .

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