चंडीगढ़/नई दिल्ली- हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या ने न सिर्फ प्रशासनिक सिस्टम की पोल खोली है, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स खट्टर को 'सुपर सीएम' करार दे रहे हैं, आरोप लगाते हुए कि वे अपने करीबी अधिकारियों को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। रोचक बात यह है कि यूजर्स इस मामले को 2016 के रोहित वेमुला आत्महत्या कांड से जोड़ रहे हैं, जहां स्मृति ईरानी की भूमिका के कारण वे दलित समुदाय में 'घृणा की प्रतीक' बन गईं। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर ट्रेंडिंग हैशटैग्स #ResignKhattar, #DalitVirodhiBJP और #JusticeForPuranKumar के जरिए यूजर्स चेतावनी दे रहे हैं कि खट्टर को ईरानी प्रकरण से सबक लेना चाहिए, वरना दलितों में उनकी छवि भी वैसी ही हो जाएगी।
सोशल मीडिया पर यह बहस तेज हो गई है क्योंकि पूरन कुमार के सुसाइड नोट में डीजीपी शत्रुजीत सिंह कपूर और अन्य अधिकारियों के नाम हैं, जो कथित तौर पर खट्टर के करीबी बताए जा रहे हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायाब सैनी की लाचारी को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. IPS पूरन कुमार मामले पर सीएम नायब सैनी के साथ बैठक में शामिल रहे समिति के सदस्य ने मीडिया को बताया कि सीएम सैनी ने कहा "मैं तो चपरासी को भी सस्पेंड नहीं कर सकता"।
पत्रकार सोनिया लिखती हैं, " सीएम नायब सैनी के साथ IAS अमनीत जी के पक्ष ने मीटिंग की. सभी ने नरेंद्र बिजारणियां और शत्रुजीत कपूर की गिरफ्तारी की मांग की लेकिन उस दौरान सीएम सैनी ने कहा "मैं तो चपरासी को भी सस्पेंड नहीं कर सकता". IPS पूरन कुमार मामले में DGP को छुट्टी पर भेज दिया है.इन पर एक्शन की तैयारी तो शुरू से ही नहीं थी क्योंकि केस में नाम आने के बाद से ही DGP को छुट्टी पर जाने की कही जा रही थी लेकिन वो सोच रहे थे कि हो-हल्ला दो-तीन दिन बाद बंद हो जायेगा और सब सामान्य हो जाएगा.सात दिन हो चुके हैं लेकिन पूरन कुमार जी का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया है. सरकार को अधिकारी चला रहे हैं या जनता के चुने हुए लोग?"
इसके बाद चर्चाएँ और तेज हो गई हैं कि प्रदेश में हुक्म नायब सैनी का नहीं बल्कि खट्टर, खुल्लर और कपूर का चलता है। यूजर्स का कहना है कि खट्टर का कार्यकाल (2014-2024) दलित अधिकारियों के लिए उत्पीड़न का दौर था, जहां प्रमोशन से लेकर पोस्टिंग तक जातिगत भेदभाव आम था। प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक और जादवपुर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सुभजित नस्कर ने एक्स पर लिखा, "मनोहर लाल खट्टर, पूर्व संघ प्रचारक, 2014-24 तक हरियाणा के सीएम रहे। उन्होंने कभी किसी दलित आईएएस या आईपीएस को मुख्य सचिव या डीजीपी के पद पर प्रमोट नहीं किया। दलित आईपीएस पूरन कुमार को खट्टर शासन में जातिगत उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, वे न्याय के लिए दर-दर भटके लेकिन हाथ खाली रहा। अब खट्टर मोदी कैबिनेट में हैं- शर्मनाक!"
नस्कर ने एक अन्य पोस्ट में इसे और स्पष्ट किया, "बीजेपी शासन में दलितों को लगातार न्याय से वंचित रखा जा रहा है। दलित आईपीएस पूरन कुमार को मनोहर लाल खट्टर के शासन से लेकर सैनी शासन तक जातिगत उत्पीड़न झेलना पड़ा। बाद में खट्टर को मोदी कैबिनेट में शामिल किया गया। कितनी शर्म की बात! #DalitVirodhiBJP #ResignKhattar #ArrestHaryanaDGP।"
एक यूजर ने लिखा, "ईरानी ने रोहित वेमुला केस में दलित छात्र को 'फर्जी दलित' कहा था, जिससे वे दलितों में घृणा की पात्र बनीं। खट्टर भी वैसा ही कर रहे हैं- अपने करीबियों को बचाकर।" हालांकि डायरेक्ट तुलना वाले ट्वीट्स कम हैं, लेकिन यूजर्स ईरानी प्रकरण को बार-बार उदाहरण के तौर पर उठा रहे हैं, चेताते हुए कि खट्टर का 'सुपर सीएम' रवैया उन्हें भी वैसी ही बदनामी दिला सकता है।
ब्रिटेन के हर्टफोर्डशायर विश्वविद्यालय में राजनीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विजिटिंग लेक्चरर अरविंद कुमार लिखते हैं, " जाति का नेटवर्क कैसे काम करता है उसे खट्टर और कपूर से समझिए? खट्टर के रहमो करम की वजह से जूनियर होते हुए भी कपूर को DGP बना दिया गया। हरियाणा के मुख्यमंत्री भी उनकी नियुक्ति नहीं चाहते थे। फिर कपूर ने एक एक करके दलित अधिकारियों को फँसाना शुरू किया।"
सोशल मीडिया पर खट्टर के कार्यकाल में दलित प्रमोशन की कमी को लेकर गुस्सा भरा है। यूजर्स का आरोप है कि 2014 से 2024 तक खट्टर सरकार ने दलित आईपीएस और आईएएस अधिकारियों को जानबूझकर ऊपरी पदों से दूर रखा। एक पोस्ट में कहा गया कि पूरन कुमार जैसे अधिकारी रोहतक रेंज में पोस्टिंग पाने पर ही निशाने पर आ गए, क्योंकि डीजीपी कपूर को यह पसंद न आया। पूर्व सांसद डॉ. उदित राज ने विस्तार से लिखा, "पूरन कुमार, 2001 बैच आईपीएस, रोहतक रेंज में पोस्टेड थे। उन्हें आत्महत्या करने पर मजबूर किया गया और हत्यारों-डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक एसपी नरेंद्र बिजरनिया के खिलाफ अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई। डीजीपी और एसपी ने पूरन के खिलाफ साजिश रची। डीजीपी को रोहतक पोस्टिंग मिलने से नाराजगी थी। कपूर का दलितों से कॉलेज के दिनों से वैमनस्य है, उन्होंने कई दलित अधिकारियों को नुकसान पहुंचाया। वे सरकार, सीएम, चीफ सेक्रेटरी या होम सेक्रेटरी की अनुमति के बिना एफआईआर और गिरफ्तारी करवाते हैं। फर्जी एफआईआर में पूरन का नाम डालकर स्टाफ को बिना वारंट गिरफ्तार किया गया। इससे पूरन जैसे ईमानदार अधिकारी के लिए दम घुट गया। आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो, वरना व्यापक आंदोलन होगा।"
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