विनोद के. जोस: संपादन से लेखनी की ओर, इस खबरनवीस का कारवां जारी रहेगा

न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में अधिस्नातक की डिग्री पूरी कर जोस दिल्ली आए और इंडियन एक्सप्रेस में बतौर रिपोर्टर पत्रकारिता क्षेत्र में कदम रखा।
विनोद के. जोस
विनोद के. जोसPic- @vinodjose

नई दिल्ली। देश की प्रतिष्ठित खोजी-कथा पत्रिका ’द कारवां’ के कार्यकारी संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार विनोद के जोस का इस्तीफा पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। जोस और द कारवाँ का साथ करीब डेढ़ दशक का रहा और इनकी गिनती उन चंद कलमकारों में है, जिन्होंने कम आयु में ही किसी राजनीतिक पत्रिका में संपादन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाना स्वीकार किया। इस सप्ताह के प्रारंभ में जोस ने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर लगभग 15 साल की ’मकराकिंग’ (आलोचनात्मक) और लंबी-चौड़ी रिपोर्टिंग के बाद पत्रकारिता से विराम के अपने फैसले की घोषणा की। अपनी खोजी पत्रकारिता और सनसनीखेज रिपोर्ट्स के लिए 10 देशद्रोह के मुकदमें झेल चुके दिग्गज पत्रकार विनोद जोस ने द मूकनायक के साथ हाल ही में एक संक्षिप्त साक्षात्कार में भारतीय समाचार कक्षों में विविधता की कमी और अपनी भविष्य की योजनाओं पर विचार साझा किए।

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विनोद के. जोसPic- @vinodjose

मीडिया में 90 प्रतिशत नौकरियों में शीर्ष जाति का कब्जा

जोस ने भारतीय समाचार कक्षों में विविधता की कमी के बारे में खुलकर बात की। न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में अधिस्नातक की डिग्री पूरी कर जोस दिल्ली आए और इंडियन एक्सप्रेस में बतौर रिपोर्टर पत्रकारिता क्षेत्र में कदम रखा। जोस ने बताया कि पहली बार दिल्ली आने के बाद से यह उनके लिए चिंता का विषय था कि पत्रकारिता के शीर्ष पदों पर सवर्ण वर्ग के प्रतिनिधि अधिक थे। उन्होंने खुलासा किया कि भारत में लगभग 90 प्रतिशत पत्रकारिता नौकरियों में शीर्ष जातियों का कब्जा है, जो आबादी का केवल 12-15% प्रतिनिधित्व करती है।

बीसवीं शताब्दी के मध्य में अमेरिका में अधिकांश आबादी के लिए प्रतिनिधित्व की कमी एक प्रमुख मुद्दा था, लेकिन संपादकों के निकाय ने काम पर रखने में विविधता के लिए सार्थक प्रयास किये। उन्होंने बताया, "जब दिल्ली प्रेस ने मुझे कारवां संपादकीय का नेतृत्व करने के लिए नौकरी की पेशकश की तो मैंने विविधता के मसले पर अनंत नाथ के साथ चर्चा की और वह मेरी राय से सहमत हुए। इससे मुझे कारवां में विविधता को बढ़ाने में मदद मिली।" डायवर्सिटी हायरिंग की स्वस्थ परंपरा संस्थान में 2011 में शुरू हुई थी, और तब से सभी कारवां संपादकों के लिए यह हमेशा महत्वपूर्ण घटक बना जब वे अपने नए सहयोगियों को नियुक्त करते हैं। कारवां को ऐतिहासिक रूप से हाशिए, जातिगत और शैक्षिक पृष्ठभूमियों में विविधतायुक्त प्रतिभाएं मिलने लगीं।

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ऑक्सफैम मीडिया डायवर्सिटी रिपोर्ट: वंचित-शोषित और पिछड़ों को मौका देने में द मूकनायक सबसे आगे

अपने अनुभवों को देंगे किताब का रूप

जोस ने भविष्य की योजनाओं में अपनी किताब लिखने की तीव्र उत्कंठा को साझा किया। उन्होंने कहा कि संपादक के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्हें ’एक पिंजरे में कैद पंछी’ जैसा एहसास होता था क्योंकि उनकी मूल अभिरुचि लेखन कार्य में है। "मेरी किताब हाल के दिनों का एक इतिहास होगा। इस पुस्तक के माध्यम से मैं अपने लिखने की इच्छा को पूरी करूंगा जो कि एक संपादक के रूप में सेवा करते समय उतना नहीं कर पाया जितना मैं चाहता था," जोस ने कहा। उन्होंने कहा कि अपने रिपोर्टिंग की रुचि को उन पत्रकारों के माध्यम से पूरा करने का भी प्रयास किया, जिनकी रिपोर्ट्स का उन्होंने संपादन किया। बहरहाल जोस एक प्रमुख प्रकाशक के साथ पुस्तक लिखने के लिए अनुबंधित है और इसे जल्द ही समाप्त करने के लिए उत्सुक हैं।

इन खबरों ने बनाया चर्चित

जोस वर्ष 2009 में महज 29 साल की उम्र में सबसे कम आयु के कार्यकारी संपादक के रूप में द कारवां में शामिल हुए। अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कई प्रमुख कहानियों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें जस्टिस बीएच लोया की मौत, विवादास्पद कॉमनवेल्थ गेम्स स्कैंडल, अडानी कोलगेट घोटाला और हिंदुत्व आतंकवाद का विनाशकारी उदय आदि शामिल हैं।

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