ऑक्सफैम मीडिया डायवर्सिटी रिपोर्ट: वंचित-शोषित और पिछड़ों को मौका देने में द मूकनायक सबसे आगे

ऑक्सफैम मीडिया डायवर्सिटी रिपोर्ट
ऑक्सफैम मीडिया डायवर्सिटी रिपोर्ट

बहुजनों को प्रतिनिधित्व देने में 'द मूकनायक' सिरमौर। पोर्टल पर प्रकाशित होने वाली 100 प्रतिशत लेख सामग्री को तैयार करते है पिछड़े और वंचित समूह के लोग।

नई दिल्ली। भारतीय मीडिया में आदिवासी, दलित और ओबीसी के प्रतिनिधित्व की स्थिति को लेकर गैर सरकारी संगठन ऑक्सफैम व न्यूजलॉन्ड्री मीडिया संस्थान के सर्वे की रिपोर्ट में सामने आया है कि डिजिटल मीडिया में वंचित तबके से आने पत्रकारों व लेखकों को सबसे ज्यादा मौके 'द मूकनायक' मीडिया संस्थान ने दिए हैं।

"हू टेल्स अवर स्टोरीज मैटर्सः रिप्रेजेंटेशन ऑफ मार्जिनलाइज्ड कास्ट ग्रुप्स इन इंडियन न्यूजरूम्स" नाम की यह रिपोर्ट बताती है कि भारतीय मीडिया के तमाम न्यूजरूम वंचितों की आवाज से वंचित हैं। यानि यहां काम करने वाले अधिकतर लोग सवर्ण हैं, जिनके अपने सरोकार हैं। अपने अध्ययन में ऑक्सफैम-न्यूजलॉन्ड्री ने पाया है कि भारतीय मीडिया में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जातियों के लोगों का प्रतिनिधित्व बतौर पत्रकार नहीं के बराबर है। हालांकि पिछले सर्वे की रिपोर्टों से तुलना की जाए तो वर्ष 2022 में आई रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों व पिछड़ा वर्ग के लोगों के मीडिया में प्रतिनिधित्व में सुधार आया है, लेकिन यह संतोषजनक अब भी नहीं है।

Caste representation among the editors and proprietors of the Digital Media 2021-2022
Caste representation among the editors and proprietors of the Digital Media 2021-2022

मूकनायक में सर्वाधिक डायवर्सिटी

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार डिजीटल मीडिया में द मूकनायक के न्यूजरूम में सर्वाधिक डायवर्सिटी है। न्यूजरूम में 54 प्रतिशत पत्रकार दलित व पिछड़ा समाज से हैं। सामान्य श्रेणी से आने वाले 45 प्रतिशत पत्रकारों में से सर्वाधिक संख्या महिला पत्रकारों की है। सर्वे में ईस्टमोजो मीडिया प्लेटफार्म मूकनायक के काफी करीब रहा है। सर्वे में फर्स्टपोस्ट, न्यूज लॉन्ड्री, स्क्रॉल इन, द क्विंट, द वायर, द न्यूज मिनट को शामिल किया गया है।

दलित लेखकों को सर्वाधिक मौका

रिपोर्ट के अनुसार द मूकनायक ने अपने संपादकीय कॉलम में सर्वाधिक लेख दलित लेखकों के प्रकाशित किए हैं। दूसरे नम्बर पर ईस्ट मोजो मीडिया समूह रहा है। द वॉयर, द क्विंट, स्वराज व स्क्रॉल इन ने भी दलित लेखकों को मौका दिया है।

Top decile of writers by number of articles published (%)
Top decile of writers by number of articles published (%)

निर्णायक पदों पर सवर्णों का कब्जा

रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वेक्षण में शामिल सभी समाचार पत्र, पत्रिका, टीवी चौनल और वेबसाइट के न्यूजरूम में निर्णायक पदों पर यानि मुख्य संपादक, प्रबंध संपादक और ब्यूरो प्रमुख जैसी कुर्सियों पर सवर्ण काबिज हैं। अध्ययन में पाया गया कि कुल 218 निर्णायक पदों में से 191 पर उच्च जाति के पत्रकारों का कब्जा है, जबकि इनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का एक भी सदस्य नहीं है। राज्यसभा टीवी, आज तक, न्यूज 18, इंडिया टीवी, एनडीटीवी इंडिया, रिपब्लिक भारत, और जी न्यूज में सभी निर्णायक पदों पर उच्च जाति के लोग काबिज हैं।

मीडिया में वंचितों की हिस्सेदारी को लेकर पहले भी सर्वेक्षण रिपोर्ट सामने आए हैं। मसलन 2006 में मीडिया स्टडीज ग्रुप, दिल्ली के अनिल चमड़िया और सीएसडीएस के योगेंद्र यादव ने 37 मीडिया संस्थानों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि मीडिया में 315 प्रमुख पदों में से फैसला लेने के स्तर पर महज एक फीसदी लोग ही ऐसे हैं जिनका ताल्लुक अन्य पिछड़ा वर्ग से था। हालांकि प्रमुख पदों पर ओबीसी की हिस्सेदारी 4 फीसदी थी। इसके उलट फैसला लेने वाले पदों पर 71 फीसदी सवर्ण काबिज थे।

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