MP: SC/ST व OBC को हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व देने वाली याचिका क्यों हुई ख़ारिज?

न्यायपालिका में वर्ग विशेष जैसे एससी/एसटी, ओबीसी आदि को प्रतिनिधित्व देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है: हाई कोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.

भोपाल। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग को हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में जज बनाकर प्रतिनिधित्व देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि न्यायपालिका में वर्ग विशेष जैसे एससी/एसटी, ओबीसी आदि को प्रतिनिधित्व देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट जज का पद सिविल पोस्ट नहीं है, जिसके लिए भर्ती प्रक्रिया लागू की जाए। इस मत के साथ चीफ जस्टिस शील नागू व जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ ने हाई कोर्ट में सात जजों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम का अस्तित्व कानूनी रूप से पवित्र है। कोर्ट ने कहा- "ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने गलत धारणा के तहत याचिका दायर की है। वह ऐसा समझता है कि हाई कोर्ट के जज का कार्यालय एक सिविल पद के समान है, जबकि यह केवल संविधानिक प्रक्रिया के तहत भरा जाता है। हाई कोर्ट जज की नियुक्ति के लिए संविधान में किसी भी विज्ञापन को जारी करने का प्रावधान नहीं है। लिखित या मौखिक परीक्षा का आयोजन नहीं किया जा सकता।"

बता दें ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जजों की नियुक्ति को चुनौती दी थी।

अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने दलील दी थी कि हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज कर एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी भेजे जाते हैं।

जानिए याचिका में क्या?

हाईकोर्ट के नियुक्त सात जजों की अधिसूचना 02 नवंबर 2023 की संवैधानिकता को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया, अधिवक्ता उदय कुमार साहू ने 4 नवंबर 2023 को याचिका दायर कर चुनौती दी थी।

याचिका में आरोप था कि हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान में विहित सामाजिक न्याय तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को नजर अंदाज करके एक ही जाति, वर्ग तथा परिवार विशेष के ही अधिवक्ताओं के नाम पीढ़ी दर पीढ़ी हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम द्वारा प्रेषित किए जाते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 13,14, 15, 16 एवं 17 के प्रावधानों तथा भावना के विपरीत है।

याचिका में यह मांग की गई कि भारत के संविधान मैं सामाजिक न्याय व आर्थिक न्याय की आधार शिला रखी गई है, उक्त सामाजिक न्याय को साकार करने के लिए न्यायपालिका में सभी वर्गों का अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है। उक्त संबंध में करिया मुंडा कमेटी की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से व्याख्या करती है कि हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक जाति वर्ग विशेष के ही जजों की नियुक्ति होने से बहुसंख्यक समाज के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना है।

ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य अधिवक्ता मारुति सोंधिया, अधिवक्ता उदय कुमार साहू के मुताबिक उक्त याचिका की प्रारंभिक सुनवाई, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश शील नागू व जस्टिस अमरनाथ केसरवानी की खंडपीठ द्वारा की गई थी। उक्त याचिका में 04 जून 2024 को नौ पेज का निर्णय पारित करके हाईकोर्ट द्वारा आपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को रेखांकित करके कहा कि कॉलेजियम का भारत के संविधान में भले ही कोई व्यवस्था नहीं की गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से कॉलेजियम व्यवस्था प्रचलन में है जिसे संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत सम्पूर्ण न्यायपालिका एवं विधायिका मानने को बाध्य है।

सुप्रीम कोर्ट जाएगा एसोसिएशन

याचिकाकर्ता अधिवक्ता इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन हाईकोर्ट के उक्त फैसले के विरुद्ध में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगा।

द मूकनायक से हाईकोर्ट जबलपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं विधि विशेषज्ञ रामेश्वर ठाकुर ने कहा- "विधि एवं सामाजिक न्याय मंत्रालय भारत सरकार ने 2021-22 में देश के समस्त हाईकोर्ट को पत्र प्रेषित करके आग्रह किया था कि संबंधित हाई कोर्ट के कॉलेजियम ओबीसी, एससी/एसटी, महिला व अल्पसंख्यक वर्ग के अधिवक्ता तथा पदोन्नति से हाई कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति हेतु आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए नाम प्रेषित किए जाएं। उक्त तत्व का भी हाईकोर्ट द्वारा अपने फैसले में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। पत्र की प्रति ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के पास मौजूद है।"

ठाकुर ने आगे कहा, "मध्य प्रदेश सहित देश की समस्त न्यायपालिका में एक वर्ग जाति विशेष का ओवर रिप्रेजेंटेशन है, जबकि ओबीसी, एससी/एसटी एवं महिलाओं का न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व दो या तीन परसेंट ही है अर्थात जहां आरक्षण का प्रावधान नहीं है। वहां न्यायपालिका संपूर्ण पदों को एक जाति तथा वर्ग विशेष के लिए आजादी के बाद से आरक्षित मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी नियुक्तियां की जा रही है।

क्या है कॉलेजियम सिस्टम?

सुप्रीम कोर्ट यानि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बनाई गई यह एक प्रणाली है, जिसके अंतर्गत न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण किया जाता है। यह कॉलेजियम सिस्टम भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। हालांकि यह प्रणाली संसद के किसी अधिनियम या फिर संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित नहीं है।

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