MP: आरक्षित सीटों पर क्या हैं कांग्रेस की हार के कारण?

वर्तमान चुनाव में मोदी लहर के गुम होने के बावजूद प्रदेश में जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है। सभी 29 सीटों पर बीजेपी का कब्जा।
MP: आरक्षित सीटों पर क्या हैं कांग्रेस की हार के कारण?

भोपाल। मध्य प्रदेश लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ऐतिहासिक जीत मिली है। यहां भाजपा ने क्लीन स्वीप कर सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की है। जिन सीटों में 10 संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं, उन सीटों पर भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई। जबकि चुनाव के पूर्व से ही राजनीतिक विश्लेषक इन सीटों पर कांग्रेस को मजबूत बता रहे थे। कांग्रेस खुद इन सीटों पर बड़ी जीत का दावा कर रही थी। लेकिन एमपी के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए।

मध्य प्रदेश में कुल 29 लोकसभा सीटें हैं। 10 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। जिनमें भिंड, देवास, टीकमगढ़ और उज्जैन, ये चार सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हैं। बैतूल, धार, खरगोन, मंडला, रतलाम और शहडोल, ये छह सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। इन आरक्षित सभी सीटों पर भाजपा ने अच्छे अंतर से जीत दर्ज की है।

सभी आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की बड़ी हार होना यह साफ दिखा रहा है कि प्रदेश के कांग्रेस संगठन ने अन्य राज्यों की तरह जमीन पर काम ही नहीं किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमीन कच्ची हो चुकी है। निचले स्तर पर पार्टी वर्कर्स की कमी इसका मुख्य कारण हो सकते हैं। यही वजह थी कि कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में भी हार देखनी पड़ी।

स्थानीय मुद्दे नहीं भुना सकी कांग्रेस

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में भाजपा को हुए भारी नुकसान से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्तमान चुनाव में मोदी लहर के गुम होने के वाबजूद भी एमपी में जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जिन स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाना चाहिए था, उन्हें कांग्रेस भुनाने में पूरी तरह असफल रही है। जबकि भाजपा ने अपनी योजनाओं को आगे कर वोट मांगे। चुनाव के समय से ही मोदी लहर का असर कम दिखाई पड़ रहा था, लेकिन भाजपा का मजबूत संगठन और राज्य सरकार की योजनाओं ने बीजेपी को सफलता दिलाई है। इन योजनाओं में लाडली बहना जैसी गेम चेंजर योजना का योगदान माना जा रहा है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल लाल भूरिया रतलाम-झाबुआ सीट से कांग्रेस से प्रत्याशी थे। वह आदिवासियों के नेता हैं और इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं। लेकिन वह बीजेपी की अनिता नागर चौहान से 2.07 लाख वोट से हार गए। मण्डला सीट से कांग्रेस नेता ओमकार मरकाम, जो कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे, वह भी बीजेपी नेता और के केंद्रीय मंत्री भग्गन सिंह कुलस्ते से डेढ़ लाख वोटों से हार गए।

धार लोकसभा सीट से भाजपा की सावित्री ठाकुर दो लाख से भी ज्यादा वोटों से जीती हैं। उन्होंने कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल को हराया है। पिछली बार इस सीट से भाजपा के छतर सिंह दरबार सांसद रहे, इस बार पार्टी ने उनका टिकट काट कर, सावित्री ठाकुर को उम्मीदवार बनाया था।

बैतुल सीट से भाजपा के डीडी उइके को पुनः जीत मिली है। यहां कांग्रेस के रामू टेकाम करीब चार लाख वोटों से हार गए। शहडोल संसदीय क्षेत्र ने भी पुनः भाजपा की हिमाद्री को अपना सांसद चुना है। कांग्रेस प्रत्याशी फुन्देलाल मार्को चार लाख वोटों से हार गए। पिछली बार 2019 में भी इस सीट से हिमाद्री को जनता चुना था, और सांसद बनाया था। खरगोन से भाजपा के गंजेन्द्र सिंह पटेल ने कांग्रेस प्रत्याशी पोरलाल खरते को एक लाख वोटों से हरा दिया। पूर्व में भी बीजेपी के पटेल ही इस सीट से सांसद रहे।

भिंड-दतिया लोकसभा सीट से बीजेपी की संध्या राय पुनः सांसद बनी हैं। उन्होंने फूलसिंह बरैया को करीब 80 हजार वोटों से हराया है। हालांकि इस बार जीत का अंतर 2019 के चुनाव से कम हुआ है।

उज्जैन सीट से बीजेपी के अनिल फिरोजिया ने भी बड़ी जीत दर्ज कराई है। उन्होंने कांग्रेस के महेश परमार को चार लाख से भी ज्यादा वोटों से हराया है। टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र से भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार खटीक ने कांग्रेस के पंकज अहिरवार को चार लाख वोटों से हराया है। देवास लोकसभा सीट से बीजेपी के महेंद्र सिंह सोलंकी ने एक बार फिर जीत दर्ज कराई हैं। उन्होंने कांग्रेस के राजेन्द्र मालवीय को करीब साढ़े चार लाख वोटों से शिकस्त दी है।

कांग्रेस के दिग्गज भी हारे

भाजपा ने इस भी लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया है। कांग्रेस की एक मात्र सीट छिंदवाड़ा पर भी भाजपा ने कब्जा जमा लिया है। यह सीट कमलनाथ-नकुलनाथ की परंपरागत सीट मानी जाती थी। प्रदेश में कांग्रेस को उम्मीद थी कि 10 से 12 सीट पर कड़ी टक्कर के बाद 3-4 सीटों पर जीत दर्ज हो सकती है, लेकिन कांग्रेस के दिग्गजों को भी हार का मुंह देखना पड़ा है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुनाव हार गए राजगढ़ सीट से बीजेपी प्रत्याशी रोडमल नागर से वह लगभग 1,46,000 वोटो से चुनाव हार गए हैं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा सीट से 1,13,000 वोटों से बीजेपी के बंटी साहू से चुनाव हार गए. जबकि रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया को बीजेपी की अनीता नागर चौहान 2,07,000 वोटों से चुनाव हरा दिया.

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