
भोपाल। अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संघ (अजाक्स) के नवनिर्वाचित प्रांताध्यक्ष एवं मध्यप्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर दिए एक बयान के बाद विवादों में घिर गए हैं। प्रांतीय अधिवेशन के दौरान वर्मा ने कहा था कि “आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक मेरे बेटे को कोई ब्राह्मण अपनी बेटी दान नहीं कर दे या उससे संबंध नहीं बना ले।” उनके इस कथन को कई सवर्ण कर्मचारी संगठनों, सामाजिक संगठनों और सवर्ण समाज के प्रतिनिधियों ने आपत्तिजनक बताते हुए कड़ी निंदा की है। हालांकि अजाक्स का कहना है कि वह बेटे की शादी ब्राह्मण लड़की से कराने को लेकर एक उदाहरण देकर समझाने की कोशिश कर रहे थे कि आरक्षण आर्थिक आधार पर नही बल्कि सामाजिक आधार पर दिया जाता है।
इधर, मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक और तृतीय कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा कि यह बयान न केवल सवर्ण समाज का अपमान है, बल्कि विवाह जैसी निजी स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों पर अनावश्यक टिप्पणी है। उनका कहना है कि “शादी-विवाह पूरी तरह निजी मामला है, कोई व्यक्ति किससे विवाह करे यह उसका व्यक्तिगत अधिकार है। बेटी कोई वस्तु नहीं है जिसे ‘दान’ कहा जाए।” उन्होंने शासन से संतोष वर्मा पर कार्रवाई की मांग की है।
ब्राह्मण और सपाक्स संगठनों में नाराज़गी
वर्मा के बयान ने प्रदेशभर में ब्राह्मण समाज और सपाक्स संगठन में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हुए और नारेबाजी की गई। संगठनों का कहना है कि एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी द्वारा इस तरह की टिप्पणी सामाजिक सौहार्द को प्रभावित करती है।
नर्मदापुरम में पुतला दहन, ज्ञापन सौंपा
नर्मदापुरम में मंगलवार को सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के जिला अध्यक्ष के.एन. त्रिपाठी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया गया। इस दौरान संतोष वर्मा का पुतला फूंका गया और ‘मुर्दाबाद’ के नारे लगे। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन नायब तहसीलदार हंस कुमार ओंकार को सौंपते हुए वर्मा को बर्खास्त करने और उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग की।
के.एन. त्रिपाठी ने कहा कि यदि शासन शीघ्र कार्रवाई नहीं करता तो सपाक्स की प्रदेश इकाई व्यापक आंदोलन शुरू करेगी। उन्होंने चेतावनी दी कि जन प्रतिनिधियों के माध्यम से भी विरोध जारी रखा जाएगा।
क्यों कठिन है भारत में अंतरजातीय विवाह?
भारत में गहरी जमी जाति व्यवस्था सामाजिक नियंत्रण का एक प्रमुख आधार बनी हुई है, जिसके कारण अंतरजातीय विवाह को आज भी व्यापक स्वीकृति नहीं मिल पाती। अधिकांश समुदाय विवाह को अपनी जाति, कुल और परंपरा से जोड़कर देखते हैं, जिससे युवा पीढ़ी पर पारिवारिक और सामाजिक दबाव बढ़ जाता है। कई परिवार मानते हैं कि अलग जाति में विवाह करने से सामाजिक प्रतिष्ठा या ‘इज्जत’ प्रभावित होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तयशुदा (अरेंज्ड) विवाह की परंपरा मजबूत होने के कारण व्यक्तिगत पसंद की जगह परिवार और बिरादरी की पसंद को प्राथमिकता दी जाती है।
अंतरजातीय विवाहों के खिलाफ सामाजिक विरोध, बहिष्कार और कभी-कभी हिंसा भी बड़ी बाधा बनती है। ऑनर किलिंग, पंचायतों/खापों का दबाव, और जातिगत संगठनों का विरोध कई युवाओं को अपनी पसंद के विवाह से रोक देता है। कानून अंतरजातीय विवाह का संरक्षण देता है, लेकिन सामाजिक डर और सुरक्षा का अभाव युवाओं को पीछे हटने पर मजबूर कर देता है। आर्थिक निर्भरता, जातिगत नेटवर्क पर आधारित रोजगार और रिश्तेदारी तंत्र भी इस बदलाव को धीमा करते हैं, जिससे अंतरजातीय विवाह भारत में अभी भी चुनौतियों से घिरा हुआ है।
अंतरजातीय विवाह पर संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान प्रत्येक वयस्क नागरिक को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (भेदभाव निषेध) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) इस स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसलों में स्पष्ट किया है कि जाति, धर्म, समुदाय, भाषा या किसी सामाजिक पहचान के आधार पर विवाह में बाधा नहीं डाली जा सकती। अदालतें बार-बार कह चुकी हैं कि दो बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से शादी करें तो यह उनका मौलिक अधिकार है, और किसी भी तरह की धमकी, दबाव या सामाजिक बहिष्कार असंवैधानिक है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम ऐसे जोड़ों को बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाज के शादी करने का अधिकार देता है, ताकि वे सामाजिक या जातिगत दबाव से मुक्त होकर अपने संबंध को कानूनी मान्यता दे सकें। संविधान और कानून दोनों ही कहते हैं कि विवाह व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता का विषय है, और राज्य का कर्तव्य है कि ऐसे जोड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और किसी भी तरह की बाधा या उत्पीड़न को रोके।
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