बोधगया, बिहार — महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया है। बिहार पुलिस द्वारा भूख हड़ताल पर बैठे बौद्ध भिक्षुओं को जबरन हटाने के बाद, आंदोलन का केंद्र महाबोधि मंदिर से 2 किलोमीटर दूर एक खुले मैदान में स्थानांतरित हो गया है। महाबोधि मंदिर में पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है।
यहां, कड़कती धूप में बैठे भिक्षु और उनके समर्थक अपने आमरण अनशन के 19वें दिन में हैं। भिक्षु विनयचार्य ने कहा, "किसी भी कीमत पर आंदोलन खत्म नहीं होगा। हम बुद्ध की विरासत को बचाने के लिए हर संघर्ष करने को तैयार हैं।" देश के विभिन्न हिस्सों से बौध भिक्षु और भिक्षुणी आन्दोलन में शामिल होने के लिए बोधगया पहुंच रहे हैं।
12 फरवरी से शुरू हुए इस आंदोलन में सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और अनुयायी शामिल हुए थे। उनकी मांग थी कि महाबोधि महाविहार मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए और 1949 के बोधगया टेंपल एक्ट को रद्द किया जाए। हालांकि, 15 दिनों तक चले इस आंदोलन के बाद, रात्रि 1:00 बजे बिहार पुलिस ने भूख हड़ताल पर बैठे भिक्षुओं को जबरन उठाकर एक मेडिकल कॉलेज में भर्ती करा दिया। इस कार्रवाई को बौद्ध समुदाय ने "अत्यंत निंदनीय और चिंताजनक" बताया है।
भिक्षु विनयचार्य ने कहा, "यह सरकार द्वारा आंदोलन को दबाने का एक और प्रयास है। हमारे भिक्षु शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सरकार ने उन्हें जबरन हटा दिया। यह बौद्ध समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है।"
पुलिस कार्रवाई के बावजूद, आंदोलन ने राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया है। बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क और भारत मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में, देश के 31 राज्यों और 567 जिलों में चरणबद्ध आंदोलन की योजना बनाई गई है। इसके तहत:
03 मार्च 2025: सभी जिलों में जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
08 मार्च 2025: सभी जिला मुख्यालयों पर धरना प्रदर्शन होगा।
22 मार्च 2025: सभी जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन रैली निकाली जाएगी।
09 अप्रैल 2025: देशव्यापी जेल भरो आंदोलन होगा।
01 जुलाई 2025: भारत बंद आंदोलन होगा।
आंदोलन को और मजबूती देने के लिए, बौद्ध समुदाय ने सोशल मीडिया पर भी एक बड़ा अभियान शुरू किया है। सिग्नेचर कैंपेन, शॉर्ट रील्स, और ऑनलाइन पोस्ट के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। "बुद्ध के वारिस जाग उठे हैं", "बुद्ध की विरासत खाली करनी होगी", " ब्राह्मणों_महाबोधि_छोड़ो" , #महाबोधि_मुक्ति_आंदोलन" सरीखे स्लोगन/हैश टैग के साथ बौध अनुयायी सोशल मीडिया में पोस्ट्स शेयर कर जागरूकता बढाने और समर्थन प्राप्त करने को प्रयासरत हैं.
प्रो. अमोल सोनवणे ने कहा, "दुनिया भर के तमाम बौद्ध लोग अब महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के मुद्दे पर एक साथ जुड़ चुके हैं। देशभर के हर गांव से इस मुद्दे पर समर्थन मिल रहा है।"
बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क के तहत, अजमेर सहित देश के कई शहरों में बौद्ध संगठनों ने आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया है।
महाराष्ट्र के नागपुर में रविवार को भारी तादाद में बौध धर्मियों ने रैली में हिस्सा लिया जिसमे डॉ विलास खैरात ने भी भाग लिया। कल्याण में बौध समुदाय द्वारा सात दिवसीय धरना प्रदर्शन का आयोजन रखा गया है.
यहाँ डॉ महेंद्र दहिवले ने कहा , " महाबोधि महाविहार केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि बौद्ध समाज की आस्था, अस्मिता और अधिकार का प्रतीक है। यह घोर अन्याय है कि भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली आज भी गैर-बौद्धों के हस्तक्षेप में जकड़ी हुई है। महाबोधि महाविहार पर बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों का प्राकृतिक और ऐतिहासिक अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता। मैं आमरण अनशन पर बैठे भिक्षु-भिक्षुणियों की दृढ़ता और साहस को नमन करता हूँ। यह केवल भूख हड़ताल नहीं, बल्कि हज़ारों वर्षों से चले आ रहे अन्याय के खिलाफ बौद्ध समाज का एक क्रांतिकारी प्रतिरोध है। यह लड़ाई केवल महाबोधि महाविहार की मुक्ति की नहीं, बल्कि बहुजन समाज के आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पुनरुद्धार की भी है।
BT Act 1949 इस अन्याय का आधार है, जिसे तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। यह कानून बौद्धों को उनके ही पवित्र स्थल पर अधिकार से वंचित करता है!"
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