महाबोधि मुक्ति आंदोलन — बिहार पुलिस ने भूख हड़ताल पर बैठे भिक्षुओं को उठाया, समुदाय ने IHRC और UNESCO से की हस्तक्षेप की मांग

बिहार पुलिस की कार्रवाई से बौद्ध समुदाय में आक्रोश, महाबोधि मंदिर प्रबंधन को लेकर विवाद गहराया
महाबोधि मुक्ति आंदोलन — बिहार पुलिस ने भूख हड़ताल पर बैठे भिक्षुओं को उठाया, समुदाय ने IHRC और UNESCO से की हस्तक्षेप की मांग
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बोधगया, बिहार — महाबोधि मुक्ति आंदोलन के 15वें दिन गुरुवार रात्रि 1:00 बजे बिहार पुलिस ने भूख हड़ताल पर बैठे बौद्ध भिक्षुओं को हिरासत में लिया। इस कदम ने बौद्ध समुदाय में भारी रोष पैदा कर दिया है। भूख हड़ताल पर बैठे इन भिक्षुओं की मांग थी कि महाबोधि महाविहार मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। हालांकि, जिला प्रशासन ने भिक्षुओं को जबरन उठाकर एक मेडिकल कॉलेज में भर्ती करा दिया है, जिसे समुदाय ने एक "अत्यंत निंदनीय और चिंताजनक कदम" बताया है।

12 फरवरी से शुरू हुए इस आंदोलन में सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और अनुयायी शामिल हुए थे। उनकी मांग थी कि महाबोधि महाविहार मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए और 1949 के बोधगया टेंपल एक्ट को रद्द किया जाए। हालांकि, 15 दिनों तक चले इस आंदोलन के बाद, रात्रि 1 बजे बिहार पुलिस भूख हड़ताल पर बैठे भिक्षुओं को जबरन उठाकर ले गयी और उन्हें एक मेडिकल कॉलेज में भर्ती करा दिया।

बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के मुख्य सलाहकार भदंत प्रज्ञाशील महाथेरो ने बताया आधी रात में 12:30 बजे बुद्ध गया महाबोधि महाविहार BTMC office के पास गोलंबर में भूख हड़ताल स्थान से पुलिस फोर्स ने सभी भंते गणों को उठाकर ले गए।

बौध भिक्षुओं ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए कहा, "यह सरकार द्वारा आंदोलन को दबाने का एक और प्रयास है। हमारे भिक्षु शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सरकार ने उन्हें जबरन हटा दिया। यह बौद्ध समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है।" आगे यह भी बताया की दिन में उच्चाधिकारियों के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में बात हुई लेकिन आधी रात के बाद अचानक पुलिस आकर अनशनकारियों को उठाकर जिला अस्पताल ले आई , रात भर से अस्पताल के बाहर भी भिक्षुओं का धरना जारी है.

इस घटना के बाद, बौद्ध समुदाय ने सभी लोगों से इस आंदोलन में शामिल होने और महाबोधि मंदिर को मुक्त कराने के लिए हर संभव प्रयास करने का आह्वान किया है। All India Buddhist Forum के कनवीनर आशीष बरुआ ने द मूकनायक को बताया कि "सरकार लगातार इस आंदोलन को दबाने की कोशिश कर रही है, लेकिन हमें एकजुट होकर इस मिशन को सफल बनाना होगा। यह हमारे धर्म और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न है।"

डॉ. विलास खरात, जो इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक हैं, ने महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति द्वारा आंदोलन के अगले चरण की घोषणा की। 28 फरवरी 2025 को देश भर के जिला मुख्यालयों पर ज्ञापन दिए जाएंगे। इसके बाद 6 मार्च को धरना और 12 मार्च को रैली का आयोजन किया जाएगा। अंत में, बोधगया में लाखों लोगों की विशाल महारैली निकाली जाएगी।

महाबोधि मंदिर का संघर्ष सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को बचाने की लड़ाई है। बौद्ध समुदाय ने साफ कर दिया है कि वे अपने अधिकारों के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और बौद्ध समुदाय की मांगों को पूरा करे।

इस प्रदर्शन को भारत भर की 500 से अधिक बौद्ध संगठनों, जिनमें बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया भी शामिल है, और श्रीलंका, थाईलैंड, जापान और मंगोलिया जैसे देशों के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघों का समर्थन मिला है।
इस प्रदर्शन को भारत भर की 500 से अधिक बौद्ध संगठनों, जिनमें बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया भी शामिल है, और श्रीलंका, थाईलैंड, जापान और मंगोलिया जैसे देशों के अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संघों का समर्थन मिला है।

राजरतन अंबेडकर ने महाबोधि की मुक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाई आवाज

Buddhist Society of India के अध्यक्ष और बैंकॉक स्थित वर्ल्ड फेलोशिप ऑफ बुद्धिस्ट्स के सचिव राजरतन अंबेडकर ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों से महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर चल रहे भूख हड़ताल और बोधगया टेंपल एक्ट, 1949 में हस्तक्षेप करने की तत्काल अपील की है.

यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन फॉर इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF), वाशिंगटन, यूएसए, ऑफिस ऑफ द यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स (OHCHR), जिनेवा, स्विट्जरलैंड, इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स कमिश्नर (IHRC), जिनेवा, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन (UNESCO), फ्रांस को भेजे पत्र में राजरतन अंबेडकर ने बोधगया टेंपल एक्ट, 1949 में हस्तक्षेप करने की अपील की.

महाबोधि मंदिर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और दुनिया भर के बौद्धों के लिए इसका गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। एक गैर-बौद्ध बहुमत वाली समिति द्वारा इसका नियंत्रण एक गंभीर अन्याय है और धार्मिक स्वतंत्रता व मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों पर हमला है।

अंबेडकर ने कहा कि उन्हें आशा है उपरोक्त प्रतिष्ठित संगठन बौद्धों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा करने और बौद्ध समुदाय के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करेंगे। अभी चल रही भूख हड़ताल इसमें शामिल लोगों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है।

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बौद्धों का ब्राह्मणों से सवाल — जब धर्म ग्रंथों में बुद्ध का चेहरा देखना पाप था, तो आज वे बोधगया में क्या कर रहे हैं? महाबोधि छोड़ो!

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