अमेरिका में 'जयभीम' से भारत के CJI का स्वागत

बाबा साहब की विरासत आधुनिक भारत के संवैधानिक मूल्यों को आकार दे रही है- सीजेआई
अमेरिका में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़
अमेरिका में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़

नई दिल्ली। ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी, बोस्टन, संयुक्त राज्य अमेरिका में “कानून, जाति और न्याय की खोज“ विषय पर आयोजित सम्मेलन में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ का 'जय भीम' बोलकर स्वागत किया गया। इस दौरान प्रोफेसर सुखदेव थोराट और बीएसजी के वरिष्ठ सदस्य संजय भगत के साथ बोस्टन स्टडी ग्रुप द्वारा डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के साथ सीजेआई चंद्रचूड़ की तस्वीर भी ली गई।

इस दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश ने बाबा साहब डॉ. भीमराम अंबेडकर के संविधान के विचारों की सराहना करते हुए कहा कि संविधान बहुत अच्छा हो सकता है यदि इसके कामकाज के लिए जिम्मेदार “अच्छे लोग“ हों। भारत के सीजेआई डी.वाई. चन्द्रचूड़ अमेरिका में ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी मैचासुसेटस में आयोजित छटे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की अधूरी विरास्त विषय पर बोलते हुए बाबा साहेब के संवैधानिक विचारों पर प्रकाश डाल रहे थे। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब ने संविधान निर्मात्री समिति का नेतृत्व किया था। सीजेआई ने अपने संबोधन में आगे कहा कि समाज में गहरी जड़ जमा चुकी जातीय मानसिकता को खत्म करने और हाशिए पर रह रहे समुदायों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देकर भारतीय समाज को आगे बढ़ाने में संविधान सहायक है। अब बाबा साहेब की विरासत आधूनिक भारत के सवैंधानिक मूल्यों को आकार दे रही है।

अन्याय-भेदभाव के लिए हथियार बनाया

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लीगल सिस्टम को हाशिए पर रहे समुदायों को दबाने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया। अमेरिका और भारत दोनों देशों में लंबे समय तक कई समुदायों को वोट डालने का अधिकार नहीं दिया गया। इस तरह कानून का इस्तेमाल पावर स्ट्रक्चर को बनाए रखने और भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए किया गया। उन्होंने कहा, ’अमेरिका में भेदभाव करने वाले कानूनों के बनने से गुलामी प्रथा को बढ़ावा मिला। जिम क्रॉ के कानूनों के जरिए स्थानीय लोगों को निशाना बनाया गया।’ इसका खामियाजा हाशिए पर रहे समुदायों को लंबे समय तक उठाना पड़ा। समाज में होने वाले भेदभाव और अन्याय को सामान्य माना जाने लगा। कुछ समुदाय समाज की मुख्य धारा से अलग हो गए। इसके चलते हिंसा और बहिष्कार की घटनाएं हुईं।

इस दौरान उन्होंने कहा है कि लीगल सिस्टम ने हाशिए पर रहे समुदायों के खिलाफ इतिहास में हुई गलतियों को कायम रखने में अहम भूमिका निभाई। हाशिए पर रहने वाले सोशल ग्रुप्स को भेदभाव, पूर्वाग्रह और गैर-बराबरी का शिकार होना पड़ा। उन्होंने ने आगे कहा कि भेदभाव वाले कानूनों के पलटे जाने के बाद भी कई पीढि़यों को इनका नुकसान उठाना पड़ सकता है।

गुलामी की प्रथा के चलते ही लाखों अफ्रीकन लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ा था। अमेरिका के स्थानीय लोगों को अपनी जमीन छोड़कर जाना पड़ा। भारत में जाति प्रथा के चलते निचली जातियों के लाखों लोगों को शोषण का शिकार होना पड़ा। महिलाओं, एलजीबीटी समुदाय और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों को दबाया गया। इतिहास अन्याय के ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है।

सीजेआई ने कहा कि भारत में आजादी के बाद शोषण सहने वाले समुदायों के लिए कई नीतियां बनाई गईं। ऐसे शोषित पिछड़े समुदायों की तरक्की के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और रिप्रजेंटेशन के मौके दिए गए। हालांकि, संवैधानिक अधिकारों के बावजूद समाज में महिलाओं को भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव पर बैन लगने के बाद भी पिछड़े समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि अंबेडकर कहते थे, "संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर वे लोग खराब निकलें, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाएगा तो संविधान का खराब साबित होना तय है। वहीं, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, अगर जिन लोगों को इसे अमल में लाने की जिम्मेदारी दी गई है, वे अच्छे हैं तो संविधान का अच्छा साबित होना तय है।"

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