नई दिल्ली: आरक्षण कोटे (Reservation Quota) को बढ़ाने संबंधी सरकारी अधिसूचना को रद्द करने के पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। पिछड़ों, अति पिछड़ों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों के आरक्षण कोटे को बिहार सरकार ने पचास फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद किया था। लेकिन पटना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति हरीश कुमार की एक खंडपीठ ने 20 जून को आरक्षण बढ़ाने के फैसले को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया था।
बिहार की विधायिका ने 2023 में आरक्षण को बढ़ाकर 50 फीसद से 65 फीसद किया था। जिसके कारण खुली श्रेणी के लिए अवसर घटकर 35 फीसद रह गए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी जाति सर्वे की रिपोर्ट पर भरोसा कर यह आरक्षण कोटा बढ़ा दिया। जबकि राज्य सरकार ने खुद माना था कि पिछड़े तबकों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण के कारण अच्छी भागीदारी मिली है।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 50 फीसद आरक्षण कोटे की सीमा के भीतर आत्ममंथन करने और मलाईदार तबकों को बाहर करने की सलाह दी थी।
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