ओडिशा: महिला आयोग ने राज्य परिवहन आयोग को लिखा- पहली यात्री महिला हो तो नहीं होता अपशकुन, बस में उन्हें चढ़ने दें

सांकेतिक
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भारत में अंधविश्वास और रूढ़िवादी मान्यताओं का पारावार नहीं है। विशेषकर महिलाओं को कमतर एहसास करवाने में पुरातनपंथी सोच सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए जैसे पीरियड्स में यदि महिला ने आचार छू लिया तो खराब हो जाएगा। मांगलिक कार्यों में विधवा की उपस्थिति को अमंगलकारी मानना जैसी बातें आम हैं। इसी कड़ी में केरल के चेंगन्नूर टाउन में एक प्रसिद्ध शिवमंदिर में देवी पार्वती को ऋतुमति मानते हुए माह के कुछ विशेष दिनों के लिए गर्भगृह से हटाकर पास के एक अन्य कक्ष में रखा जाता है और ऋतुस्नान के बाद समारोहपूर्वक उन्हें वापस गर्भ गृह में प्रतिष्ठित किया जाता है। 

हाल ही ओडिशा से भी एक हैरत में डालने वाला मामला सामने आया है जिसमें एक महिला को बस स्टैंड पर एक बस में चढ़ने नहीं दिया गया। कंडक्टर ने महिला को यह कहते हुए बस में नहीं चढ़ने दिया कि उसमें कोई यात्री नहीं था और कोई पुरुष यात्री पहले चढ़ जाए तभी कोई महिला उसमें प्रवेश कर सकती हैं अन्यथा अपशगुन होने की आशंका है। 

भुवनेश्वर के बारामुंडा बस स्टैंड पर यह वाकया सामने आया और घासीराम पांडा की याचिका के बाद ओडिशा राज्य महिला आयोग ने इसपर संज्ञान लिया है। पांडा ने दावा किया कि बस कंडक्टर ने महिला को बस में प्रवेश करने से मना कर दिया क्योंकि उसमें पहले कोई पुरुष नहीं चढ़ा था और वह तभी चढ़ सकती थी जब कोई पुरुष यात्री पहले प्रवेश कर जाए। पांडा ने महिला को बस में चढ़ने से कथित तौर पर रोके जाने के बाद ओएससीडब्ल्यू में शिकायत की थी।

महिला को माना अपशकुन

कंडक्टर ने महिला को यह कहते हुए प्रवेश देने से मना कर दिया कि उसके पहले प्रवेश करने से दुर्घटना होने की संभावना हो सकती है। इस भेदभावपूर्ण अंधविश्वास को तोड़ने के लिए ओएससीडब्ल्यू ने राज्य परिवहन विभाग से कार्रवाई करने को कहा है।

आयोग ने परिवहन आयुक्त को लिखा पत्र

आयोग ने 26 जुलाई को परिवहन आयुक्त सह अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर को लिखे पत्र में कहा कि इस प्रकार की घटनाएं पहले भी हमारी जानकारी में आई हैं। इसलिए, महिला यात्रियों को भविष्य में होने वाली असुविधाओं से बचने और उनकी सुरक्षा की रक्षा के लिए और गरिमा, मैं आपसे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करना चाहूंगा कि बसों (सरकारी और निजी दोनों) में महिलाओं को पहले यात्री के रूप में अनुमति दी जाए। ओएससीडब्ल्यू को सूचित करते हुए शीघ्र कार्रवाई की मांग की है।

महिलाओं के आरक्षित हों 50 प्रतिशत सीटें

आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि परिवहन विभाग महिला यात्रियों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करें। अधिकारी ने कहा कि परिवहन विभाग बस मालिकों से अपने कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिए कहेगा। बस में महिलाओं के साथ भेदभाव करना गलत है। उन्हें पहली प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

ओडिशा प्राइवेट बस ओनर्स एसोसिएशन के सचिव देबेंद्र साहू ने कहा कि हम महिलाओं को देवी लक्ष्मी और काली का रूप मानते हैं। महिलाएं भगवान का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसलिए, इस संबंध में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

द मूकनायक ने वाराणसी के डॉक्टर बृजेश भारती से बात की जो एक समाजशास्त्री हैं । भारती कहते हैं, "यह पूरी तरह से गलत है। आप पूरे दिन अपनी मां बेटी बहन का भी तो चेहरा देखते हैं। उन्हें सम्मान प्यार देते हैं, उनको बढ़ावा देते हैं आगे बढ़ने के लिए। वह भी तो महिला ही हैं, जो आपके घर में हैं, तो कैसे आप महिलाओं को बसों में पहली सवारी के रूप में अपशगुन मान सकते हैं। बहुत ही अजीबोगरीब सी धारणाएं हैं हमारे देश में। इस पर कानूनी प्रक्रिया तो होनी ही चाहिए। कहीं ना कहीं इसके पीछे लोगों की मानसिकता भी है। वह आज भी किसी ना किसी तरह से पिछड़े हुए हैं। जहां आप चांद पर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं, और उसी देश में ऐसे अंधविश्वास भी हैं। इन्हें दूर करने के लिए जागरूकता बढ़ानी होगी, इसके लिए सब को मिलकर काम करना चाहिए।"

ग्रामीण क्षेत्र आज भी सामाजिक रूढ़िवादिता एवं कुरीतियों में जकड़े हुए हैं 

एक तरफ गाँव-गाँव में वीडियो कॉलिंग और फाइव जी के सहारे गाँवों को आगे बढा कर चमका देने के दावे किए जा रहे हों। वहीं दूसरी तरफ उसी फाइव जी के टावर के नीचे अंधविश्वासी कहानियां जन्म लेती हैं? केंद्र और प्रदेश की सरकारें महिला शिक्षा पर पूरा जोर लगाए हुए हैं, फिर कहां से समाज और विशेषकर महिला समाज में अंधविश्वास और भ्रामक कहानियां जन्म ले लेती हैं? 

अंधविश्वास कैसे कैसे?

आज भी राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में बंकाया देवी के मंदिर में अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं के साथ शर्मसार करने वाले काम हो रहे हैं। यहां भूत-प्रेत भगाने के लिए महिलाओं को पति के जूतों को सिर पर उठाने व उनमें पानी पीने जैसे कृत्य करवाकर उन्हें लज्जित किया जा रहा है। यह एक उदाहरण मात्र है बल्कि देश के कई गांवों व शहरों में इससे भी खौफनाक व गलत काम अंधविश्वास के नाम पर धड़ल्ले से अंजाम ले रहे हैं। झारखंड में डायन प्रथा हावी है जिसमें स्त्रियों को डायन करार दिया जाकर उन्हें अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं, उनका यौन शोषण किया जाता है और जुर्माना लगाया जाता है। 

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