अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन की कमान महिलाओं के हाथ

अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन की कमान महिलाओं के हाथ

सिएटल में जातिगत भेदभाव रोकने वाला विधायक प्रस्तुत करने वाली भारत की क्षमा सावंत से टोरेंटो स्कूल बोर्ड की ट्रस्टी श्रीलंका की यालिनी राजकुलसिंगम और केलिफोर्निया की विधायक अफगान मूल की आयशा वहाब तक सभी महिलाओं ने ये स्वीकार किया है कि जातिगत भेद भाव को रोकने के लिए जाति को प्रोटेक्टेड केटेगरी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।

क्षमा सावंत
क्षमा सावंत

22 फरवरी को अमेरिका में सिएटल नगर जातीय भेदभाव के विरुद्ध कानून बनाने वाला पहला शहर बना। इस कानून को पेश करने से लेकर पारित करवाने वालों में सबसे अग्रणी नाम काउंसिलर क्षमा सावंत का लिया जाता है।

यालिनी राजकुलसिंगम
यालिनी राजकुलसिंगम

8 मार्च को टोरेंटो डिस्ट्रिक्ट स्कूल बोर्ड कनाडा में पहला बोर्ड बन गया जिसने जिले के स्कूलों में जातिगत भेदभाव को पहचाना और इसके निराकरण के लिए स्थानीय मानवाधिकार निकाय से रूपरेखा तय करने में सहायता मांगी। बोर्ड ट्रस्टी यालिनी राजकुलासिंगम ने इस प्रस्ताव को बहुमत से पारित करवाने में मुख्य भूमिका निभाई।

आएशा वहाब
आएशा वहाब

22 मार्च को कैलिफोर्निया के एक सांसद आयशा वहाब ने राज्य की सीनेट में जातिगत भेदभाव को अवैध घोषित करने के लिए एक विधेयक पेश किया। विधेयक के पारित होने पर पारित कैलिफोर्निया जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म करने वाला पहला अमेरिकी राज्य बन जाएगा।

विगत एक माह में अमरीका के शहरों और स्कूल बोर्ड में जाति आधारित भेदभाव को रोकने की दिशा में सार्थक प्रयास हुए हैं और सुखद आश्चर्य की बात यह है कि शहर-स्कूल बोर्ड और राज्य यानि तीनों ही स्तरों पर ठोस कानूनी कदम उठाने के लिए महिला जन प्रतिनिधियों और विशेष कर दलित भारतीय फेमिनिस्ट एक्टिविस्टस की मुख्य सहभागिता रही है। यह कदम अमेरिका के दक्षिण एशियाई डायस्पोरा, विशेष रूप से भारतीय और हिंदू समुदायों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे माने जाते हैं।

अमेरिका में गहरी हैं भेदभाव की जड़ें

दलित लेखिका और इक्वेलिटी लैब्स की कार्यकारी निदेशक तेनमोझी सुंदरराजन ने द मूकनायक के साथ हुई एक लंबी चर्चा में बताया कि लाखों भारतीयों की स्वप्न नगरी अमेरिका में वंचित और शोषित वर्ग के लिए जिंदगी आसान नहीं है। उनकी संस्था द्वारा 2016 और 2018 में किये गए सर्वे में कई चौंकाने वाले डेटा मिले हैं।

सर्वे में यह सामने आया है कि अमेरिका में चार में से एक दलित ने मौखिक या शारीरिक हमले का सामना किया था और हर तीन में से दो ने कहा कि उन्हें काम पर भेदभाव का सामना करना पड़ा था। वे बताती हैं कि इस डेटा को नेशनल एकेडमिक कोएलिशन फॉर कास्ट इक्विटी एंड इक्वेलिटी लैब्स की आगामी रिपोर्ट से और समर्थन मिलता है, जिसमें एक नए सर्वेक्षण के प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि अमेरिकी उच्च शिक्षा में, पांच में से चार जाति-उत्पीड़ित छात्रों, कर्मचारियों और फैकल्टी ने प्रभावशाली जाति के साथियों के हाथों जातिगत भेदभाव अनुभव किया है।

तेनमोझी कहती हैं कि नेपाल, बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, और गिरमिटिया समुदायों के दक्षिण एशियाई आप्रवासी सभी अमेरिका में जातिगत भेदभाव का अनुभव करते हैं। सर्वे में यह भी सामने आया कि चार में से तीन जाति-उत्पीड़ित हितधारकों ने अपने विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में भेदभाव की रिपोर्ट नहीं की क्योंकि जाति को एक संरक्षित श्रेणी के रूप में नहीं जोड़े जाने के कारण शिकायतों पर कोई प्रभावी रोक या कार्रवाई की कोई उम्मीद नहीं थी।

"यह डेटा कार्यस्थलों, स्कूलों, पूजा स्थलों और व्यवसायों में जातिगत भेदभाव के परेशान करने वाले साक्ष्यों द्वारा भी प्रमाणित होते हैं। अमेरिका में जातिगत भेदभाव काफी ज्यादा प्रचलित है जिसकी मूल वजह हिंदुस्तानी विद्यार्थी हैं जो अपने साथ भारत में 3000 वर्षों से जड़े फैला चुके छुआछूत की प्रथा को साथ लेकर आते हैं और अकादमिक संस्थाओं से लेकर वर्क प्लेसेस यानी दफ्तरों, फैक्ट्रीज आदि तक फैला देते हैं" अम्बेडकर एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका की अध्यक्ष माया काम्बले कहती हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर माया कहती हैं कि उन्होंने स्वयं जातिगत भेदभाव को कई बार अनुभव किया। योग्यता और दक्षता के बावजूद प्रमोशन नहीं देना, महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी से दूर रखना आदि भेदभाव के नमूने हैं जो निचले तबके माने जाने वाले समुदाय के लोग रोज़ अनुभव करते हैं।

2015 में हुआ जातिवाद के विरुद्ध शंखनाद

तेनमोझी बताती हैं कि सिएटल, टोरंटो या केलिफोर्निया में जातिवाद के विरुद्ध उठ रही आवाज, यह आंदोलन इसलिए सफल हो रहा है क्योंकि अमेरिका में जाति-उत्पीड़ित लोग अकेले नहीं खड़े हैं। दलित फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट समूहों द्वारा संघर्ष का और दुनिया भर में सहयोग बनाने का एक लंबा इतिहास है। इसने हजारों व्यक्तियों और 150 संगठनों को प्रेरित किया है जिन्होंने पूरे सिएटल और देश से जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के लिए अपना उत्साहपूर्ण समर्थन व्यक्त किया है। इनमें इक्वैलिटी लैब्स, उत्तरी अमेरिका का अंबेडकर एसोसिएशन, सिएटल इंडियंस का गठबंधन, भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल, नेशनल एकेडमिक कोएलिशन फॉर कास्ट इक्विटी और साउथ एशियन फॉर ब्लैक लाइव्स शामिल हैं।

तेनमोझी बताती हैं कि शुरुआत 2015 में हुई थी, जब हमने #Dalitwomenfight टूर के साथ ब्लैक एंड ब्राउन एकजुटता के काम में शामिल होना शुरू किया था। यह दौरा अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच से जाति आधारित यौन हिंसा के खिलाफ बोलने वाली दलित महिलाओं, लैंगिक गैर-अनुरूपता और ट्रांस नेताओं पर केंद्रित था। यह ब्लैक लाइव्स मैटर, कार्यकर्ता संघों, वाशिंगटन विश्वविद्यालय के संकाय और छात्रों के साथ-साथ शहर में नस्लीय और लैंगिक न्याय समूहों के नेताओं के साथ एकजुटता बनाने का एक मंच था।

भारत के दलित कार्यकर्ताओं के एक समूह ने उत्तरी अमेरिका के 16 शहरों में जिसमें न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स और सिएटल शामिल हैं ,में जातिगत रंगभेद पर "चुप्पी तोड़ने" और जाति आधारित यौन हिंसा को उजागर करने के लिए मार्च शुरू किया। तेनमोझी कहती हैं, "जाति आधारित भेदभावों को समाप्त करने की हमारी प्रतिबद्धता में हम एक दक्षिण एशियाई-अमेरिकी समुदाय के रूप में एकजुट हैं। "पहले सिएटल, अब राष्ट्र!" हमारा उद्देश्य है।

स्कूलों में जातिगत गालियां, तिरस्कार

कॉलेज की छात्रा और सदन - कनाडा के दक्षिण एशियाई दलित आदिवासी नेटवर्क की एक युवा सदस्य तृणा कुमार बताती हैं कि जातिगत अपमान का शिकार होने पर कैसा महसूस होता है, ये बताना मुश्किल है। अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए तृणा कहती हैं, उन्हें अपने गहरे रंग के बारे में भेदभावपूर्ण टिप्पणियों को लेकर कई बार जलील किया गया, उच्च-जाति के रीति-रिवाजों का पालन नहीं करने के लिए उपहास किया गया था, और दलित ईसाई होने के लिए ताने मारे गए थे। तृणा कहती हैं कि वो अक्सर अपने स्कूल के माहौल में व्याप्त जातिगत भेदभाव से भ्रमित और आहत रहती थी।

तृणा आगे कहती हैं कि जब एक नई सहेली को पता चला कि वो दलित है, तो सहेली ने अपने माता-पिता के अंतर्जातीय संबंधों के विरोध के कारण अचानक ही दोस्ती तोड़ दी। अपनी सहेली के व्यवहार में अचानक बदलाव से तृणा स्वयं हैरान रह गई, लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि प्रभावशाली जाति के माता-पिता अपने बच्चों को अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक संबंधों में शामिल नहीं होने देते हैं।

अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन की कमान महिलाओं के हाथ
“मुंबई की झोपड़पट्टी से जेएनयू तक का सफ़र, अब जेएनयू से अमेरिका का सफ़र” — सरिता माली

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