राजस्थान: हिन्दी दिवस पर आदिवासी, दलित समाज की बेटियों को राज्य स्तरीय सम्मान

राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा के पांच बालक बालिकओं को मिला सम्मान। खास बात हिन्दी दिवस पर सम्मान पाने वालों में कंजर समाज की छात्रा तनीषा कर्मावत भी शामिल हैं. जिस समाज में बेटियों की शिक्षा का आज भी विरोध होता है वहीं तनीषा खुद सामाजिक विरोध के बावजूद पढ़ाई जारी रखे हुए है।
राजस्थान: हिन्दी दिवस पर आदिवासी, दलित समाज की बेटियों को राज्य स्तरीय सम्मान

जयपुर। हिन्दी पखवाड़े के बीच राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले से अच्छी खबर सामने आई है। जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा में अध्ययनरत आदिवासी व दलित सामज की बेटियों को हिन्दी दिवस पर राज्य स्तर पर सम्मान से नवाजा गया। राज्य स्तर पर सम्मान पाने वाली इन बेटियों ने गत वर्ष कक्षा दसवीं की वार्षिक परीक्षा में हिन्दी विषय में सौ प्रतिशत अंक हांसिल किए थे। बेटियों का सह सम्मान दलित और आदिवासी समाज में बेटियों की शिक्षा के प्रति जागृति का संदेश देता है।

हिन्दी दिवस पर राज्य स्तर पर सम्मान पाने वाली बेटियों ने ग्रामीण अंचल के सरकारी स्कूल में पढ़कर शिक्षा के क्षेत्र में यह सम्मान प्राप्त किया। इसे जानने के लिए द मूकनायक की टीम राजधानी जयपुर से डेढ़ सौ किलोमीटर सफर तय कर सवाईमाधोपुर जिले में ठेठ ग्रामीण इलाके में बसे अदलवाड़ा गांव पहुंची। उबड़-खाबड़ व टूटी सड़कों पर जमे कीचड़ से होते हुए टीम राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा पहुंची। यहां कक्षा में सुव्यवस्थित तरीके से पढ़ाई चल रही थी। हिन्दी विषयाध्यापक लक्षमीनारायण बैरवा हिन्दी विषय पढ़ा रहे थे।

राउमावि अदलवाड़ा सवाईमाधोपुर में हिंदी पढ़ाते शिक्षक लक्ष्मीनारायण बैरवा, राजस्थान
राउमावि अदलवाड़ा सवाईमाधोपुर में हिंदी पढ़ाते शिक्षक लक्ष्मीनारायण बैरवा, राजस्थान फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

यहां द मूकनायक ने हिन्दी विषय में सौ प्रतिशत अंक हांसिल करने वाली छात्रा तनीषा कर्मावत से बात की। छात्रा कर्मावत ने द मूकनायक को बताया कि हिन्दी विषय में सौ प्रतिशत अंक हासिल करने पर उसे राज्य स्तर पर सम्मान मिला। यह उसके लिए गर्व की बात है। उसने कहा कि "मैं कंजर समाज से आती हूं। हमारे समाज में बेटियों की शिक्षा को आज भी गलत माना जाता है। सामाजिक विरोध के बाद भी में पढ़ती रही। आज जब मुझे राज्य स्तर पर सम्मान मिला तो मेरे समाज के लोग दबी जबान से तारीफ तो कर रहे हैं, लेकिन सामाजिक कुरितियों के बंधन में बंधे होने से खुले तौर पर बेटियों की शिक्षा का सपोर्ट करने से गुरेज भी कर रहे हैं। आज मेरा समाज दबी जबान से शिक्षा की तारीफ कर रहा है। कल खुलकर बेटियों की शिक्षा के लिए प्रचार-प्रसार भी करेगा।"

दलित वर्ग से आने वाली तनीषा कर्मावत की तरह ही यहां आदिवासी समाज से आने वाली गोलमा मीना, सपना मीना, वंदना मीना व छात्र संजय मीना को भी हिन्दी दिवस पर राज्य स्तर पर सम्मान से नवाजा गया। वंदना मीना व संजय मीना कक्षा 10वीं पास करने के बाद स्कूल छोड़कर आगे शिक्षा के लिए अन्यंत्र चले गए। जबकि तनीषा, सपना व गोलमा इसी स्कूल में रहकर आगे की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। इन छात्राओं ने शिक्षा में हिन्दी भाषा और जीवन संघर्ष को लेकर अपने विचार द मूकनायक के साथ साझा किए।

तनीषा कर्मावत ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि "मैं पढ़ लिख कर समाज में बेटी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करूंगी। मेरा सपना है कि में आईपीएस बनकर हमारे समाज में व्याप्त कुरितियों को खत्म कर समाज को मुख्य धारा में लाऊं। ताकि हमारा सामज भी सम्मान से सर उठा कर जी सके। वह पढ़ लिखकर सरकारी सेवा में रहकर देश सेवा कर सकें। मैंने ठान लिया है। मैं शिक्षा के लिए अंतिम साँस तक संघर्ष करूंगी। समाज में जागृति लाउंगी। बेटियों को सम्मान दिलाने के लिए लडूंगी।"

तनीषा कर्मावत आगे कहती है कि मुझे अपने समाज के बारे में बताने में कोई हिचक नहीं है। स्कूल में कभी मेरे साथ मेरी जाति या समाज को लेकर भेदभाव नहीं हुआ। तनीषा कहती है बचपन में खेल कूद में व्यस्त रही। मेरे पापा अनपढ़ हैं, लेकिन वो चाहते थे कि मेरे बच्चे पढ़ें। बचपन में जब कभी हम स्कूल नहीं जाने के लिए बहाना बनाते, तो पापा हम भाई बहनों को स्कूल छोड़ कर आते।

तनीषा कर्मावत
तनीषा कर्मावत

'समाज के दबाव में करने लगे पापा भी पढ़ाई का विरोध'

तनीषा कहती है कि जब मैं कक्षा आठ में पहुंची तो पापा भी पढ़ाई छोड़ने के लिए दबाव डालने लगे थे। लड़ते थे। स्कूल जाने के कारण समाज के लोग हम दोनों बहनों को टॉर्चर करते रहते थे। मेरे परिवार के लोग इस बारे में कुछ नहीं बोलते थे, लेकिन दूसरे लोग बोलते रहते थे। समाज का दबाव बढ़ने लगा तो परिवार भी दबे मन से हमारी शिक्षा छुड़वाने का दबाव देने लगा। मेरी शिक्षा को लेकर बाते बनाते तो मैंने समाज के लोगों को बोला की मुझे पढ़ने से रोका तो में कानून की मदद ले सकती हूं। आप के खिलाफ कार्रवाई होगी फिर मत कहना।

तनीषा कहती है मैं कक्षा 8वीं में थी तभी से हम दोनों बहनों के शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे। हमारी उम्र उस वक्त 14-15 साल रही होगी। तनीषा ने द मूकनायक को बताया कि यह सच है कि हमारे समाज में 15 साल की बच्चियों की शादी कर दी जाती है। इसके अलावा भी हमारे समाज में बहुत कुछ होता है। बेटियों को बेच देने तक की बात तनीषा कहती है।

उसने कहा कि "जब मैं कक्षा आठवीं में पढ़ रही तो हमारे समाज के लोग मेरे पापा को ताना मारते थे कि यह इतनी जवान हो गई है। इसकी शादी क्यों नहीं करते हो। इसको घर रख रखा है। शादी नहीं हो रही है तो इसको बेच दो। अलग धंधा कराने के लिए कहीं बाहर भेज दो", तनीषा ने कहा कि "मेरी बहन व मेरी मां भी कम उम्र में शादी करने व पढ़ाई छुड़वाने के खिलाफ थी, लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाती थी। क्योंकि हमारे समाज में आज भी औरतों की कोई बात नहीं सुनी जाती है।"

तनीषा ने कहा कि "मैं निरंतर स्कूल आती रही। यहां बहुत कुछ सीखने को मिला। सामाजिक जीवन के बारे में भी। बच्चियों की जिंदगी के बारे में भी।" उसने कहा "उस समय हमारे यहां बस्ती में आनन्दी कलक्टर मेडम भी आती थी। वो समाज की महिलाओं से बात करती। उन्हें सामाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए जागरुक करती थी। कहती थी कि बच्चियों के साथ कुछ भी अनैतिक काम हो तो तत्काल हेल्प लाइन नम्बर पर फोन कर मदद मांग सकती हैं। नाबालिग बच्चिायां 1098 पर फोन कर सकती हैं। कलक्टर मेडम की बातों से प्रेरित होकर ही मैं कम उम्र में ही समाज की कुरितियों का विरोध करने लगी। इस पर समाज के लोग कहने लगे कि यह लड़की बहुत ज्यादा बालने लगी है। इसे स्कूल मत भेजो।"

तनीषा ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि मेरे समाज के लोग मेरे घर वालों से कहते कि पढ़ाई से क्या होगा। नौकरी तो लगने से रही। अपने समाज में कौन नोकरी देगा। तनीषा ने कहा मैं समाज से कहती हूं कि जब हम पढ़ेंगे ही नहीं तो नौकरी कौन देगा। समाज पढ़ेगा तो नौकरी भी मिलेगी। यह लोग पढ़ते ही नहीं, तो नौकरी कहां से मिलेगी। उसने बेबाकी से कहा "मैंने समाज को बोल दिया आप लोग पढ़ोगे ही नहीं तो नौकरी कौन देगा आपको? पढ़ोगे तो सब को नौकरी मिलेगी। अगर मेहनत करोगे तो सफलता सभी को मिलेगी। फिर भी समाज के लोग मेरे पापा को भड़काने में रहते थे।"

"जब मैं कक्षा 9वीं में पहुंची तो समाज के तानो से तंग आकर मेरे पापा ने मेरी सगाई कर दी। इस दौरान मेरी बड़ी बहन की शादी भी कर दी। लगभग 15 साल की उम्र में बड़ी बहन के साथ शादी के लिए मुझ पर भी दबाव बनाया गया, लेकिन अध्यापकों की वजह से मेरी कम उम्र में शादी होने से बच गई", तनीषा कहती है "मैं मेहनत से पढ़ती हूं। अध्यापक भी गांव के लोगों से मेरी तारीफ करते रहते थे। अध्यापकों की वजह से सर्वसमाज के लोग मेरे पक्ष में आ गाए। मेरी शादी का विरोध कर मम्मी पापा को समझाया। मम्मी पापा गांव के लोगों की बात मान गए। इससे मेरी बचपन में शादी नहीं हुई।"

तनीषा ने कहा कि मैं कक्षा 10वीं में आई तब मेरी पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई। समाज के लोग शुरू से मेरी पढ़ाई का विरोध कर रहे हैं। आज भी विरोध में है। यह लेाग मेरे पापा को भड़काते रहते थे। ऐसे में मेरे पापा शराब के नशे में रात को मुझे डाटते रहते थे। कहते कि तूने पढ़ाई का यह सिला दिया तू समाज के लोगों से भी उलटा बोलने लगी है। उन्हें जवाब देने लगी है। पहले मैं किसी से कुछ नहीं बोलती थी, लेकिन जब मेरी पढ़ाई रुकवाने के लिए यह लोग परिजनों को भड़काते तो मैं भी समाज के विरोध में बोलने लगी थी।

तनीषा कहती है कि हर दिन मेरे पापा देर रात तक चिल्लाते रहते थे। उनके शोर शराबे की वजह से मैं कभी शाम के वक्त पढ़ नहीं पाई थी। मैं कक्षा 10वीं की पढ़ाई की चिंता में रोती हुई शाम को साढ़े आठ बजे सो जाती। फिर सुबह तीन बजे उठ कर पढ़ाई करती थी। उस वक्त मेरे पापा व परिवार के लोग नींद में होते थो। इसलिए घर में शांत माहौल रहता था। स्कूल भी जाती थी। घर का काम भी करती थी।

तनीषा ने कहा कि "कक्षा 10वीं में पहुंचने से पहले तक मैं घर का काम भी नहीं करती थी। कक्षा 10वीं की पढ़ाई के दौरान मेरे पापा कहते थे तु घर का काम नहीं करती। खाना बनाना भी नहीं जानती। समाज में नाक कटवाएगी। पापा के तानों के चलते ही कक्षा दस में ही पढ़ाई के दबाव के साथ मैंने खाना बनाना भी सीखा।"

तनीषा ने कहा कि "मैं आगे पढ़ कर आईपीएस बनना चाहती हूं। में आईपीएस बनूंगी तो मुझे देखकर हमारे समाज की दूसरी लड़कियों की भी पढ़ने की इच्छा होगी। हमारे समाज के तो लड़के भी नहीं पढ़ना चाहते। घर वाले भी नहीं पढ़ाते हैं। क्योंकि इनके दिमाग में यह बात है कि हमें तो कोई नौकरी देगा नहीं। मेहनत करना नहीं चाहते। समाज में यह प्रचलित है कंजरो को कोई नौकरी नहीं देता। सब बड़ी जाति के लोगों को नौकरी देते हैं। मैं कहती हूं कि समाज में यह गलत धारणा है। आप मेहनत करो सफलता मिलेगी। मैं पढ़ी तो आज मुझे राज्य स्तर पर सम्मान मिला। अब हमारी बस्ती में दबी जबान सब बोल रहे थे कि यह किस्मत की बात है कि हमारे समाज की बच्ची को राज्य स्तर पर सम्मान मिला है। मैं कहती हूं मेहनत करेंगे तो सब उस इस जगह पर पहुंचेंगे। जाति व समाज को कोई नहीं देखता। अभी मैं जयपुर गई तो सब एक साथ बैठे। मेरे साथ वहां कोई भेदभाव नहीं हुआ। मुझे भी अन्य बच्चों की तरह सम्मान मिला।"

तनीषा ने द मूकनायक से कहा कि हमारे समाज में कम उम्र में बेटियों की शादी कर दी जाती है। कुछ को बेच भी देते हैं। यह सब मुझे बहुत बुरा लगता है। मैं परिवार में महिलाओं से बोलती हूं कि बेटियों को पढ़ाओ, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। मेरे से भी कम उम्र की बच्चियों की शादी हो चुकी है। इन सब कुरितियों को खत्म कर शिक्षा की अलख जगाना ही मेरा लक्ष्य है।

तनीषा कहती है कि हिन्दी हमारी मातृ भाषा है। यह हमारी राष्ट्र भाषा ना सही यह हमारी राज्य भाषा अवश्य है। हिन्दी बोलने में हमें हिचकिचाहट भी नहीं होती है। सरल और सुन्दर भाषा भी है। हिन्दी विषय में मात्राओं, कामा, पूर्ण विराम आदि छूटने पर नम्बर काट लिए जाते हैं। यह ऐसी भाषा है कि इसमें हमें हर शब्द का अच्छे से बताया जाता है। जबकि अन्य भाषाओं में नहीं होता। हिन्दी भाषा में प्रयायवाची शब्दों के माध्यम से हमें अन्य भाषाओं को भी समझने में आसानी होती है। तनीषा कहती है कि हिन्दी भाषा हमारे पूर्वजों की भाषा है। इसे बनाए रखने के लिए हमें जागरुकता लाने की जरुरत है। हिन्दी भाषा में हमें सतप्रतिशत अंक मिले हैं। इसी वजह से हमें राज्य स्तर पर सम्मान मिला है। इससे हमारे अध्यापकों और अभिभावकों को भी बहुत प्रसन्नता हुई है। हिन्दी बहुत अच्छी है और यह हमें आगे भी बढ़ाती है।

सपना मीना
सपना मीना

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा में तनीषा के साथ ही सपना मीना को भी हिन्दी विषय में सौ प्रतिशत अंक लाने पर राज्य स्तर सम्मान मिला है। सपना के पिता सामान्य किसान हैं। मां गृहणी हैं, लेकिन सपना अब पुलिस सेवा में जाकर सेवा करना चाहती है। सपना ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि मुझे राज्य स्तर पर सम्मान पाकर बुहत अच्छा लगा। सपना कहती है 1949 में संविधान सभा ने एक मत होकर हिन्दी को स्वीकार किया था। तभी से हिन्दी भाषा को महत्व दिया जाता है। उसने अन्य विद्यार्थियों को संदेश देते हुए कहा कि हिन्दी विषय में हमें छोटी-छोटी बातों का ध्यान देकर प्रश्नपत्र हल करना चाहिए।

राज्य स्तर पर सम्मानित छात्रा गोलमा मीना ने कहा कि यह सम्मान पाकर हमें बहुत अच्छा लगा। हमारा सम्मान हुआ। हमें राज्य स्तर पर जाकर हिन्दी विषय के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला। गोलमा के पिता भी खेती करते हैं। वो कहती है शिक्षकों ने हमे अच्छे से पढ़ाया। इसी लिए आज हमें राज्य स्तर पर सम्मान मिला है। मैं भी शिक्षक बनना चाहती हूं।

हिंदी विषयाध्यापक लक्षमीनारायण बैरवा
हिंदी विषयाध्यापक लक्षमीनारायण बैरवाफोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा में हिंदी विषयाध्यापक लक्षमीनारायण बैरवा ने द मूकनायक से कहा कि मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि "मेरे द्वारा पढ़ाए गए पांच बालक राज्य स्तर सम्मानित हुए। मुझे अपने आप पर तथा ठेठ ग्रामीण अंचल में रह रहे इन होनहार बच्चों पर भी गर्व है। ऐसे बच्चे होना चाहिए। अभी हिन्दी पखवाड़ा चल रहा है। हमने हिन्दी पखवाड़े के तहत हिन्दी दिवस भी बनाया है। हिन्दी दिवस के माध्यम संदेश दिया कि हमें हिन्दी वर्तनी पर ध्यान देना चाहिए। हिन्दी वास्तव में बोलने में बहुत आसान है, लेकिन एक विद्यार्थी के लिए परीक्षा में लिखकर सौ प्रतिशत अंक हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती है। यहां एक मात्रा में चूक से शब्द का अर्थ बदल जाता है।"

राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा की कक्षाओं में लगे सीसीटीवी कैमरे
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अदलवाड़ा की कक्षाओं में लगे सीसीटीवी कैमरे फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

कार्यवाहक प्रधानाचार्य सुशील कुमार जैन ने कहा कि "हमारे यहां प्रधानाचार्य, उप प्रधानाचार्य, लेवल 2 का एक पद, एल वन का एक पद, कंप्यूटर ऑपरेटर, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के दो पद खाली हैं। इसके बावजूद हमारे यहां बेहतर अध्यापन करवाया जा रहा है। मेरे पास प्रधानाचार्य का प्रभार है। मैं वयाख्याता भी हूं तो मुझे बच्चों को विषय पढ़ाना भी जरुरी है। पीईईओ का प्रभार भी है। व्यस्तता तो रहती है। हमारा स्टाफ टीम भावना से काम कर रहा है। यही वजह है कि आज हमारे स्कूल को राज्य स्तर पर पहचान मिली है," जैन कहा कि "स्कूल के कक्षों में दरार आ रही है। यह भवन 2017 में ही बना था। इस सम्बंध में उच्च अधिकारियों को अवगत करवा दिया है। स्कूल में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। सीसीटीवी से पढ़ाई व अनुशासन बनाए रखने में आसानी रहती है।"

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