उत्तर प्रदेश: 'कामगार' की पहचान मिले, न्यूनतम वेतन की 'गारंटी'- घरेलू कामगार महिलाएं

अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार महिला दिवस पर विचार गोष्ठी आयोजित
उत्तर प्रदेश: 'कामगार' की पहचान मिले, न्यूनतम वेतन की 'गारंटी'- घरेलू कामगार महिलाएं

लखनऊ। यूपी के लखनऊ में अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस यानी 16 जून को विज्ञान फाउंडेशन की ओर से अलीगंज पलटन छावनी स्थित एक परिसर में विचार गोष्ठी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में शहर के अलग-अलग स्थानों से घरेलू काम (चूल्हा-चौका, बर्तन, झाड़ू-पोछा) करने वाली महिलाएं एकत्रित हुईं। सभी महिलाओं के जुबान पर बस एक ही बात थी, इस रोजगार में न बचत है और न ही कोई सुरक्षा। काम के दौरान यदि कोई दुर्घटना हो जाए तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। हालांकि विज्ञान फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में यूपी सरकार की श्रम परिवर्तन अधिकारी भी मौजूद थीं। उन्होंने घरेलू काम करने वाली महिलाओं को उनका भविष्य सुरक्षित करने के लिए सरकारी योजनाओं की जानकारी दी।

दरअसल, 16 जून 2023 को अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस था। इस मौके पर विज्ञान फाउंडेशन द्वारा पलटन छावनी आश्रय गृह पर अंतर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पलटन छावनी, जानकीपुरम विस्तार, मोहिबुल्लापुर, जुगौली, पूर्वी दिन खेड़ा श्रम विहार नगर सहित अन्य स्थानों से घरेलू कामगार महिलाएं बड़ी संख्या में प्रतिभाग करने पहुंची थीं।

इस कार्यक्रम में आई घरेलू काम करने वाली ख़लीमा खातून बताती हैं, "मैं लगभग 35 साल से इस काम को कर रही हूं। इस काम में कई बार हमारा पैसा नहीं दिया जाता। जब देरी हो जाती है तो पैसा भी काट लिया जाता है। दिन में मुश्किल से दो तीन घरों में काम कर पाती हूँ। अब तक मैंने सैकड़ों घरों में चूल्हा-चौका किया है। कई जगह साल भर से ज्यादा हो जाने के बावजूद पैसा नहीं बढ़ाया गया। इस दौरान मुझे काम छोड़ना पड़ा। अब पिछले एक साल से मेरा एक हाथ टूट गया। तब से काफी समस्या हो गई। अब कम काम ही कर पाती हूँ।"

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घरेलू काम करने वाली सुषमा बताती हैं, "कई बार हमसे आवश्यकता से अधिक काम ले लिया जाता है, लेकिन उसका पैसा हमें नहीं मिलता। जब मैं लोगों के घर काम करने जाती हूँ तो कई बार उनके घर किसी कार्यक्रम का आयोजन होता है उसमें काम बढ़ जाता है। मुझे ज्यादा खाना पकाना पड़ता है और बर्तन भी अधिक धोने पड़ते हैं। यह सब काम करने के बावजूद भी हमें उतना ही पैसा दिया जाता है। जब हम ज्यादा पैसे मांगते हैं तो किसी दूसरे को काम पर रखने की धमकी दी जाती है।"

संगोष्ठी को सम्बोधित करते विज्ञान फाउंडेशन के निदेशक संदीप खरे
संगोष्ठी को सम्बोधित करते विज्ञान फाउंडेशन के निदेशक संदीप खरे

संगोष्ठी में विज्ञान फाउंडेशन के निदेशक सन्दीप खरे घरेलू कामगार महिलाओं को सुझाव देते हैं कि, अधिकार पाने की एक लंबी लड़ाई है, लेकिन हम मिलकर लड़ेंगे तो जीतेंगे जरूर। घरेलू काम पर जाने वाली महिलाओं और बेटियों के लिए हमें न्यूनतम पारिश्रमिक और दुर्घटना के दौरान न्यूनतम मदद की मांग एक संगठन के माध्यम से उठा सकते है। इसके लिए हम सब मिलकर प्रयास कर रहे हैं। खरे ने बताया कि जिस प्रकार भवन निर्माण श्रमिकों के लिए उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के तहत कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। उसी प्रकार प्रदेश में काफी संख्या घरेलू कामगार बहनों की है इनके लिए भी अलग से बोर्ड बनाकर उनके लिए योजनाएं संचालित की जा सकती हैं।

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इस अवसर पर श्रम प्रवर्तन अधिकारी नीलम ने कहा कि घरेलू कामगार श्रमिकों के लिए श्रम योगी मानधन योजना के जरिए कामगार लोग खुद को सुरक्षित कर सकते हैं। इसके लिये सरकार की ओर से समय-समय पर कैम्प भी लगाए जाते हैं। हालांकि अभी कोई अलग से घरेलू कामगार श्रमिकों का बोर्ड नहीं बन पाया है। लेकिन इन योजनाओं के माध्यम से श्रमिक कुछ अंशदान कर अपना भविष्य सुरक्षित कर सकते हैं। सरकार की इस योजना के जरिए व्यक्ति को 60 वर्ष की उम्र के बाद 3 हजार रुपए की राशि हर माह पेंशन के रूप में मिलती रहेगी।

कार्यक्रम में उपस्थित सीआईटीयू के प्रदेश महामंत्री प्रेम नाथ राय ने कहा देश में वर्तमान में, घरेलू कामगारों को अक्सर बहुत कम मजदूरी, अत्यधिक लंबे काम के घंटों का सामना करना पड़ता है। उनके पास साप्ताहिक आराम के दिन की कोई गारंटी मतलब कोई छुट्टी नहीं होती है और कई बार शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण या आंदोलन की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के प्रति संवेदनशील होते हैं। घरेलू कामगारों का शोषण आंशिक रूप से राष्ट्रीय श्रम और रोजगार कानून में अंतराल के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। एक्शन एड एसोसिएशन के अरविंद कुमार ने कहा कि देश में आईएलओ का मानना है की घरेलू कामगारों की संख्या 4.75 मिलियन होगी जबकि देश के ट्रेड यूनियन का कहना है कि देश में 10 मिलियन से अधिक घरेलू कामगार श्रमिक हैं। फिर भी देश के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो अभी घरेलू कामगार श्रमिकों के लिए अलग से कोई कानून वह बोर्ड नहीं बनाया गया है जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। प्रदेश में घरेलू कामगार महिला श्रमिकों के लिए उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कराने हेतु किसी तरह की कोई कानून व्यवस्था नहीं है।

विज्ञान फाउंडेशन से रिचा चंद्रा ने बताया कि घरेलू कामगारों की काम के घंटे तय नहीं है , कार्यस्थल पर महिला श्रमिकों को हिंसा का शिकार होना पड़ता है इसका मूल कारण यह है कि इनके लिए अलग से कोई कानून का ना होना है। कार्यक्रम में अध्यक्षता कर रही भारतेंदु हरिश्चंद्र वार्ड की पूर्व पार्षद रूपाली गुप्ता ने कहा कि इन कामगार बहनों के लिए हम सबको आगे आने की जरूरत है और इसके लिए हम लोग सरकार के साथ समन्वय करके इनके हित में कानून बनाने के लिए बात कर सकते हैं । उन्होंने बताया कि इस कार्य हेतु स्वयंसेवी संस्थाओं और श्रम संगठनों के सुझाव की अति आवश्यकता है। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में घरेलू कामगार महिलाएं उपस्थित थीं।

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