भोपाल। मध्यप्रदेश में पहली बार बेटे के रहते हुए विवाहिता बेटी को अनुकम्पा नियुक्ति मिलने जा रही है। राज्य कैबिनेट मंगलवार को श्रद्धा मालवी पुत्री स्व. आरएस राठौर को नियुक्ति का प्रस्ताव देने जा रही है। यह प्रदेश का पहला मामला है, जिसमें बेटे के रहते विवाहित बेटी को अनुकंपा नौकरी मिलेगी।
हालांकि मध्यप्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव श्रीनिवास शर्मा ने साफ कर दिया है कि ये सिर्फ एक ही मामले में लागू होगा। बाकियों के लिए इस पर कोई नीति नहीं बनी है। लेकिन ये भी स्पष्ट है कि इस मामले के जरिए बाकियों का रास्ता जरूर खुल जाएगा। मतलब यह कि इस मामले में कैबिनेट इस संबंध में बने नियमों को सिथिल करते हुए नियुक्ति देगी। लेकिन इसके साथ ही प्रदेश में ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के 550 मामले लंबित हैं। बता दें कि राज्य सरकार यह नियुक्ति इंदौर हाई कोर्ट की बड़ी बेंच के आदेश पर करने जा रही है।
इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा है कि राज्य सरकार अनुकंपा नियुक्ति में लैंगिक भेदभाव नहीं कर सकती। मध्यप्रदेश में 29 सितंबर 2014 के अनुकंपा नियुक्ति के नियमों के हिसाब से पुत्र के जीवित रहते विवाहित पुत्री को नौकरी न देने का प्रावधान है। कोर्ट ने इस नियम को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 39 (जो लैंगिक आधार पर समानता प्रदान करता है) के विपरीत मानते हुए खारिज कर दिया है।
इंदौर हाई कोर्ट ने 2018 में मीनाक्षी बनाम राज्य सरकार मामले में भी एक ऐसा निर्णय दिया था। कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ बेटे ही नहीं, विवाहित बेटी को भी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है। शासन की नीति पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह लिंगभेदी है। एक तरफ तो महिलाओं को देवियों का दर्जा दिया जाता है, दूसरी तरफ उनके साथ बार-बार भेदभाव किया जाता है।
मामला खरगोन निवासी मीनाक्षी का था। उसके पिता जोरावरसिंह राणावत पुलिस में हेड कांस्टेबल थे और डीआरपी लाइन में पदस्थ थे। नौकरी के दौरान 14 फरवरी 2015 को उनकी मौत हो गई। इसके बाद विवाहित बेटी मीनाक्षी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए शासन को आवेदन दिया था।
मीनाक्षी ने आवेदन के साथ मां और दो भाइयों के शपथ-पत्र भी प्रस्तुत किए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि मीनाक्षी को अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। आवेदन करने के करीब एक साल बाद 26 अगस्त 2016 को शासन ने मीनाक्षी का आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि शासन की नीति के मुताबिक विवाहित बेटी को पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है। मृतक की पत्नी और दो बेटे भी हैं।
उनके अनापत्ति देने से शासन की नीति को बदला नहीं जा सकता। इस पर मीनाक्षी ने हाई कोर्ट में याचिका पेश की थी। उस समय जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस वीरेंदरसिंह की डिविजनल बेंच ने याचिका स्वीकारते हुए शासन को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन पर गुणदोष के आधार पर विचार करें।
हाईकोर्ट इंदौर के फैसले के बाद राज्य सरकार ने कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट में रखा। जिसके बाद अनुकम्पा के सम्बंध में जीएडी के नियमों को शून्य करते हुए नियुक्ति देने का रास्ता साफ हुआ है। अब अन्य मामलों में भी कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर नियुक्ति दी जा सकती है।
प्रदेश के विभिन्न विभागों में अनुकंपा नियुक्ति के 550 मामले लंबित हैं। कुछ मामले न्यायालय में विचाराधीन है। तो कुछ जीएडी में लंबित है। सूत्रों के अनुसार जल्द ही जीएडी के अनुकम्पा नियुक्ति के नियमों को संशोधित कर कैबिनेट में लाया जा सकता है। जिसके बाद अन्य प्रकरणों में भी नियुक्तियों का रास्ता साफ हो जाएगा।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.