
मुंबई- पत्रकार पूजा चंगोइवाला ने नवम्बर 19 को अपना दूसरा लाडली मीडिया एवं विज्ञापन पुरस्कार (जेंडर सेंसिटिविटी श्रेणी) प्राप्त किया। इस बार उन्हें यह सम्मान नीमान रिपोर्ट्स (Nieman Reports) में प्रकाशित उनकी फीचर स्टोरी , "द लोनली क्रूसेड अगेंस्ट कास्ट" के लिए दिया गया, जो दलित महिला पत्रकार और 'द मूकनायक' की संस्थापक मीना कोटवाल के संघर्ष पर केंद्रित है।
यह ऑनलाइन न्यूज़ आउटलेट भारत के दलित, आदिवासी और अन्य उपेक्षित समुदायों को आवाज़ देकर पत्रकारिता जगत में नई बहस छेड़ रहा है। चांगोईवाला का यह आलेख बिना किसी लाग-लपेट के जीवंत शैली में कोटवाल द्वारा न्यूज़ रूम में जातिगत भेदभाव के खिलाफ किए गए अथक संघर्ष और ज़मीन से कुछ बेहतर बनाने के उनके प्रयासों को उजागर करता है।
लाडली फाउंडेशन और यूएनएफपीए इंडिया की सांझेदारी में मुंबई में एक भव्य आयोजन में अवॉर्ड वितरित किये गए जहां चंगोइवाला के काम को जाति और लिंग पूर्वाग्रह के दोहरे हमले को सीधे निशाने पर लेने के लिए सराहा गया। जजों ने अपने साइटेशन पत्र में कहा, "एक महिला पत्रकार के जाति और लिंग भेदभाव के खिलाफ संघर्ष को शक्तिशाली ढंग से चित्रित करने और मीडिया में समावेशिता व समानता की जरूरत को रेखांकित करने के लिए पूजा चंगोइवाला को यह सम्मान दिया जा रहा है"। एक x पोस्ट में चंगोइवाला ने अपनी एडिटर लॉरा कोलारूसो को धन्यवाद दिया, जिन्होंने स्टोरी पर छह महीने की खोजबीन में उनका साथ दिया। उन्होंने लिखा, "यह आपके बिना नामुमकिन होता", साथ ही फिर लाडली टीम और यूएनएफपीए को ऐसी चर्चाओं को जिंदा रखने के लिए धन्यवाद दिया।
चंगोइवाला की रिपोर्टिंग कोटवाल के बीबीसी हिंदी के दिनों की चोटों को ट्रेस करती है, जहां रोजमर्रा के अपमान और खुले तौर पर रुकावटें उन्हें परेशान कर देती थीं, फिर 2021 में उन्होंने अत्यंत छोटे बजट पर 'द मूकनायक' लॉन्च करने का साहसिक कदम उठाया। यह प्लेटफॉर्म उन कठोर वास्तविकताओं को उजागर करने लगा जो बड़े अखबार छोड़ देते हैं: क्रूर जातिगत हमले, किसानों का जमीन हड़पने वाले सौदों में नुकसान, ग्रामीण इलाकों में ढहते स्कूल और क्लिनिक, और देश के भूले-बिसरे कोनों में महिलाओं का कठिन जीवन। कोटवाल की टीम न सिर्फ गड़बड़ी को उजागर करती है बल्कि स्थानीय नायकों की जीत को भी ज़माने के सामने लाती जो इन बाधाओं के खिलाफ लड़ रहे हैं। मीना को जान की धमकियां मिलती रहीं, पैसे की तंगी बनी रही, फिर भी द मूकनायक ने 10 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स जुटाए और अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों से सराहना हासिल कीं।
चंगोइवाला की यह जीत केवल एक पुरस्कार नहीं, बल्कि भारतीय पत्रकारिता के लिए एक जगाने वाला संदेश है – कि उसे अपने अंदरूनी गहरे धब्बों को स्वीकार करना होगा। कोटवाल की कहानी जिसे चंगोइवाला ने शब्दों में उकेरा है, यह साबित करती है कि एक व्यक्ति की जिद्द पूरे सिस्टम को हिलाने की ताकत रखती है। नीमान रिपोर्ट्स का सार भी यही है कि असली बदलाव तभी शुरू होता है, जब मीडिया कठिन मुद्दों पर फुसफुसाना बंद करके उन पर ज़ोरदार आवाज़ उठाता है।
चंगोइवाला की यह रिपोर्ट मीना कोटवाल के सफर को दर्शाती है जो अपने दलित पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद अपने हौसले और हिम्मत की बदौलत नामी मीडिया संगठन के न्यूज़ रूम तक पहुंची लेकिन वहां जाति और लिंग की बाधाएँ हावी थीं। बीबीसी हिंदी में दलित पृष्ठभूमि होने के कारण उनके विचारों को लगातार नज़रअंदाज़ किया गया और उनके रास्ते में अवरोध खड़े किए गए। आखिरकार, उन्होंने अपने अनुभवों की आग को 'द मूकनायक' की नींव रखने में लगा दिया – एक साधारण ऑनलाइन मंच, जो वंचितों और हाशिए के लोगों के लिए समर्पित है।
जातिगत अत्याचार, ग्रामीण उपेक्षा और महिलाओं की दैनिक जद्दोजहद को उजागर करने के दौरान उन्हें ट्रोल्स, आर्थिक तंगी और जान के खतरों का सामना करना पड़ा। लेकिन कोटवाल ने 'द मूकनायक' को एक ऐसा ताकतवर मंच बना दिया, जो सत्ता से सवाल करता है और गुमनाम लोगों की आवाज़ बुलंद करता है। यह पत्रकारिता के टूटे वादों पर एक सीधा प्रहार है, जो साबित करता है कि एक आवाज़ भी न्याय के लिए गूँज पैदा कर सकती है।
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