कर्नाटक के मैसूरु जिला मुख्यालय स्थित एक अस्पताल में अवैध गर्भपात कराने के रैकेट का खुलासा हुआ है। इस रैकेट में शामिल चिकित्सक व दलालों ने अब तक 900 गर्भपात कराए हैं। कर्नाटक पुलिस ने एक डॉक्टर और उसके लैब तकनीशियन को इस मामले में गिरफ्तार किया है, आरोपी भ्रूण हत्या के लिए 30 हजार रुपए तक फीस चार्ज करते थे।
डॉ. चंदन बल्लाल और उनके लैब तकनीशियन निसार ने मैसूरु जिला मुख्यालय शहर के एक अस्पताल में प्रत्येक गर्भपात के लिए कथित तौर पर लगभग 30,000 रुपए लिए। उन्होंने बताया कि इन दोनों को पिछले सप्ताह हिरासत में लिया गया था।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पूछताछ के दौरान कहा कि आरोपी-जोड़ी ने मांड्या में एक चिकित्सा इकाई का खुलासा किया जिसका इस्तेमाल अल्ट्रासाउंड स्कैन केंद्र के रूप में किया जाता था। केंद्र के बारे में पता चलने के बाद पुलिस टीम ने स्कैन मशीन जब्त कर ली थी, जिसके पास वैध प्राधिकरण या अन्य आधिकारिक दस्तावेज नहीं थे।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पूछताछ के दौरान दोनों आरोपियों ने स्वीकार किया कि मांड्या में एक गुड़ बनाने की फैक्ट्री में वे अल्ट्रासाउंड करते थे।
पुलिस के मुताबिक, उन्होंने जो स्कैन मशीन जब्त की है वह सिद्धेश नामक इलेक्ट्रॉनिक सामान मरम्मत करने वाले से ली गई थी। यह एक कबाड़ हो चुकी मशीन थी, जिसे सिद्धेश ने ठीक किया था, जो फिलहाल फरार है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार डॉ. बल्लाल और डॉ. तुलसीराम ने इस रैकेट के लिए पूर्व के रिश्तेदार टीएम वीरेश के साथ मिलीभगत की थी। डॉ. तुलसीराम की मां गर्भपात कराती थीं। बाद में उसने इसे धंधा बना लिया और आखिरकार बल्लाल के साथ मिलीभगत कर ली। डॉक्टरों ने वीरेश को कमीशन की पेशकश की। वह भ्रूण के लिंग से नाखुश होने पर गर्भपात का विकल्प चुनने वाले जोड़ों को रेफर करता।
पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक ‘पीएनडीटी’ एक्ट 1996 के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले चिकित्सक, लैब कर्मी को तीन से पांच साल सजा और 10 से 50 हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है। हालांकि उपरोक्त मामले में एक्ट की प्रभावी पालना नहीं हुआ। आशंका जताई जा रही है कि निष्पक्ष जांच हो तो चिकित्सा महकमे व पुलिस की संलिप्तता भी उजागर हो सकती है।
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