उत्तर प्रदेश: सरकारी क्रय केंद्रों पर उपज ले जाने से कतरा रहे किसान, भंडारण की भी चुनौती

उत्तर प्रदेश में धान की खरीद को लेकर विभागीय उदासीनता के कारण किसान बिचौलियों को बेच रहे अपनी फसल।
धान की फसल
धान की फसलPic by sutlafk from Getty Images

उत्तर प्रदेश: किसान रबी की फसल गेहूं की बुआई की तैयारी कर रहे हैं। गेहूं की बुवाई के लिए माने जाने वाले आदर्श समय, नवंबर की शुरुआत से ही गेहूं की बुआई शुरू हो जाती है, लेकिन इसके लिए किसान को बीज, खाद और उर्वरक खरीदने के लिए पैसे की जरूरत होती है। यह पैसा वह तैयार हुई खरीब की फसल धान को बेचकर करता है। हालाँकि, इस प्रक्रिया में किसान के पास इतना वक्त नहीं होता कि वह सरकारी क्रय केंद्रों पर अपनी उपज बेच सके. उसे अपनी फसल बेचकर उसके तुरंत भुगतान की जरुरत होती है. लेकिन, विभागीय उदासीनता के कारण वह अपनी खरीफ की फसल बिचौलियों को औने-पौने दाम पर बेचकर आगे की खेती के लिए संसाधन जुटाता है. 

उत्तर प्रदेश में धान खरीद के लिए सरकारी आदेश एक नवंबर से ही जारी हैं, लेकिन प्रदेश में कहीं किसान क्रय केंद्रों पर अपनी फसल बेचने की रूचि नहीं ले रहे हैं, तो कहीं क्रय केंद्र विभागीय प्रक्रियाओं के पूरा नहीं होने का हवाला देकर किसान की फसल ही नहीं खरीद रहे. ऐसे में जो बड़ी जोत के किसान कास्तकार हैं उनके सामने अनाज भण्डारण की समस्या आ रही है. जिससे मज़बूरी में उन्हें अपनी उपज आढ़तियों या प्राइवेट दुकानों पर बेचना पड़ता है। 

धान क्रय केंद्रों पर किसानों के धान खरीद की स्थिति और किसानों की चुनौतियों को जानने के लिए द मूकनायक टीम ने यूपी के बस्ती जिले के प्रगतिशील किसान विजेंद्र बहादुर पाल से बात की। उन्होंने बताया कि स्थानीय किसान जब अपनी तैयार उपज सरकारी क्रय केंद्रों पर ले जाते हैं तब क्रय केंद्रों पर पल्लेदारी, उपज में सूखापन की कमी आदि का हवाला देकर कटौती की जाती है, या कुछ शुल्क चार्ज किए जाते हैं, या कभी-कभी उपज को लौटा दिया जाता है। 

इसके अलावा उन्होंने बताया कि, किसानों के सामने कई चुनौतियाँ होती हैं, जैसे सरकारी क्रय केंद्रों पर उपज बेचने के लिए सबसे पहले किसानों को खाद्य एवं रसद के सरकारी पोर्टल पर “किसान पंजीकरण” कराना होता है, जिसको लेकर किसानों में बहुत अधिक जागरूकता नहीं है। अगर कोई किसान किसी तरह पंजीकरण करा भी लेता है तो उपज को क्रय केंद्रों तक पहुंचाने की चुनौती से गुजरना पड़ता है। कई बार सेम-डे (उसी दिन) किसानों का उपज भी नहीं खरीदा जाता तो उसे अपने उपज के साथ वापस घर लौटना पड़ता है। अगर किसी तरह से किसान उपज की तौल करा भी दे तो कई दिनों बाद उसे खाते में पैसे प्राप्त होते हैं। यह सब प्रक्रियाएं किसानों को सरकारी क्रय केंद्रों पर उपज बेचने के प्रति अरुचि पैदा करती हैं। 

“वहीं दूसरी ओर किसान को सरकारी दाम से थोड़ा कम दाम पर उसके उपज को बिचौलियों को बेचने मे सहूलियत मिलती है। किसान की उपज बिचौलिये खेत से ही उठा लेते हैं, जिससे किसान को क्रय केंद्रों तक उपज ले जाने के वाहन खर्चे से छुटकारा मिल जाता है। किसान को तुरंत भुगतान भी प्राप्त हो जाता है, और बिचौलियों को उपज बेचने पर उपज में थोड़ी बहुत कमी भी चल जाती है”, किसान विजेंद्र बहादुर पाल ने द मूकनायक को बताया। पाल ने बताया कि उनके पास 60-70 कुंतल सम्पूर्णा पतली किस्म के धान की उपज है, जिसे वह उचित मुल्य मिलने पर कहीं भी बेचने के लिए तैयार हैं।

स्थानीय समाचारों ने जानकारी दी कि बस्ती जिले में 131 धान केंद्र बनाए गए हैं। जिले में क्रय केंद्र प्रभारियों ने बताया कि खरीदा गया अनाज अभी मिल संचालक नहीं ले रहे हैं। गोदाम फुल होने के डर से भी केंद्र प्रभारी खरीद से कतरा रहे हैं। ऐसे में एक बात यह भी सामने आ रही है कि धान की खरीदी में कोताही का कारण विभाग से मिलों का अनुबंध अभी तक नहीं हुआ है। 

सीनियर विपणन अधिकारी (SMI), विजय बहादुर, जिनकी देखरेख में 3 धान क्रय केंद्र हैं, द मूकनायक को बताते हैं कि, “इस बार धान का रेट 2183 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से हम खरीद रहे हैं। अब तक (22 दिनों में) तीनों क्रय केंद्रों पर आठ हजार कुंतल धान की खरीद हो चुकी है।”

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