बुजुर्ग महिलाएं भुगत रहीं हैं पारिवारिक बहिष्कार का दंश: हेल्पएज इंडिया सर्वे रिपोर्ट

बहुओं से ज्यादा अपने बेटों से पीड़ित हैं बुजुर्ग महिलाएं, 27 प्रदेशों और 5 बड़े शहरों की सात हज़ार वृद्धाओं पर हुआ सर्वे
घरेलू महिला को तब तक तवज्जो दी जाती है जब तक वह घर और बच्चों को संभालती है।
घरेलू महिला को तब तक तवज्जो दी जाती है जब तक वह घर और बच्चों को संभालती है।सांकेतिक चित्र -ग्लोबल गिविंग

नई दिल्ली.  भारत की बुजुर्ग महिलाएं अकेलेपन और बहिष्कार का दंश झेल रही हैं। इनके साथ परिवार द्वारा किये जा रहे दुर्व्यवहार की शिकायतें भी बढ़ रहीं हैं। सर्वे में एक दुखद सत्य यह भी सामने आया है कि पेंशनभोगी महिलाओं की तुलना में अपने बच्चों पर आश्रित बुजुर्ग माओं की हालत दयनीय है।

हेल्पेज इंडिया द्वारा बीते माह किये किये सर्वे ' वीमेन ऐण्ड एजिंग-इनविजिबल ऑर एम्पावर्ड'  (महिला और उम्र: अदृश्य या सशक्त?) में कुछ इसी प्रकार के निष्कर्ष निकले हैं जो चिंताजनक कहे जा सकते हैं। हेल्प एज इंडिया द्वारा लाई गई अपनी तरह की यह पहली रिपोर्ट वृद्ध महिलाओं की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करती है जो "अक्सर खोई हुई और कतार में आखिरी" होती हैं। यह रिपोर्ट यूएन द्वारा घोषित “वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे” से एक दिन पूर्व 14 जून को जारी की गई थी।

सर्वे के सैंपल के बतौर 20 राज्यों, 2 केंद्र शासित प्रदेशों और 5 मेट्रो शहरों को लिया गया था और ग्रामीण व शहरी पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं से बातचीत की गई थी। रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 60-90 वर्ष आयु वर्ग की 7911 महिलाओं से 1 मई से 1 जून के बीच बात की गई।

समाज में बुजुर्ग महिलाओं की दशा

जैसा कि रिपोर्ट का शीर्षक बताता है, इस रिपोर्ट का उद्देश्य है यह जानना कि 60 साल की उम्र पार करने के बाद महिलाओं को परिवार में पूरी तरह से नगण्य बना दिया जाता है या वे उम्र के लिहाज से सशक्त हो जाती हैं और उनका स्टेटस बेहतर हो जाता है। व्यावहारिक जानकारी से हम समझते हैं कि समाज व परिवार का ढांचा पितृसत्तात्मक होता है, इसलिए एक कामकाजी महिला की स्थिति घरेलू महिला की तुलना में कुछ बेहतर होती है, और घरेलू महिला को तब तक तवज्जो दी जाती है जब तक वह घर और बच्चों को संभालती है।

60 साल पार करने के बाद कामकाजी महिला रिटायर कर चुकी होती है, फिर यदि वह पेंशनधारी हाती है तो उसकी अवस्था बेहतर होती है। वह किसी पर निर्भर नहीं होती। यदि पति की सरकारी नौकरी होती है, तो उनके मरने के बाद विधवा को पारिवारिक पेंशन का लाभ मिलता है। पर यदि ऐसा न हो, तो उसे हाशिये पर धकेल दिया जाता है और वह अपने बेटों पर निर्भर हो जाती है, यानी उनके रहम-ओ-करम पर जीती है। या अधिकतर बूढ़ी विधवा महिलाओं को धर्म में शरण मिलती है। उन्हें वहीं लगता है कि उनकी एक पहचान है। वृन्दावन और बनारस में ऐसी हज़ारों औरतें दिखाई पड़ती हैं।

सर्वे के कुछ चौंकाने वाले तथ्य- सर्वे से पता चलता है कि बुजुर्ग महिलाओं में 16 प्रतिशत को किसी-न-किसी प्रकार का उत्पीड़न झेलना पड़ता है। उनमें से 50 प्रतिशत ने बताया कि उन्होंने शारीरिक हमले सहे और 46 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें बुजुर्ग होने के बावजूद घर में सम्मान नहीं मिलता। सर्वे सैंपल में 40 प्रतिशत औरतें ऐसी थीं जिन्हें बजाए शारीरिक यातना के भावनात्मक और मानसिक यातना के कारण अधिक परेशानी हुई थी।

52% वृद्ध महिलाएं दुर्व्यवहार को आम मानती हैं।
52% वृद्ध महिलाएं दुर्व्यवहार को आम मानती हैं।सांकेतिक चित्र -ग्लोबल गिविंग

बहू से अधिक बेटों द्वारा प्रताड़ना

यह जानकर सबसे अधिक ताज्जुब होता है कि जिन बेटों को इन महिलाओं ने अपनी आखों का तारा समझकर उन्हें सबसे अधिक सेवा और प्यार दिया; यहां तक कि अपना पेट काटकर उनकी परवरिश की, उनकी संख्या उत्पीड़कों में सबसे अधिक पायी गई। सैंपल में 40 प्रतिशत केस ऐसे थे जिन्हें उनके बेटों ने सताया था। 31 प्रतिशत ने प्रताड़ित करने वालों में अपने किसी रिश्तेदार का नाम लिया और 27 प्रतिशत ने बहू को जिम्मेदार बताया। बाकी 2 प्रतिशत सभी से परेशान थीं।

तो यह धारणा भी टूट गई कि सास की सबसे अधिक लड़ाई बहू से ही होती है। अलग-अलग मामलों का अध्ययन करें तो देखेंगे कि अधिकतर मामलों में बहू अपने दम पर नहीं बल्कि बेटे की शह पर सास का उत्पीड़न करती है।

सर्वे के अनुसार देश में बुजुर्ग महिलाओं की स्थिति

  • 81 प्रतिशत वृद्ध महिलाएं अपने परिवार के साथ रहती हैं

  • 50. 4% वृद्ध महिलाएं निरक्षर हैं जिसमें से 59 प्रतिशत शहर में 66% गांव में है।

  • 43% बुजुर्ग महिलाएं विधवा है।

  • 52% वृद्ध महिलाएं दुर्व्यवहार को आम मानती हैं।

  • 16% विधाओं को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

  • 40% बेटी से 31% अन्य रिश्तेदार और 27% भरोसे प्रताड़ित है।

  • 16% वृद्ध महिलाएं दुर्व्यवहार की सूचना देते हैं।

  • 18% वृद्ध महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं।

  • 64% वृद्ध महिलाएं विधवा होने के कारण दुर्व्यवहार झेलती हैं।

  • 72% महिलाएं अपने लिए निर्णय नहीं लेती है।

  • 43 प्रतिशत वृद्ध महिलाएं शारीरिक नुकसान पहुंचने की चिंता।

सर्वे के अनुसार स्वास्थ्य और संपत्ति-

  • 48% वृद्धाओं को कोई ना कोई पुरानी बीमारी है

  • 64% वृद्धाओं के पास स्वास्थ्य संबंधी बीमा नहीं।

  • 66% वृद्धाओ के पास किसी तरह की संपत्ति नहीं।

  • 51 प्रतिशत वृद्धाओ को कभी रोजगार नहीं मिला।

  • 32% से अधिक विदाई काम करना चाहती हैं।

  • 70 प्रतिशत से अधिक विद्याओं के रोजगार अवसर की कमी बताई

  • 53% बुजुर्ग महिलाएं आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करती सुरक्षित महसूस करने के लिए 79% अपने बच्चों पर निर्भर

  • 75% बुजुर्ग महिलाओं के पास किसी तरह की बचत नहीं है।

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आंकड़े झूठ नहीं बोलते

हेल्प एज इंडिया के ये आंकड़े अविश्वसनीय लगते हैं कुछ सुर्खियां देखें, जो दिल दहलाने वाली हैं। 30 सितम्बर 2016 के द हिंदू अखबार में मुम्बई की एक खबर है कि एक बेटा-बहू और उनकी 19 वर्षीय बेटी कैसे अपनी 75 वर्षीय मां को प्रताड़ित करने के जुर्म में गिरफ्तार किये गए। शिकायत एक एनजीओ की सदस्या ने वीडियो साक्ष्य सहित की, जिसमें ये लोग बूढ़ी मां के चेहरे पर साड़ी लपेटकर उसकी सांस रोक रहे थे, फिर उसे साड़ी की मदद से पंखे से बांध रहे थे।

2017 में एक केस सामने आया जिसमें एक महिला सुपर्णा भट्टाचार्य द लाॅयर्स क्लब इंडिया से अपने चचेरे भाई के बारे में शिकायत करती हैं कि वह बैंक में काम करता है और अपने माता-पिता को गालियां देता है, मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है और आर्थिक सहयोग से वंचित रखता है, जबकि वह उस पर पूरी तरह निर्भर हैं। बूढ़े मा-बाप इतने परेशान थे कि आत्महत्या तक करने की सोच रहे थे। सुपर्णा अपने चाचा-चाची को बचाने के लिए कानूनी मदद मांग रही थी।

जून 2018 में इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी कि एक 78 वर्षीय बुजुर्ग और उनकी 74 वर्षीय पत्नी ने अपने बेटे-बहू के विरुद्ध स्थानीय न्यायालय में केस जीत लिया। कोर्ट ने उन्हें अपने पिता के घर को खाली करने का आदेश दिया। बेटा-बहू अपने माता-पिता को सम्पत्ति के लिए 2004 से ही मारते-पीटते थे और यहां तक जान से मारने का भी प्रयास करते थे। वे गुंडे लगाकर उन्हें घर से निकालने की कोशिश कर रहे थे।

2020 का एक केस, जो कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले का था, यह तब सामने आया जब 70 साल की एक बूढ़ी महिला के पोते ने पुलिस को वीडियो बनाकर दिया जिसमें उसके चाचा और उनका बेटा शराब के नशे में बूढ़ी मां को थप्पड़ मारकर जमीन पर गिरा रहे थे। वीडियो वायरल हो गया तो मोहल्ले के लोगों ने बताया कि यह एक दिन नहीं, रोज़ की घटना बन गई थी।

आज के पूंजीवादी मूल्यों ने किस तरह धन और संपत्ति को मानवता से ऊपर कर दिया है, इस संदर्भ में समझदारी जरूरी है। वर्तमान समय में बेटों का माता-पिता के प्रति क्या नैतिक दायित्व बनता है, इसका पाठ उन्हें पढ़ाने का कोई मतलब नहीं। बल्कि बुजुर्ग मां-बाप को उनके कानूनी अधिकारों के बल पर उत्पीड़क बच्चों और रिश्तेदारों से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें जागरूक बनाया जाए। उनके लिए बेहतर वृद्धाश्रम हों जहां वे कुछ उत्पादक कार्य कर सकें, जो उनके लायक हों।

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क्यों कानून का रास्ता नहीं तलाशा जाता?

रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि बूढ़ी महिलाएं डर के मारे शिकायत लिखाने पुलिस के पास नहीं जातीं। सैम्पल में 18 प्रतिशत औरतों ने बताया कि उन्हें इस बात का डर था कि यदि वह शिकायत करती हैं, तो उन पर प्रताड़ना बढ़ेगी और उनसे बदला लिया जाएगा। तब जीना और मुश्किल हो जाएगा। 16 प्रतिशत औरतों को यह जानकारी नहीं थी कि उनके लिए कोई सपोर्ट स्ट्रक्चर मौजूद है। 13 प्रतिशत का कहना था कि उन्हें लगता था कि बूढ़ी औरतों की सुनवाई ही नहीं होगी तो बताने से क्या फायदा।

करीब 3956 औरतों को न ही शिकायत करने के फोरम और न ही कानूनी प्रावधान की कोई जानकारी थी। इसलिए हम देखते हैं कि स्वयं उत्पीड़ित की ओर से शिकायत कम ही दर्ज की जाती है। ज्यादातर परिवार का कोई अन्य सदस्य, पड़ोसी या किराएदार शिकायत करते हैं। अब मोबाइल कैमरे की मदद से अत्याचार का वीडियो बनाना भी आसान हो गया है ताकि ठोस सबूत भी उपलब्ध हों। पता चला कि केवल 15 प्रतिशत महिलाओं को वरिष्ठ नागरिक माता-पिता भरण पोषण अधिनियम 2007 की स्पष्ट जानकारी थी। आखिर ऐसा क्यों है कि डेढ़ दशक से अधिक होने के बाद भी इसके विषय में अज्ञानता बनी हुई है?

इससे भी अधिक चौकाने वाली बात है कि 78 प्रतिशत महिलाओं को जानकारी नहीं थी कि वृद्धों के लिए, खासकर वृद्ध व विधवा महिलाओं के लिए कई सरकारी योजनाएं हैं, जो उनके लिए सामाजिक सुरक्षा, भोजन व छत की गारंटी देते हैं। क्या आपने कभी टीवी या रेडियो पर सुना है अथवा किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई होर्डिंग में लिखा देखा है कि 1 अप्रैल 2021 से वृद्धों के लिए एक अम्ब्रेला स्कीम चालू हुई है जिसका नाम अव्यय (AVYAY) है?

योजना के अंतरगत आने वाले कम्पोनेंट-

1) वरिष्ठ नागरिकों के लिए एकीकृत कार्यक्रम (आईपीएसआरसी): वरिष्ठ नागरिक गृहों, निरंतर देखभाल गृहों आदि के रखरखाव के लिए कार्यान्वयन एजेंसियों को अनुदान सहायता प्रदान की जाती है। आश्रय, पोषण, चिकित्सा और मनोरंजन जैसी सुविधाएं गरीब वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क प्रदान की जाती हैं जो वरिष्ठ नागरिक गृहों में रह रहे हैं।

2) राष्ट्रीय वयोश्री योजना (आरवीवाई): बीपीएल वरिष्ठ नागरिक जो उम्र से संबंधित विकलांगता / दुर्बलता से पीड़ित हैं, उन्हें निःशुल्क सहायक उपकरण प्रदान किए जाते हैं। 1 अप्रैल 2020 से चलने की छड़ी, कोहनी बैसाखी, श्रवण यंत्र आदि जैसी सामान्य वस्तुओं के अलावा कमोड के साथ व्हीलचेयर, सिलिकॉन फोम कुशन आदि जैसी विशेष वस्तुएं भी इस योजना के तहत प्रदान की जाती हैं।

3) सिल्वर इकोनॉमी को बढ़ावा देना: सीनियर केयर एजिंग ग्रोथ इंजन (एसएजीई) नाम के पोर्टल पर एक खुला निमंत्रण दिया गया है, जिसके माध्यम से उद्यमियों को बुजुर्गों की समस्याओं के बारे में सोचने और नए समाधानों के साथ सामने आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस योजना के तहत अधिकतम 49 प्रतिशत इक्विटी भागीदारी के साथ वित्तीय सहायता के रूप में 1 करोड़ रुपये प्रदान किया जाता है।

4) एल्डरलाइन: वरिष्ठ नागरिकों की शिकायत निवारण और माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के रखरखाव और कल्याण (एमडब्लूपीएससी) अधिनियम, 2007 और सरकारी नीतियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए टोल फ्री नंबर 14567 पर वरिष्ठ नागरिकों के लिए हेल्प लाइन शुरू की गई है। एल्डरलाइन सप्ताह के सभी 7 दिन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक काम करती है।

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इसके अलावा राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) की इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत, ग्रामीण विकास मंत्रालय गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) से संबंधित 60 से 79 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को 200 (जो अपर्याप्त है और बढ़ाकर 1000 रुपये की जानी चाहिये) रुपये की मासिक पेंशन प्रदान करता है। पेंशन की राशि बढ़ाकर इन लाभार्थियों के 80 वर्ष और उससे अधिक आयु तक पहुंचने पर 500/रु प्रति माह कर दी गई है (जिसे बढ़ाकर 3000 रुपये किया जाना चाहिये)।

इनके साथ-साथ घरेलू हिंसा कानून 2005 के बारे में भी कम जानकारी है। उदाहरण के लिए किसी भी प्रताड़ित बुज़ुर्ग महिला ने हेल्पलाइन नम्बर 1090 या राष्ट्रीय महिला आयोग की डेडिकेटेड हेल्पलाइन नम्बर 7827170170 पर या फिर 181 पर काॅल करके शिकायत दर्ज नहीं कराई। इसके पीछे एक बड़ा कारण सामाजिक है- कोई मां अपने ही बेटे के खिलाफ पुलिस के पास जाए तो उसे समाज में किस नज़र से देखा जाएगा? फिर मां के भीतर भी कहीं-न-कहीं वही पुरानी सोच रहती है कि बेटा मुखाग्नि नहीं देगा तो स्वर्ग नहीं मिलेगा।

सामाजिक रूप से अदृश्य

सर्वे के दौरान 64 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि वे विधवा होने के कारण सामाजिक रूप से परित्यक्ता हैं। जबकि 18 प्रतिशत ने बताया कि महिला होना ही उन्हें अभिशप्त बना दिया है जहां तक आर्थिक सुरक्षा की बात है तो 53 प्रतिशत बुज़ुर्ग औरतों का लगता था कि वे पूरी तरह असुरक्षित हैं। रिपोर्ट ने बताया कि बाकी 47 प्रतिशत हिस्से में से 79 प्रतिशत अपने बच्चों पर ही निर्भर थीं।

समाज में महिलाओं, खासकर बूढ़ी विधवा या एकल महिलाओं के प्रति नज़रिया जब तक नहीं बदलेगा और जब तक सामाजिक रूढ़िया और प्रतिगामी संस्कारों को ढोया जाएगा, यह प्रताड़ता चलती रहेगी। हमारा मकसद होना चाहिये एक सहिष्णु समाज का निर्माण, जहां हर एक व्यक्ति को अधिकार व सम्मान मिले

घरेलू महिला को तब तक तवज्जो दी जाती है जब तक वह घर और बच्चों को संभालती है।
आखिर क्यों महिलाओं के प्रति पुरुषों की बढ़ती जा रही है क्रूरता!

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