तोड़ी रूढ़ीवादिता की बेड़ियां: उत्तराखंड में बेटी के पीरियड आने पर पिता ने मनाया जश्न

मेहमानों ने बतौर गिफ्ट सेनेटरी नैपकिन के पैकेट दिए, गिफ्ट कवर भी नही किया ताकि समाज को दे सकें संदेश
बेटी के रजस्वला होने पर सेलिब्रेट करते परिजन
बेटी के रजस्वला होने पर सेलिब्रेट करते परिजन

उत्तराखंड। माहवारी…मासिक धर्म…या फिर पीरियड्स। 21वी सदी में आज भी ये शब्द समाज मे टैबू माने जाते हैं जिस पर परिवार में खुलकर चर्चा नहीं होती है। पीरियड्स में महिलाओं को सपोर्ट करने की बजाय अछूत मान लिया जाता है। देशभर में अधिकांश जगह कमोबेश यही स्थिति है। लेकिन शुक्र है कुछ ऐसे प्रगतिशील विचारधारा वाले लोग भी हैं जो बेटियों के रजस्वला होने पर शर्मिंदगी की बजाय खुशी महसूस करते हैं। 

उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर का एक परिवार चर्चा में है। यहां संगीत शिक्षक पिता जितेंद्र भट्ट ने अपनी बेटी के पहले पीरियड पर एक नई शुरुआत की। उन्होंने जश्न मनाया और दोस्तों- रिश्तेदारों को दावत दी। उनकी यह पहल रूढ़ियों को तोड़ती है। अभी भी उत्तर मध्य भारत के कई हिस्सों में पीरियड पर चर्चा तो दूर, वे पांच दिन महिलाओं, बेटियों के लिए अपवित्र मान लिए जाते हैं। उन्हें रसोई से लेकर पूजा-पाठ तक से दूर कर दिया जाता हैं।

द मूकनायक ने माहवारी को एक जश्न के रूप में मनाने वाले पिता से बात की। जितेंद्र भट्ट उत्तराखंड के काशीपुर में पत्नी भावना और 13 साल की बेटी रागिनी के साथ रहते हैं। 

जितेंद्र बताते हैं कि "सोसायटी अभी भी पीरियड्स को लेकर बिल्कुल भी नहीं बदली है। कितनी बार बेटियों के पहले पीरियड्स आते ही हम उन्हें खुशनुमा माहौल ना देकर गंभीर माहौल दे देते हैं, और पीरियड आते ही यही बोलते हैं, कि बेटी अब बड़ी हो गई है। जबकि उसको इस समय पर सबसे ज्यादा अपने माता-पिता की जरूरत होती है। घर में ही नहीं बाहर भी आप इसको लेकर बात नहीं कर सकते। यहां तक कि सेनेटरी नैपकिन भी लेने जाएंगे तो दुकानदार पहले ही उसे कवर करके देता है कि कोई उसे देख ना ले। जबकि सबको पता है कि सैनिटरी नैपकिन क्या है और और क्यों जरूरी है। फिर भी हम माहवरी से संबंधित कुछ भी स्वीकार नहीं करते हैं। कितनी सारी बातें हैं जो सबको पता है कि माहवारी को लेकर कैसी-कैसी धारणाएं हैं हमारे समाज में। किचन में ना जाना, अचार ना छूना, मंदिर में ना जाना आदि जो रूढ़ीवादी सोच का परिचायक हैं।"

अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए जितेंद्र कहते हैं कि "जब मैं गांव में रहा करता था,  हमारे घर की महिलाओं को माहवारी के दिनों अलग ही कर देते थे परिवार से। यहां तक कि उनको छू भी नहीं सकते थे। अगर उनको हमने गलती से छू भी लिया तो हमारा शुद्धिकरण किया जाता था। उनको 5 दिन वहां रखते थे, जहां गाय भैंस रहा करती थी। ऐसी स्थिति थी उस समय में.."

रागिनी को गिफ्ट में सेनेटरी नैपकिन देते हुए मेहमान
रागिनी को गिफ्ट में सेनेटरी नैपकिन देते हुए मेहमान

जितेंद्र बताते हैं कि "आजकल वैसे ही बच्चों के खान-पान के बदलाव की वजह से जल्दी ही माहवारी आ जाती है। और मैंने यह अब से नहीं बहुत पहले से सोच लिया था, कि मेरी बेटी को जब भी पहली बार पीरियड आएंगे, तब मैं उसे सेलिब्रेट करूंगा। मैं एक म्यूजिक टीचर हूं। जब भी मेरे पास सीनियर स्टूडेंट आते थे तब मैं उनसे यही कहता था कि मेरी बेटी की पीरियड आएंगे तो मैं तुम सबको पार्टी दूंगा। तो वो लोग यही सोचते थे, कि बस मैं ऐसे ही बोलता हूं। कुछ दिनों बाद मुझे मेरी पत्नी ने बताया कि हमारी बेटी को पीरियड आ गए हैं। हम दोनों ने अपनी बेटी को बधाई दी और कहा कि वो एक नई शुरुआत कर रही है। यह सब साधारण है। शरीर मे हो रहे बदलाव की वजह से स्वाभाविक है कि बेटी थोड़ी डरी हुई थी। क्योंकि इस समय पर हार्मोन काफी सक्रिय होते हैं और बच्चे को समझ में नहीं आता कि उनके साथ क्या हो रहा है। लेकिन हमने अपनी बेटी को बहुत प्यार से समझाया और पीरियड्स के 2 दिन निकल जाने के बाद हमने उसके पहले पीरियड को एक उत्सव के रूप में बदल दिया। हमने जिन लोगों को पार्टी में बुलाया उनको कहा कि आप गिफ्ट में सेनेटरी नैपकिन लेकर आए और उसको किसी भी चीज से कवर ना करें। इसके बाद सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ। हमारी बेटी और हम बहुत खुश हैं।"

जानिए, पीरियड्स शुरू होने पर देश-दुनिया में लोग कैसे सेलिब्रेट करते हैंं?

कहीं ऋतु कला संस्कार तो कहीं हाफ साड़ी फ़ंक्शन

पहले दक्षिण भारतीय राज्यों का हाल समझते हैं। यहां इस मौके को जश्न के रूप में ही मनाने की परंपरा है। हां, समाज इसे अलग-अलग नामों से जानते हैं। यहां के हिन्दू परिवार ऋतु कला संस्कार समारोह मनाते हैं। इसे ऋतु शुद्धि भी कहा जाता है।

  • देश के दक्षिण भारतीय राज्यों में रजस्वला उत्सव मनाया जाता है। हर्षोल्लास से लोग इसे मनाते हैं। पूजा-पाठ, सामूहिक भोज करने की परंपरा है। दुनिया के अनेक हिस्सों में भी इस अवसर को लोग छिपाते नहीं हैं। खुलकर बात करते हैं। बावजूद इसके अभी भी बहुत सी जगहें ऐसी हैं, जहां रूढ़िवादी परंपराओं ने हमें घेर रखा है।

  • केरल और तमिलनाडु में जब बेटी को पहला पीरियड होता है तब ऋतु स्नान के बाद पारिवारिक समारोह आयोजित होता है।  उस दिन बेटी को पहली बार साड़ी पहनाई जाती है। कई इलाकों में इस हाफ साड़ी फ़ंक्शन भी कहते हैं। इस मौके पर अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार आज भी लोग आयोजन करते हैं। बेटी इस समारोह में जो पहली साड़ी पहनती है, वह पारंपरिक रूप से मामा लेकर आते हैं। दोस्त-रिश्तेदार भी बुलाए जाते हैं। इस मौके पर लोग गिफ्ट भी देते हैं।

  • इस समारोह में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा होती है। परंपरा यह भी है कि शादी होने तक बेटी हाफ साड़ी ही पहनेगी। इसे आयोजन को तेलुगू में लंगा वोनी, तमिल में पावदाई धावनी, कन्नड़ में लंगा दावानी कहा जाता है। हाफ साड़ी अविवाहित बेटियों की पारंपरिक पहचान है।

रागिनी अब पीरियड्स को लेकर भयभीत नही बल्कि कॉंफिडेंट महसूस करती है
रागिनी अब पीरियड्स को लेकर भयभीत नही बल्कि कॉंफिडेंट महसूस करती है

मोरक्को से जापान तक जश्न

लैटिन अमेरिकी देशों में इसे उत्सव की तरह देखा जाता है। मोरक्को में जश्न मनता है। इस दौरान उत्सव में शामिल परिवार के सदस्य, रिश्तेदार एवं दोस्त बेटी को उपहार भी देते हैं। जापान में पहले पीरियड्स पर लाल रंग का चावल और बीन्स खाकर जश्न मनाया जाता है। इस पकवान को सेकिहान कहा जाता है।

अमेरिका की एक जनजाति है मेस्कलेरो अपाचे, इन्हें खानाबदोश पहाड़ी जनजाति भी कहा जाता है। ये पीरियड्स को बड़े उत्सव के रूप में देखते हैं। आठ दिन तक जश्न मनाने की परंपरा है। पिछले साल जिन बेटियों को पहला पीरियड हुआ वे सब इसमें शामिल होती हैं। पूरी दुनिया में इसकी कोई उम्र तय नहीं है लेकिन आठ से सोलह वर्ष की उम्र तक पहला पीरियड आ जाता है।

अलग-अलग धर्मों में माहवारी से जुड़ी परंपराएं

अलग-अलग धर्म में इसे अलग तरीके से देखा जाता है। सिख धर्म में मासिक धर्म को अपवित्र नहीं माना जाता। इस दौरान उन पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाने की परंपरा है। जैन धर्म में पीरियड्स के दिनों में महिलाओं को आराम करने की सलाह के साथ किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में शामिल न होने की सलाह दी जाती है। हिन्दू धर्म में इस मामले में बेटियों-महिलाओं के साथ अलग-अलग व्यवहार करता है। कहीं, पहले पीरियड्स पर जश्न मनता है तो कहीं उन्हें अपवित्र मान कर मंदिर, रसोई जैसी जगहों पर जाने से रोक दिया जाता है।

बौद्ध धर्म में भी विविधता है लेकिन मंदिरों में न जाने की सलाह दी जाती है। ईसाई धर्म में ईशा मसीह को छूने पर रोक है लेकिन पूजा-पाठ में भाग लेने की मनाही नहीं है। इस्लाम में भी इस मसले पर अलग-अलग परम्पराएं हैं। यहूदी समाज में ऐसी महिला को अशुद्ध माना जाता है. जो ऐसी महिला को छू लेगा, उसे भी शाम तक के लिए अशुद्ध मान लिया जाएगा। चीन में पीरियड्स के दौरान मूर्तियों को छूने, प्रसाद चढ़ाने एवं पूजा करने से बचने का सुझाव दिया जाता है।

इस देश में पीरियड्स से जुड़े सभी उत्पाद हैं मुफ्त 

स्कॉटलैण्ड दुनिया का पहला देश है, जिसने लीड लेकर पीरियड्स से जुड़े उत्पाद महिलाओं के लिए मुफ़्त कर दिए हैं। यह इतिहास साल 2022 में रचा गया।

अमेरिका के कुछ पब्लिक स्कूलों में पीरियड्स को लेकर शिक्षा दी जाती है। दुनिया भर के संगठनों ने पाया कि अभी भी कई देशों में बड़ी संख्या में बेटियां इस दौरान स्कूल नहीं जा पाती। उनके पास सेनेटरी पैड की अनुलब्धता है। पीरियड्स को लेकर पूरी दुनिया में फिल्में भी खूब बनी हैं. बावजूद इसके अभी बहुत काम होना बाकी है।

इस मामले में एक धर्म के कई परिवार अलग-अलग धारणा रखते हैं। कोई एक नियम जरूरी नहीं है कि उस धर्म के हर परिवार पर लागू हो। परिवार की बुजुर्ग महिलाएं ही इसके नियम-कानून बनाती हुई देखी जाती हैं. इस मसले पर अभी भी खुली बातचीत होना बाकी है।

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