भाई को नहीं पता था छोटी बहन को पीरियड शुरू हुआ, गलतफहमी ने ले ली एक जान..!

महाराष्ट्र के थाने से हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसके बाद पीरियड्स और सेक्स एजुकेशन जैसे विषयों पर स्कूलों में चर्चा करने की अनिवार्यता और शिद्द्त से महसूस होती है।
हत्या
हत्यासाभार- इंटरनेट/ सांकेतिक फोटो

नई दिल्ली। अस्सी के दशक में प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक जे पी दत्ता की  मूवी ' यतीम' प्रदर्शित हुई थी। सन्नी देवल और फरहा नाज अभिनीत इस फ़िल्म का एक दृश्य बहुत ही हृदय स्पर्शी है।  नायिका फरहा पुलिसकर्मी कुलभूषण खरबंदा की बेटी है और सुजाता मेहता उसकी सौतेली माँ है जो फरहा से स्नेह नही करती है। यौवन की दहलीज पर कदम रखने पर किशोरवय की फरहा अपने अंदर के मनोशारीरिक परिवर्तन पर किसी से बात नहीं कर पाती है और घुटती रहती है। इस फ़िल्म के एक दृश्य में दिखाया जाता है कि सन्नी देवल जिसे फरहा के पिता ने बचपन से पाला होता है, अपनी ट्रेनिंग पूरी करके घर लौटता है। फरहा अपने बचपन के दोस्त को बड़ी मासूमियत से बताती है कि उसे कोई जानलेवा बीमारी हो गयी है और बहुत जल्दी वह मरने वाली है। सन्नी को वह बताती है कि हर माह उसके शरीर से रक्त निकल जाता है और इस तरह वह जल्दी मरने वाली है।

फिल्म का यह दृश्य ना केवल उस दौर में बल्कि आज तीस दशक बाद भी उतना ही प्रासंगिक जान पड़ता है क्योंकि मेंस्ट्रुअल हेल्थ और पीरियड्स जो एक सामान्य नैसर्गिक प्रक्रिया है - आज भी भारतीय समाज में लड़कियां अपने परिवार में इस विषय पर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं। इसके नतीजे कई बार प्राण घातक भी साबित हो सकते हैं।

महाराष्ट्र के थाने से हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसके बाद पीरियड्स और सेक्स एजुकेशन जैसे विषयों पर स्कूलों में चर्चा करने की अनिवार्यता और शिद्द्त से महसूस होती है। 

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थाने में एक बड़े भाई ने अपनी 12 साल की मासूम बहन की पीट-पीट कर हत्या कर दी। उसने बहन को इसलिए मारा क्योंकि उसकी फ्रॉक पर लगे खून के निशान देखकर भाई को लगा कि उसकी बहन ने किसी के साथ शारिरिक संबध बनाये हैं। दूसरी ओर, उस मासूम किशोरी को अपनी सफाई में कुछ कहना ही नहीं आया क्योंकि यह उसका पहला पीरियड था और वह नासमझ अपने भीतर आये यकायक शारीरिक परिवर्तन को ना तो खुद समझ सकी ना ही किसी को बता सकी।

यह घटना उस अहम मुद्दे को उठाती है जिसे भारतीय परिवारों में हमेशा इग्नोर किया जाता है। वह है मेंस्ट्रुअल और सेक्सुअल अवेयरनेस का मुद्दा।

क्या है पूरा मामला?

थाने जिले के उल्हासनगर शहर में 30 साल के एक सिक्योरिटी गार्ड ने अपनी 12 साल की बहन की जान ले ली। उल्हासनगर पुलिस स्टेशन के सीनियर इंस्पेक्टर मधुरकर  द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया को दी जानकारी के अनुसार, विक्टिम अपने भाई और भाभी के साथ रहती थी। कुछ दिनों पहले लड़की को पीरियड्स हुए। उसके भाई ने पीरियड्स का ब्लड उसके कपड़ों पर देखा और उसे लगा कि लड़की ने किसी के साथ संबंध बनाये हैं। बच्ची को इस बारे में कुछ नहीं पता था तो अपने भाई के सवालों के जवाब वह नहीं दे पाई।

जवाब ना मिलने पर भाई ने अपनी बहन को टॉर्चर करना शुरू कर दिया। उसे चिमटे से कई जगह जलाया गया। उसे बहुत टॉर्चर किया गया। तीन दिनों तक उसे बुरी तरह से पीटा गया। आखिर लड़की यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाई और मर गई। ऐसा होने के बाद भाई खुद उसे सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल लेकर गया जहां डॉक्टर्स ने उसे मृत घोषित कर दिया। उसके शरीर पर चोट और जलाने के निशान थे। डॉक्टर्स ने इसके बारे में पुलिस को बताया और भाई को अरेस्ट कर लिया गया।

एक अन्य मीडिया रिपोर्ट बताती है कि भाभी ने ही भाई के दिमाग में यह शक पैदा किया था कि उसकी बहन का किसी के साथ अफेयर हुआ है। लड़की के चेहरे, गर्दन और पीठ पर बहुत सारे निशान थे जो बता रहे थे कि उसके साथ क्या हुआ है।

इस घटना के बाद कई सवाल मन में आते हैं।

  • क्या भाभी भाई को पीरियड्स के बारे में नहीं बता सकती थी?

  • क्या विक्टिम किशोरी को इसके पहले पीरियड्स के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी?

  • क्या भाई को बिल्कुल नहीं पता था कि बहन को इस उम्र में पीरियड्स भी हो सकते हैं?

  • क्या भाई को किसी भी तरह की मेंस्ट्रुअल या सेक्सुअल अवेयरनेस नहीं थी?

सवाल तो बहुत हैं, लेकिन जवाब सिर्फ एक। अगर भाई और बहन को मेंस्ट्रुअल और सेक्सुअल अवेयरनेस की जानकारी होती, तो यह घटना ही नहीं होती।

मेंस्ट्रुअल और सेक्सुअल अवेयरनेस की जरूरत

यह तो सिर्फ एक घटना की बात थी, लेकिन ऐसे कई मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। कुछ समय पहले चेन्नई की एक घटना सामने आई थी जहां पीरियड्स आने पर एक लड़की ने डर के कारण खुद को कमरे में बंद कर लिया था। लड़कियों को अपने ही शरीर की जानकारी नहीं होती है। पीरियड्स में क्या होता है, किस तरह से लड़कियों के शरीर में बदलाव होता है, क्यों पीरियड्स होते हैं -ऐसे सभी सवालों के जवाब हर किशोर वय की ना केवल लड़कियां बल्कि लड़कों को भी दी जानी चाहिए।

मेंस्ट्रुअल हेल्थ पर स्कूल कॉलेज में अवेयरनेस कार्य करने वाली राजस्थान की एक युवा वॉलंटियर खुशी पालीवाल से द मूकनायक ने बात की। 

खुशी ने राजस्थान में एक अभियान शुरू किया है जिसका नाम है - "द रेड पेड" । महावारी के बारे में समाज की सोच में बदलाव लाने के मकसद से यह अभियान शुरू किया गया है। खुशी राजस्थान के 20 गांव और 12 से ज्यादा लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन के बाटने में और मासिक धर्म की शर्मिंदगी को समाप्त करने में कार्य में लगी है।

खुशी कहती है कि यह बहुत ही हैरान करने वाला मामला है। क्योंकि भाई को यह तो पता था, कि यौन कारण से खून आता है, पर उसको यह कैसे नहीं पता था कि पहली महावारी आने पर भी ऐसा ही होता है क्या उसको पता ही नहीं था कि माहवारी क्या होती है ? 

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खुशी बताती है कि "मैं बहुत गांव में जाती हूं। वहां पर महावारी को लेकर सिर्फ शर्म है। और कोई इसके बारे में बात करना नहीं चाहता। लड़कियां तो बात करने में ऐसे डरती है, जैसे पता नहीं उनसे कौन सी डरावनी बात हमने पूछ ली है। लड़कियां तो क्या, वहां पर महिलाएं भी इस बारे में बात नहीं करना चाहती, और पुरुषों का तो दूर-दूर तक इससे कोई वास्ता नहीं है। बड़ी मुश्किल से हम उनको समझा कर उनको माहवारी के बारे में बताते हैं। " 

खुशी कहती है कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे सभी प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में सेक्स और पीरियड्स को लेकर एजुकेशन ही नहीं है। जब तक जानकारी नहीं होगी, तो हम लड़कियों को और महिलाओं को माहवारी और उनसे जुड़ी जानकारी कैसे दे पाएंगे? लड़कों को भी इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि उनकी अधूरी जानकारी यौन संबधी अपराध, छेड़छाड़ आदि ऐसे मामलों को बढ़ावा देती है। एक जरूरी बात यह भी है कि पहले पीरियड्स 14- 16 साल की उम्र में शुरू होते थे परंतु जीवन शैली में बदलाव, तनाव आदि के कारण इसके कारण अब माहवारी 10 वर्ष  की उम्र के बाद कभी भी आ जाती है। 

जरूरत इस बात की है कि हम अपने घर परिवार में बच्चों को सही समय पर सेक्स एजुकेशन दे ताकि उनके मन में रजोवृत्ति, हार्मोनल बदलाव आदि को लेकर कोई भ्रांति, भय या झिझक नहीं रहे और इस विषय पर लड़के और लडकिया खुलकर अपने घर में अपने अभिभावकों, भाई बहन या भाभी आदि से बात कर सके । इसी तरह स्कूलों में भी सेक्स एजुकेशन पर समय-समय पर वार्ताए आयोजित हो ताकि समाज में बढ़ते हुए यौन और लैंगिक अपराधों पर भी अंकुश पाया जा सकें।

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