पति ने बैठक की अध्यक्षता की, पत्नी बनी कुलपति — फिर भी हाईकोर्ट ने क्यों कहा 'सब कुछ वैध है'?

हाईकोर्ट ने कहा — महिला कुलपति की नियुक्ति में पति की भूमिका विवादास्पद हो सकती है, लेकिन प्रक्रिया वैध है और दखल की जरूरत नहीं।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रो. नायमा खातून की एएमयू कुलपति नियुक्ति को दी वैधताग्राफिक- राजन चौधरी, द मूकनायक
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यूपी/प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) की कुलपति पद पर प्रोफेसर नायमा खातून की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

यह याचिका एएमयू के ही प्रोफेसर मुजाहिद बेग ने दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रो. नायमा खातून की नियुक्ति में पक्षपात हुआ, क्योंकि उस दौरान उनके पति प्रो. मोहम्मद गुलरेज़ कार्यवाहक कुलपति के पद पर थे। याचिका में कहा गया था कि प्रो. गुलरेज़ ने कार्यकारी परिषद और विश्वविद्यालय कोर्ट की उन बैठकों की अध्यक्षता की, जिनमें उनकी पत्नी का नाम कुलपति पद के लिए अनुशंसित किया गया।

प्रो. बेग ने यह भी आरोप लगाया कि इन बैठकों में जानबूझकर हेरफेर किया गया ताकि प्रो. खातून की नियुक्ति सुनिश्चित की जा सके।

न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने इस मामले में 9 अप्रैल को सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था। इस मुद्दे पर दायर दो अन्य याचिकाओं को भी एक साथ जोड़ा गया था, जिन पर शनिवार को एकसाथ फैसला सुनाया गया।

याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा:

“हमने पाया कि प्रो. नायमा खातून की शैक्षणिक योग्यता या कुलपति बनने की पात्रता पर कोई सवाल नहीं है। उनकी अंतिम नियुक्ति विज़िटर द्वारा की गई, जिन पर किसी भी प्रकार के पक्षपात का आरोप नहीं लगाया गया है। वह पहले विश्वविद्यालय के महिला कॉलेज की प्राचार्या रह चुकी हैं।”

अदालत ने आगे कहा:

“सिर्फ इस आधार पर कि उनके पति कार्यवाहक कुलपति थे और उन्होंने उन बैठकों की अध्यक्षता की, जिनमें उनके नाम की सिफारिश की गई, यह नियुक्ति रद्द करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकता, विशेषकर जब वह एएमयू की पहली महिला कुलपति बनी हैं।”

हालांकि अदालत ने माना कि प्रो. गुलरेज़ को इन बैठकों की अध्यक्षता नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि कार्यकारी परिषद और विश्वविद्यालय कोर्ट की भूमिका केवल सिफारिश देने तक सीमित होती है।

“हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रो. गुलरेज़ की भागीदारी से चयन प्रक्रिया की वैधता प्रभावित नहीं हुई है।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट

अदालत ने कहा कि विज़िटर द्वारा प्रो. खातून को तीन नामों के पैनल में से चुना गया था और यह निर्णय किसी न्यायिक हस्तक्षेप की मांग नहीं करता।

अदालत ने स्पष्ट किया, “प्रो. खातून कुलपति पद के लिए आवश्यक सभी योग्यताएं रखती हैं।”

अदालत ने उनके चयन के सामाजिक महत्व को भी रेखांकित किया:

“सौ वर्षों से अधिक के इतिहास में एएमयू में किसी महिला को कुलपति नियुक्त नहीं किया गया था। एक प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थान में महिला की नियुक्ति यह संदेश देती है कि महिलाओं के सशक्तिकरण और संविधानिक उद्देश्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में, क्या यह अदालत केवल इस कारण से एएमयू की पहली महिला कुलपति को पद से हटाएगी कि उनके पति ने उस बैठक की अध्यक्षता की थी, जिसमें उनके नाम की सिफारिश की गई थी? इसका उत्तर स्पष्ट रूप से ‘नहीं’ है।”

आपको बता दें कि, प्रो. नायमा खातून ने एएमयू से ही मनोविज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। वर्ष 1988 में उन्होंने इसी विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्य आरंभ किया। 2006 में वे प्रोफेसर बनीं और 2014 में महिला कॉलेज की प्राचार्या नियुक्त हुईं। कुलपति पद पर नियुक्ति से पहले तक वे इसी पद पर कार्यरत थीं।

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