यूपी में बहुजन नेताओं के स्मरण में होने जा रहे हैं ये बड़े आयोजन, दलित-पिछड़ा को एकजुट करने की तैयारी

बिहार में जातिगत सर्वे के आंकड़ें प्रकाशित होने के बाद पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी दलित और पिछड़े की राजनीतिक सरगर्मी तेज हो चली है। बहुजन संगठनों और नेताओं ने अपने-अपने समुदाय को एकजुट करने के लिए बड़े आयोजनों की तैयारी में जुट गए हैं।
यूपी में बहुजन नेताओं के स्मरण में होने जा रहे हैं ये बड़े आयोजन, दलित-पिछड़ा को एकजुट करने की तैयारी

उत्तर प्रदेश। यूपी के पूर्वांचल में बहुजनों के नेता कांशीराम और पिछड़े वर्ग के प्रिय नेता रहे मुलायम सिंह यादव सहित फातिमा शेख की पुण्य तिथि पर एक बड़ा आयोजन हो रहा है। इस आयोजन में संविधान, लोकतंत्र, जाति जनगणना, महिला आरक्षण और मंडल कमीशन मुख्य विषय रखे गए हैं। इस सभा के माध्यम से बिहार में हाल ही में हुई जातिगत जनगणना और राजस्थान में प्रस्तावित जनगणना को लेकर पूर्वांचल की राजनीति को धार देने की कोशिश जारी है। इस आयोजन में बहुजन और समाजवाद से जुड़े विभिन्न लोगों के एकमंच पर एकजुट होने की बाते भी सामने आ रही हैं।

दरअलस, आजमगढ़ के निजामाबाद में 10 अक्टूबर को पूर्व रक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की प्रथम पुण्यतिथि सहित फातिमा शेख, डॉ. राम मनोहर लोहिया, मान्यवर कांशीराम की स्मृति सभा का आयोजन किया जा रहा है। इस सभा में समाजवादी और बहुजनवादी नेताओ और समर्थक पहुंचने वाले हैं। इस सभा के प्रमुख मुद्दे संविधान, लोकतंत्र, जाति जनगणना, महिला आरक्षण और मंडल कमीशन आदि हैं।

किसान नेता राजीव यादव ने कहा कि मुलायम सिंह यादव की प्रथम पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति सभा में आपातकाल में जेल काट चुके सोशलिस्ट नेता रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शोएब, मंडल आयोग के अध्यक्ष बीपी मंडल के पौत्र दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सूरज मंडल, पूर्व महाधिवक्ता हाई कोर्ट लखनऊ राजबहादुर यादव, मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक किसान नेता डॉ सुनील, गांव के लोग के संपादक राम यादव, सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार के रिंकू यादव, समाजवादी अंबेडकर वाहिनी के डॉक्टर आरपी गौतम, राजू पासी, ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनूप पटेल, जनता दल यूनाइटेड की प्रदेश महासचिव नाहिद अकील, यादव सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार यादव, ब्लू पैंथर के सुशील गौतम, सामाजिक न्याय आंदोलन के सचेंद्र यादव, कुलदीप यादव, पवन यादव, दादर डिग्री कॉलेज के पूर्व अध्यक्ष निशांत राज, राष्ट्रीय बांसशिल्पी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष धरकार, कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा, एडवोकेट अमृता यादव, जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय के प्रदेश समन्वयक सुरेश राठौड़, स्वराज अभियान के रामजन्म यादव, वीपी सिंह के लोग के संयोजक राघवेंद्र प्रताप सिंह, गाडगे यूथ ब्रिगेड के अमरदीप सिंह पहुंचने वाले हैं।

सोशलिस्ट किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव यादव ने कहा कि 9 अक्टूबर को महान शिक्षिका फातिमा शेख और बहुजनों की आवाज मान्यवर कांशीराम, 10 अक्टूबर को नेताजी मुलायम सिंह यादव और 12 अक्टूबर को समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि हैं। समाजवाद और बहुजन राजनीति के लिए जीवनपर्यंत महापुरुषों ने संघर्ष किया तब जाकर वंचित समाज को अधिकार मिले हैं।

30 साल पहले जब मुलायम और कांशीराम एकजुट हुए

मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने आज से तकरीबन 30 साल पहले हाथ मिलाए थे। समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन हो गया था। तब तक मुलायम के समर्थन से कांशीराम इटावा से लोकसभा का चुनाव जीत चुके थे। दोनों नेताओं के रिश्ते अच्छे होने लगे थे। दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया।

1993 के यूपी चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और बीएसपी में गठबंधन हो गया। समाजवादी पार्टी और बीएसपी गठबंधन के बाद पहली चुनावी रैली मैनपुरी में हुई। उन दिनों इटावा के रहने वाले ख़ादिम अब्बास बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के करीबी हुआ करते थे। मैनपुरी की रैली में कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए अब्बास ने एक नया नारा दिया, 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'।

इसके बाद तो ये नारा लोगों की जुबान पर चढ़ गया। बीजेपी के जय श्रीराम से मुकाबले के लिए समाजवादी पार्टी और बीएसपी के समर्थकों ने इस नारे को अपना हथियार बना लिया। इस नारे को गढ़ने वाले खादिम अब्बास भले बहुत मशहूर नहीं हुए, पर यूपी में समाजवादी पार्टी और बीएसपी गठबंधन की सरकार बन गई। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। वह बात अलग है कि बाद में कांशीराम ने समर्थन वापस ले लिया। फिर 18 महीने पुरानी ये सरकार गिर गई।

मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम का नारा देने वाले ख़ादिम अब्बास विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव तक लड़े। पर जीत उन्हें कभी नसीब नहीं हुई। बाद में खादिम को बीएसपी से भी बाहर कर दिया गया। अब्बास कभी किसी और पार्टी में नहीं गए। मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा के होने के बाद भी वे हमेशा कांशीराम के ही रहे। आज भी उनके घर में कांशीराम के साथ वाली उनकी तस्वीरें लगी हैं। इटावा से 1991 के लोकसभा चुनाव के नामांकन के लिए कांशीराम जब इटावा गए थे तो ख़ादिम अब्बास उनके साथ थे। उस दौर की फोटो उन्होंने अब तक संभाल कर रखी हैं। लेकिन वे इस बात से हैरान हैं कि आखिर मायावती ने मिले मुलायम नारे से क्यों किनारा कर लिया है।

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