अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान
अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान

राजस्थान: जातिगत जनगणना की घोषणा सत्ता तक जाने का आसान रास्ता तो नहीं?

देश में जातिगत जनगणना जरूरी है। लंबे समय से मांग लंबित है। बिहार के आंकड़े सामने आने के बाद ही कांग्रेस को राजस्थान में क्यों याद आई जातियां?

राजस्थान। बिहार सरकार द्वारा जातिगत आंकड़े जारी करने के बाद देश में जातिगत जनगणना (caste census) मांग को बल मिला है। बिहार के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Rajasthan Chief Minister Ashok Gehlot) ने भी बिहार की तर्ज पर प्रदेश में जातिगत सर्वे कराने का एलान किया है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी मध्य प्रदेश में तथा प्रियंका गांधी भी छत्तीसगढ़ गढ़ में जातिगत सर्वे का एलान कर चुके हैं। ऐसे में यह साफ हो चला है कि विधानसभा चुनावों में जातिगत गणना के मुद्दे का प्रभाव नजर आने वाला है।

राजस्थान में राज्यमंत्री मण्डल ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को जाति जनगणना (caste census) के सर्वेक्षण की सहमती दे दी है। राज्य में पिछड़ेपन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए जाति जनगणना सर्वेक्षण के आधार पर विशेष कल्याणकारी योजना चलाए जाना प्रस्तावित है। यह योजनाएं सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान के मकसद को संबल प्रदान कर पिछली पंक्ति में खड़े समुदायों के जीवन में बदलाव लाने में कारगर साबित होगी।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि हम बिहार की तर्ज पर जातिगत जनगणना (caste census) के पक्षधर हैं। गहलोत ने कहा कि जनगणना तो भारत सरकार करवा सकती है। हम सर्वे करावाएंगे। उन्होंने कहा कि देश में अलग-अलग जाति, धर्म के लोग रहते हैं। जातियों के अपने अलग काम हैं। सर्वे में जब जातियों की स्थिति उभर कर सामने आएगी तो हमें उन जातियों के उत्थान के हिसाब से योजनाएं बनाने में आसानी होगी।

आपकों बता दें कि देश में लंबे समय से जातिगत जनगणना (caste census) की मांग लंबित है। बहुजन नेता कांशीराम ने जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा देकर देश में जातिगत जनगणना (caste census) की मांग उठाई थी। इसके बाद कई राजनीतिक दल भी इस नारे का समर्थन करते हुए जाति आधारित गणना की मांग करते रहे हैं। इन दिनों भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भी सभाओं में कांशीराम के नारे को दोहरा कर जातिगत जनगणना (caste census) की मांग उठा रहे हैं।

बिहार सरकार के जाति आधारित आंकड़े सामने आने के बाद देश के अलग-अलग राज्यों में इस मांग ने जोर पकड़ा है। कांग्रेस शासित राज्यों में पुन: सरकार बनने पर जाति आधारित गणना की घोषणा की गई है। इधर राजस्थान में राष्ट्रीय लोक तांत्रिक पार्टी (आरएलपी) सुप्रिमो हनुमान बेनीवाल ने भी जातिगत जनगणना (caste census) की मांग को लेकर चुनावी समर में बिगुल बजा दिया है।

इधर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने चुनावी मोड में जाने से पहले जातियों को साधने के लिए दर्जनों बोर्डों का गठन कर जातिगत राजनीति की नई नींव रख दी है। इन बोर्डों में चेयरमैन नहीं बनाए गए हैं। ना ही बजट पर कोई चर्चा हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि जातीय पहचान की राजनीति नफरत का माहौल पैदा करेगी। इसके दूरगामी परिणाम सुखद नहीं हो सकते। फौरी तौर पर राजनीतिक लाभ मिल सकता है।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोका गहलोत ने हाल ही राजस्थान राज्य राजा बली कल्याण बोर्ड, राजस्थान राज्य वाल्मीकि कल्याण बोर्ड, राजस्थान राज्य मेघवाल कल्याण बोर्ड, राजस्थान राज्य पुजारी कल्याण बोर्ड, राजस्थान राज्य केवट कल्याण (मां पूरी बाई कीर) बोर्ड, राजस्थान राज्य जाटव कल्याण बोर्ड, राजस्थान राज्य धाणका कल्याण बोर्ड व राजस्थान राज्य चित्रगुप्त कायस्थ कल्याण बोर्ड का गठन किया है। इससे पूर्व राजस्थान में सरकार ने ब्राह्मणों के लिए विप्र कल्याण बोर्ड, जाट जाति के लिए तेजाजी बोर्ड, राजपूत जाति के लिए महाराणा प्रताप और यादव के लिए कृष्ण बोर्ड बनाने की घोषणा की थी। गुर्जर जाति के लिए देवनारायण बोर्ड, माली के लिए ज्योतिबा फुले, धोबी के लिए रजक, नाई के लिए केश कला बोर्ड, कुम्हार के लिए माटी कला बोर्ड, लोध के लिए अवंति बाई और बंजारा जाति के लिए घुमन्तु अर्ध घुमंतू बोर्ड का गठन किया जा चुका है।

दलित शोषण मुक्ति मंच के प्रदेश संयोजक एडवोकेट किशन मेघवाल ने राजस्थान सरकार की जातिगत गणना के सर्वे की घोषणा का स्वागत किया है। एडवोकट किशन मेघवाल ने कहा कि जाति आधारित जन गणना होना चाहिए। हम इसके पक्ष में है। कांशीराम जी का कथन है कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी है। जाति संख्या के आंकड़े सामने आने चाहिए। इसी से पता चलेगा की शासन और प्रशासन में किसी जाति को कितनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए और अभी कितनी दी गई है।

एडवोकेट किशन मेघवाल ने राजस्थान में जातियों को साधने के लिए चुनाव से पहले सरकार द्वारा अलग-अलग जातियों के नाम पर बनाए गए बोर्डों को जातियों के राजनीतिक शोषण का हथियार बताया है। उन्होंने कहा कि इन जातिगत बोर्डों का कोई महत्व नहीं है। जातीय पहचान की रानीतिक से समाज में नफरत का माहौल पैदा होता है। यह लोग जातीय पहचान की राजनीति कायम करना चाहते हैं। इससे आम आदमी के शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार के मुद्दे गौण हो जाएंगे। इन बोर्डों को इतनी शक्ति प्राप्त नहीं होती कि यह अपनी जाति के मूलभूत मुद्दों का समाधन करवा सके। उन्होंने कहा कि राजनेताओं के नजदीकी लोग इन बोर्डों में बैठ कर व्यक्तिगत लाभ तो ले सकते हैं, लेकिन अपनी जाति का भला नहीं कर सकते। इन बोर्डों के दूरगामी परिणाम सुखद नहीं हो सकते।

सैनी, माली आरक्षण संघर्ष समिति संयोजक मुरारी लाल सैनी ने चुनाव से ठीक पहले हुई जातिगत सर्वे की घोषणा को जनता के साथ छलावा बताया है। उन्होंने कहा कि इसी वर्ष मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सैनी समाज के साथ बैठक कर आरक्षण से पहले सर्वे करवाने का वादा किया था। ओबीसी आयोग का पत्र लिखा गया। आयोग ने सभी कलक्टरों को पत्र लिखा, लेकिन हमारी जाति के सर्वे पर एक कदम आगे नहीं बढ़े। ऐसे में सभी जातियों के सर्वे व गणना की घोषणा चुनावी शगूफे से ज्यादा कुछ नहीं है। हम कहते हैं आप कराई जातिगत गणना। जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी भी तय करिए, लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि हर कोई राजनीतिक पार्टी लुभावनी घोषणाएं कर सत्ता पाने के लिए लालायित रहती है। उन्होंने कहा कि आप पांच साल से सत्ता में हो। आचार संहिता लगने से ठीक पहले क्यों याद आई। बिहार सरकार ने आंकड़े उजागर कर दिए तो आपको को भी सत्ता तक जाने के लिए यह रास्ता आसान नजर आ रहा है।

बिहार सरकार ने राज्य में कराई गई जातिगत जनगणना के आकंड़ें हाल ही में जारी किए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 36 फीसदी अत्यंत पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 19 फीसदी से थोड़ी ज्यादा अनुसूचित जाति और 1.68 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या बताई गई है।

बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल आबादी 13 करोड़ से ज्यादा है। इनमें 27त्न अन्य पिछड़ा वर्ग और 36त्न अत्यंत पिछड़ा वर्ग है। यानी, ओबीसी की कुल आबादी 63त्न है। अनुसूचित जाति की आबादी 19त्न और जनजाति 1.68त्न है। जबकि, सामान्य वर्ग 15.52त्न है।

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