विश्व आदिवासी दिवस: जल, जंगल और जमीन पर मूलनिवासियों ने मांगा पूरा हक

पूरे देश में विविध कार्यक्रम हुए आयोजित, राजनैतिक व सामाजिक संगठनों ने उत्साह से मनाया मूलनिवासी दिवस
विश्व आदिवासी दिवस: जल, जंगल और जमीन पर मूलनिवासियों ने मांगा पूरा हक

जयपुर। देश भर में बुधवार को आदिवासी दिवस धूमधाम से मनाया गया। गांव, कस्बे और शहरों में जय जौहार के नारे सुनाई दिए। कहीं रैली निकाल कर तो कहीं सभा कर आदिवासियों ने अपने अस्तित्व को बचाने का नारा बुलंद किया। देश भर में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार और अनदेखी के खिलाफ आवाज उठाई गई। मणिपुर हिंसा को लेकर भी आदिवासियों ने रोष प्रकट किया।

इस बीच विश्व आदिवासी दिवस के बहाने राजनीतिक पार्टियों ने आदिवासी प्रेम जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अलग-अलग राजनीतिक संगठनों ने आदिवासियों के कार्यक्रमों में शिरकत कर यह दिखाने का प्रयास किया कि हम से बेहतर आदिवासियों का हमदर्द कोई नहीं है। इस बहाने कांग्रेस ने अपने परम्परागत वोट बैंक को इतिहास याद दिलाकर अपनी तरफ रिझाने की कोशिश की तो भाजपा भी कहीं ना कहीं आदिवासी प्रेम का दर्शाती नजर आई।

राजस्थान के बांसवाड़ा में आदिवासी समुदाय की आस्था का प्रमुख केन्द्र मानगढ़ धाम से कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय को साधने का प्रयास किया। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पवित्र भूमि मानगढ़ धाम से विश्व आदिवासी दिवस की बधाई देते हुए कहा कि आदिवासी ही इस देश का असली मालिक है। यह पूरा का पूरा देश आपका है। हम चाहते हैं आप जो भी करें। जहां भी करें। आप सफलता प्राप्त करें। चाहे आपके बच्चे कॉलेज पढ़ने जाएं। यूनिवर्सिटी में पढ़े। कम्प्यूटर चलाना चाहे। बिजनिस करना चाहे। उद्योग चलाना चाहे। आप को मौका मिलना चाहिए। आप जो भी सपना देखना चाहते हैं वो सपना पूरा होना चाहिए।

राहुल ने आगे कहा हमने जब आपको जल, जंगल व जमीन का हक दिया। आदिवासी बिल दिया। बीजेपी आरएसएस ने क्या किया। हमने आपको जो कानूनी औजार दिए थे। उन्होंने एक के बाद एक रद्द कर दिए। वो चाहते हैं कि आप जंगल में रहो। फिर वो जंगल को काटते जाए। आपके हकों को छीनते जाते हैं। जमीन छीनते जाते हैं। अंत में चाहते हैं कि आपको वनवासी कहे। बाद में जंगल ही गायब हो जाए। आप कहीं के नहीं रहो।

नहीं भुला सकते आदिवासी योद्धाओं की शहादत

मानगढ़ धाम से राहुल गांधी ने कहा कि हिन्दुस्तान के असली मालिक आप हैं। देश को बचाने के लिए अंग्रेजों की गोली खाकर आदिवासी योद्धाओं ने शहादत दी है। ऐसे समाज को सलाम है। आज आदिवासी दिवस भी है। राहुल ने 45 साल पहले की कहानी सुनाते हुए कहा कि जब में छोटा था करीब 9 साल का। मेरी दादी इंदिरा जी ने मुझे एक किताब दी थी। किताब का नाम था तेंदू एक आदिवासी बच्चा इसमें एक आदिवासी बच्चे के जिंदगी के बारे में किताब थी। वो जंगल में कैसे जीता था। तीर कमान से मच्छी मारता था। उसके माता-पिता और परिवार किस प्रकार से जीता था। किताब मुझे अच्छी लगती थी। दादी के साथ पढ़ता था। किताब पढ़ते हुए मैंने एक दिन दादी से पूछा कि आदिवासी शब्द का मतलब क्या है। इस पर इंदिराजी ने कहा कि यह हिन्दुस्तान के पहले निवासी है। यह जो हमारी जमीन है, जिसको आज हम भारत कहते हैं यह जमीन आदिवासियों की थी।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि हम भारत माता की रक्षा करने का काम कर रहे हैं। झण्डा उठा लिया है। देश को समझना पड़ेगा। प्रेम, भाईचारा, मोहब्बत व अहिंसा। अमीर और गरीब में खाई नहीं बढ़े। गहलोत ने मणिपुर का जिक्र करते हुए कहा कि मणिपुर में आग लगी है। भारत सरकार मोदी और अमित शाह सो रहे हैं। दुनिया भर में देश की आलोचना हो रही है, लेकिन इन्हें परवाह नहीं है। इस दौरान अशोक गहलोत मानगढ़ धाम के विकास और अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए कई घोषणाएं भी की। उन्होंने कहा कि राजस्थान में भी जातिगत गणना शुरू करेंगे। जिसकी जितनी आबादी उसको उतना हक मिलेगा।

दौसा

नागल प्यारी वास में भी आदिवासी दिवस मनाया गया। हजारों की तादाद में आदिवासी समाज के लोग नांगल प्यारीवास में बने मीणा समुदाय के स्थल पर पहुंचे। जहां भाजपा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा के नेतृत्व में आदिवासी दिवस का जश्न मनाया गया। इस कार्यक्रम में पर्दे के पीछे बीजेपी नजर आई। हालांकि कहा गया है कि यह राजनीतिक प्रोग्राम नहीं है। एक तिरंगे के नीचे सब हैं। यह बात अलग है कि नांगल प्यारीवास में आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस के चेहरे भी नजर आए।

कौन है आदिवासी

शिक्षक विक्रम मीणा ने कहा कि आदिवासी अर्थात् आदिकाल से जो यहां निवास कर रहे है। उन्हें ही आदिवासी कहते हैं। आज विश्वभर में 90 से अधिक देशों में 5000 से अधिक समुदाय और लगभग 7000 इनकी भाषाएं हैं। दुनिया में 37 करोड़ से ज्यादा आदिवासी समुदाय के लोग निवास कर रहे है। आदिवासी समुदाय के लोगों की अपनी भाषाएं, रीति.-रिवाज, वेशभूषा, खान-पान उनकी विशेषताएं है। जिसे बचाने के लिए वे आज भी संघर्षरत हैं। आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं। प्रकृति को ही अपना सर्वस्व मानते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग आज भी शिक्षा, चिकित्सा व राजनीतिक जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं। समाज की मुख्यधारा से आज भी दूर हैं। समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहली बार आदिवासी दिवस 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में मनाया था।

हालांकि आदिवासी समुदाय के लिए सरकारें काफी योजनाएं चला रही है, लेकिन यह योजनाएं पर्याप्त हो ऐसा प्रतीत नहीं होता। सभी को चाहिए कि आदिवासी समुदाय के प्रति सम्मान की भावना रखे। भारत में कंपनी की शासन काल के अनेकों उदाहरण है। अंग्रेज भी उनके सामने भाग खड़े होते थे, क्योंकि जो स्वयं प्रकृति में पैदा हुआ है उसे हराना असंभव है।

आदिवासी अपने उद्बोधन में भी जय जोहार कहते हैं अर्थात सबका कल्याण करने वाली प्रकृति का जयकारा लगाते हैं। सबके कल्याण की कामना करते हैं। राजस्थान में भील, मीना, गरासिया व डामोर आदि मुख्य जनजातीय है। समाज की मुख्यधारा में जोडने के लिए सरकार को विभिन्न योजनाएं चलाकर उत्थान के कार्य करने चाहिए। क्योंकि ये ही जल-जंगल-जमीन के रक्षक हैं। उन्हें पूजते हैं।

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