चर्च में एलजीबीटी कॉम्युनिटी की स्वीकार्यता बहुत पहले हो जानी चाहिए थी: पोप फ्रांसिस

पोप फ्रांसिस के बयान पर एलजीबीटीक्यू कॉम्युनिटी से आई मिलीजुली प्रतिक्रिया
दिल्ली क्वीर प्राइड 2022
दिल्ली क्वीर प्राइड 2022 फोटो- द मूकनायक

नई दिल्ली। ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस ने हाल में एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि कैथोलिक चर्च समलैंगिकों समेत पूरे एलजीबीटी समुदाय के लिए खुले हैं। पोप फ्रांसिस ने कहा कि आध्यात्मिकता के मार्ग पर उनका साथ देना हमारा कर्तव्य है, लेकिन यह नियमों के दायरे में रहकर ही हो सकता है। बता दें कि पोप फ्रांसिस पुर्तगाल में आयोजित हुए वर्ल्ड यूथ डे कैथोलिक फेस्टिवल में शामिल होने गए थे। पुर्तगाल से रोम लौटते समय हवाई जहाज में पत्रकारों से बात करते हुए पोप फ्रांसिस ने ये बात कही। इधर, भारत में पोप के इस बयान पर एलजीबीटीक्यू कॉम्युनिटी के लोगों ने मिली जुली प्रतिक्रिया दी। सभी ने कहा पोप को यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पोप फ्रांसिस ने कहा कि कैथोलिक चर्च समलैंगिक जोड़ों सहित एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए खुला है। उन्होंने आध्यात्मिक समर्थन के महत्व पर जोर दिया, लेकिन कहा कि कुछ प्रथाओं को चर्च सिद्धांत का पालन करना चाहिए। पुर्तगाल में आयोजित विश्व युवा दिवस कैथोलिक उत्सव से लौटते समय पोप फ्रांसिस ने ये टिप्पणी की। उन्होंने स्पष्ट किया कि हालांकि कुछ परंपराएं कुछ निश्चित भागीदारी की अनुमति नहीं दे सकती हैं, लेकिन इसका मतलब प्रतिबंध नहीं है।

चर्च के दरवाजे सभी के लिए खुले, लेकिन...

मीडिया रिपोर्ट में पत्रकारवार्ता के दौरान एक पत्रकार ने पोप फ्रांसिस से सवाल किया कि पुर्तगाल की यात्रा के दौरान उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि चर्च सभी के लिए खुले हैं, सभी के लिए, लेकिन क्या ये असंगत नहीं है कि महिलाओं और समलैंगिकों को अन्य के मुकाबले कई अधिकार नहीं मिले हैं? इसके जवाब में पोप फ्रांसिस ने कहा कि 'चर्च सभी के लिए खुले हैं, लेकिन चर्च के अंदर के जीवन को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियम हैं और इनका पालन करना जरूरी है।

पोप फ्रांसिस ने कहा कि 'नियमों के मुताबिक ये लोग चर्च के कुछ संस्कारों में भाग नहीं ले सकते। इसका मतलब ये नहीं है कि उन पर प्रतिबंध है। पोप फ्रांसिस ने कहा कि चर्च के भीतर हर व्यक्ति को अपने तरीके से भगवान का सामना करना होता है।' बता दें कि चर्च में महिलाओं को पुजारी बनने की इजाजत नहीं है। साथ ही समलैंगिक जोड़े को चर्च में विवाह करने की इजाजत नहीं है।

पोप फ्रांसिस ने किए हैं कई सुधार

बता दें कि पोप फ्रांसिस लगातार एलजीबीटी समुदाय के लिए चर्चों को ज्यादा स्वागतयोग्य बनाने के प्रयास कर रहे हैं। अपने बीते 10 साल के कार्यकाल के दौरान पोप फ्रांसिस ने कई सुधार किए हैं, जिनमें महिलाओं को चर्च में ज्यादा भूमिका देना, खासकर वेटिकन सिटी में उच्च पदों पर महिलाओं की नियुक्ति जैसे कदम शामिल हैं।

इस मामले पर द मूकनायक ने यशिका से बात की। वह ट्रांस महिला है। ट्रांसजेंडर अधिकार की कार्यकर्ता है। बहुजन क्यूर कलेक्टिव की संस्थापक है। वह कहती है कि "कोई भी धार्मिक स्थानों पर किसी भी जाति या लिंग आदि के आधार पर, किसी के प्रवेश से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। किसी को भी कहीं भी जाने की अनुमति होती है। क्योंकि सभी एक समान है। यह सब समाज की सोच है कि यहां पर औरतें नहीं जा सकती, यहां पर कोई और नहीं जा सकता। यह सब रूढ़िवादी बातों से अब बाहर निकलने की जरूरत है। एलजीबीटीक्यू+ कम्युनिटी के साथ तो बहुत ही भेदभाव होता है। उनको तो धार्मिक स्थलों पर ही नहीं, हर जगह पर जाने से रोका जाता है। यह जो बेकार की धारणाएं बनाकर रखी हुई है। इनके खत्म होना बहुत जरूरी है। धर्म जो प्रेम की बात करता है, सब के सम्मान की बात करता है, सबके एक समान होने की बात करता है तो उसकी नजर में तो सब समान ही है। यह इंसान ही है जो यह सारी पाबंदियां बनाता है।"

आगे वह कहती हैं कि "पोप ने जो फरमान दिया है कि अब चर्च में एलजीबीटी और समलैंगिक भी जा सकते हैं, तो ऐसा बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।"

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