15 साल से इंतज़ार! ओडिशा में क्यों नहीं बन पाया राज्यपाल सचिवालय का आदिवासी कल्याण प्रकोष्ठ?

केंद्र के कई बार याद दिलाने के बावजूद ओडिशा में राज्यपाल सचिवालय का आदिवासी कल्याण प्रकोष्ठ 15 साल बाद भी शुरू नहीं हो पाया।
Odisha Yet to Set Up Full-Fledged Tribal Welfare Cell in Governor’s Secretariat After 15 Years
15 साल बाद भी ओडिशा में राज्यपाल सचिवालय में नहीं बना पूर्णकालिक आदिवासी कल्याण प्रकोष्ठ
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भुवनेश्वर: अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों के राज्यपाल सचिवालय में पूर्णकालिक आदिवासी कल्याण प्रकोष्ठ (Tribal Welfare Cell) बनाने का जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) का प्रस्ताव आए 15 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन देश की तीसरी सबसे बड़ी आदिवासी आबादी वाले ओडिशा में यह इकाई अभी तक शुरू नहीं हो पाई है।

सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 2011, 2013, 2014, 2016 और 2017 में कई बार राज्य को पत्र भेजकर प्रकोष्ठ बनाने की याद दिलाई, लेकिन प्रस्ताव अब भी कागजों में ही अटका हुआ है। यह प्रकोष्ठ राज्यपाल को उनके संवैधानिक अधिकारों के तहत सलाह देने, आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन की निगरानी करने, कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर रखने और आदिवासी अधिकारों व संस्कृति की रक्षा करने के लिए एक अहम सलाहकार इकाई के रूप में सोचा गया था।

अटका हुआ प्रस्ताव

दस्तावेजों के अनुसार, दिसंबर 2010 में MoTA ने राज्यपाल सचिवालय में प्रकोष्ठ स्थापित करने का प्रस्ताव और स्टाफ संरचना भेजी थी। तत्कालीन मुख्य सचिव को औपचारिक पत्र भी भेजा गया, और 2011 में प्राथमिकता के आधार पर गठन के लिए फिर से याद दिलाई गई।

महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने जल्द ही अपने-अपने राजभवन में ऐसे प्रकोष्ठ स्थापित कर दिए, लेकिन ओडिशा में यह कदम अब तक नहीं उठाया गया। यह मुद्दा 2014 और उसके बाद राष्ट्रपति भवन में हुई राज्यपालों के सम्मेलन समेत राष्ट्रीय स्तर की बैठकों में भी उठ चुका है, लेकिन स्थिति जस की तस है।

वैकल्पिक व्यवस्था

2014 में राज्य सरकार ने केंद्र को सूचित किया कि राज्यपाल को आदिवासी मामलों में सलाह देने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (SCSTRTI), एससी-एसटी विकास विभाग और जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) की मदद ली जाएगी।

2019 में अंतरिम व्यवस्था के तहत नृविज्ञान (Anthropology) के दो सेवानिवृत्त प्रोफेसरों को विशेष कार्य अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया, ताकि राजभवन में आदिवासी मामलों से जुड़े काम देखे जा सकें। बाद में इनमें से एक के पद छोड़ने पर हाल ही में एससी-एसटी विकास, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग (SSDMBCW) ने एक संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी को प्रकोष्ठ में तैनात किया।

राज्यपाल की चिंता

हाल ही की एक समीक्षा बैठक में राज्यपाल हरी बाबू कम्भमपति ने वरिष्ठ अधिकारियों से युक्त पूर्णकालिक आदिवासी कल्याण प्रकोष्ठ की आवश्यकता पर जोर दिया, जो आदिवासी मुद्दों, संबंधित कानूनों, संवैधानिक प्रावधानों पर सलाह दे सके और वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर सके।

राज्यपाल सचिवालय ने एक बार फिर मुख्य सचिव से अनुरोध किया है कि प्रकोष्ठ को मूल प्रस्ताव के अनुसार शीघ्र स्थापित किया जाए। प्रस्तावित संरचना में उप निदेशक या संयुक्त निदेशक स्तर का अधिकारी, SCSTRTI से सहायक निदेशक, नृविज्ञान और आदिवासी कानून के विषय विशेषज्ञ, एक एमआईएस विशेषज्ञ, पूर्णकालिक या अंशकालिक सहायक स्टाफ और दो प्रतिष्ठित सलाहकार शामिल होंगे।

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