भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में फरवरी माह के दौरान आयोजित होने वाली शलाका चित्र प्रदर्शनी की शुरुआत हो चुकी है। इस बार प्रदर्शनी में गोण्ड समुदाय की प्रसिद्ध चित्रकार सुशीला श्याम की कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जा रहा है। यह 58वीं शलाका प्रदर्शनी है, जो 28 फरवरी तक चलेगी। यह प्रदर्शनी न केवल कलाकारों को अपनी कला को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करती है, बल्कि उनके चित्रों की बिक्री के लिए भी एक महत्वपूर्ण मंच उपलब्ध कराती है।
32 वर्षीय सुशीला श्याम मध्यप्रदेश के जनजातीय बहुल जिले डिंडोरी के गगाँव सोनपुरी (पाटनगढ़) की निवासी हैं। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहां चित्रकला की परंपरा पहले से मौजूद थी। उनके पिता तुलाराम किसान हैं, जबकि माता पार्वती श्याम स्वयं भी गोण्ड चित्रकार थीं। बचपन से ही अपनी माँ के सान्निध्य में रहकर उन्होंने चित्रकारी के प्रारंभिक गुर सीखे। उनकी माँ का कुछ वर्षों पूर्व निधन हो गया, लेकिन उनकी कला सुशीला श्याम के चित्रों में जीवंत रूप में विद्यमान है।
सुशीला श्याम पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनका बचपन प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जंगल और पहाड़ों के बीच गुजरा। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गाँव के निकट स्थित एक कस्बे में प्राप्त की और ग्यारहवीं कक्षा तक अध्ययन किया। लेकिन उनका वास्तविक रुझान हमेशा चित्रकला की ओर रहा।
सुशीला श्याम को गोण्ड चित्रकला की बारीकियाँ सीखने का अवसर वरिष्ठ गोण्ड चित्रकार स्व. नर्मदाप्रसाद तेकाम के मार्गदर्शन में मिला। वर्ष 2010 से उन्होंने नर्मदाप्रसाद तेकाम के साथ रहकर चित्रकला की पारंपरिक तकनीकों को गहराई से सीखा। इस दौरान वे उनके चित्रकर्म में सहायक के रूप में भी कार्य करती रहीं। नर्मदाप्रसाद तेकाम उनके मौसा थे, जिससे उनका संबंध और भी आत्मीय हो गया। उनकी सतत प्रेरणा और मार्गदर्शन ने सुशीला को एक कुशल चित्रकार के रूप में विकसित किया।
वर्ष 2016 में सुशीला श्याम का विवाह युवा गोण्ड चित्रकार शैलेन्द्र तेकाम से हुआ। शैलेन्द्र तेकाम भी इस पारंपरिक चित्रकला शैली में सिद्धहस्त हैं। वर्तमान में दोनों ही स्वतंत्र रूप से चित्रकला का कार्य कर रहे हैं और समय-समय पर एक-दूसरे की कलाकृतियों में सहयोग भी करते हैं। इस तरह उनका परिवार न केवल गोण्ड चित्रकला की समृद्ध परंपरा को संजोए हुए है, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य भी कर रहा है।
सुशीला श्याम ने दिल्ली, पुणे, विशाखापट्टनम सहित देश के विभिन्न शहरों में आयोजित एकल एवं संयुक्त चित्रकला प्रदर्शनियों में भाग लिया है। उन्होंने मानव संग्रहालय, जनजातीय संग्रहालय और ललित कला अकादमी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा आयोजित वर्कशॉप्स में भी सक्रिय भागीदारी निभाई है।
उनकी चित्रकला की विशेषता यह है कि वे अपने चित्रों में प्रकृति, परिवेश और ग्रामीण स्त्री जीवन को प्रमुखता से उकेरती हैं। उनके चित्रों में जंगल, नदियाँ, पक्षी, पशु और पारंपरिक जनजातीय जीवन के तत्व प्रमुखता से उभरते हैं। द मूकनायक से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा, "मेरे चित्र मेरे जीवन की कहानियाँ हैं। वे मेरे गाँव, मेरे परिवेश, मेरी परंपराओं और संस्कृति को अभिव्यक्त करते हैं।"
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा प्रतिमाह 'लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा' में आयोजित होने वाली शलाका प्रदर्शनी जनजातीय चित्रकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है। यह न केवल कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का अवसर देती है, बल्कि उनकी कृतियों के विक्रय को भी प्रोत्साहित करती है।
गोण्ड चित्रकला एक विशिष्ट जनजातीय कला शैली है, जो हजारों वर्षों से गोण्ड समुदाय के लोककथाओं, मिथकों और परंपराओं को चित्रित करती आई है। इस कला में मुख्य रूप से बारीक बिंदु और रेखाओं का उपयोग किया जाता है, जो चित्रों को एक विशेष रूप प्रदान करता है।
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