MP के सागर के बहुचर्चित नितिन हत्याकांड में अदालत का फैसला, साक्ष्यों के अभाव में सभी 13 आरोपी बरी

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी भी आरोपी के खिलाफ हत्या के पर्याप्त और ठोस सबूत नहीं मिले हैं। मृतक की मां और अन्य गवाहों के बयानों में भारी विरोधाभास था, और मुख्य गवाह की मौत हो जाने से अभियोजन पक्ष मजबूत तर्क नहीं दे पाया।
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सांकेतिक तस्वीरफोटो साभार- इंटरनेट
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भोपाल। मध्य प्रदेश के सागर जिले की खुरई विधानसभा के ग्राम बरोदिया नौनागिर में 24 अगस्त 2023 को हुए बहुचर्चित नितिन उर्फ लालू अहिरवार हत्याकांड में अदालत ने फैसला सुना दिया है। न्यायालय ने साक्ष्यों के अभाव में हत्याकांड के सभी 13 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। अदालत में सुनवाई के दौरान गवाहों के बयानों में भारी विरोधाभास पाया गया, जिससे अभियोजन पक्ष के तर्क कमजोर पड़ गए। इस मामले में मृतक की बहन अंजना अहिरवार मुख्य चश्मदीद गवाह थी, लेकिन उसकी गवाही से पहले ही एक दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। वहीं, मृतक की मां के बयानों में बार-बार बदलाव देखने को मिला, जिससे अभियोजन पक्ष को नुकसान हुआ।

पुलिस जांच में नहीं मिले पुख्ता सबूत, अदालत ने माना साक्ष्य अधूरे

न्यायालय में सुनवाई के दौरान पुलिस की जांच पर भी सवाल उठे। अदालत ने पाया कि पुलिस आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस और पुख्ता सबूत पेश नहीं कर सकी, जिससे उनकी दोषसिद्धि सुनिश्चित हो सके। मामले की जांच के दौरान सामने आया कि घटना स्थल के पास एक दुकान में सीसीटीवी कैमरा लगा था, लेकिन घटना के दौरान भीड़ द्वारा उस कैमरे का डीवीआर निकालकर ले जाने की बात सामने आई। दुकानदार ने न्यायालय में दिए अपने बयान में इस तथ्य की पुष्टि की, लेकिन पुलिस पूरी जांच के दौरान डीवीआर को बरामद नहीं कर पाई।

क्या था पूरा मामला?

घटना 24 अगस्त 2023 की शाम की है। मृतक नितिन उर्फ लालू अहिरवार पर ग्राम बरोदिया नौनागिर में बस स्टैंड के पास हमला किया गया था। आरोपी पक्ष ने एक पुराने मामले में राजीनामा करने का दबाव बनाया था, जिसके बाद विवाद बढ़ गया और नितिन की बेरहमी से पिटाई की गई। गंभीर चोटों की वजह से उसकी मौके पर ही मौत हो गई। बीच-बचाव करने आई उसकी मां को भी आरोपियों ने बुरी तरह पीटा और निर्वस्त्र कर दिया। आरोपियों ने मृतक के घर में घुसकर तोड़फोड़ भी की थी। मामले में पुलिस ने 13 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिनमें ग्राम पंचायत के सरपंच पति और उनका बेटा भी शामिल थे। यह मामला विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में चर्चा का विषय बना, और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मृतक के परिवार से मिलने गांव का दौरा भी किया था।

गवाहों के बयानों में विरोधाभास, अभियोजन पक्ष कमजोर

मृतक की मां ने अपने बयानों में कहा कि उनका बेटा नितिन सब्जी लेने गया था और जब वे वहां पहुंची, तो आरोपियों ने उनके बेटे को पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि "अंकित" नाम के व्यक्ति ने उन्हें निर्वस्त्र कर मारपीट की, लेकिन अदालत ने पाया कि मामले में अंकित नाम का कोई आरोपी ही नहीं था। इसके अलावा, मां और भाई ने यह भी दावा किया कि उनके पास वारदात के वीडियो हैं, लेकिन उन्होंने न तो पुलिस को ये वीडियो सौंपे और न ही अदालत में पेश किए। इससे अभियोजन पक्ष की स्थिति कमजोर हो गई।

इसके अलावा, इस मामले के दो महत्वपूर्ण गवाह आकाश और विष्णु की गवाही को अदालत ने अविश्वसनीय माना, क्योंकि घटना के दिन वे पुलिस अभिरक्षा में थे। अदालत ने यह भी पाया कि अभियोजन पक्ष यह प्रमाणित नहीं कर सका कि मृतक के शरीर पर जो चोटें थीं, वे आरोपियों से जब्त हथियारों से हुई थीं।

मुख्य चश्मदीद गवाह अंजना की मौत ने अभियोजन को कमजोर किया

इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण गवाह मृतक की बहन अंजना अहिरवार थी, जो वारदात की प्रत्यक्षदर्शी थी। हालांकि, मई 2024 में उसकी मौत हो गई, जिससे अभियोजन पक्ष को बड़ा झटका लगा। दरअसल, मई में ही हुए एक विवाद के दौरान उसके मुंह बोले चाचा राजेंद्र अहिरवार की हत्या कर दी गई थी। जब वह उनके शव का पोस्टमार्टम कराकर लौट रही थी, तब रास्ते में उसने चलती एंबुलेंस से छलांग लगा दी, जिससे गंभीर चोटें आईं और उसकी मौत हो गई। अंजना की मौत के चलते उसकी गवाही नहीं हो पाई, जिससे अभियोजन का केस और कमजोर पड़ गया।

गांव के प्रभावशाली लोगों पर थे आरोप, लेकिन दोष सिद्ध नहीं हुआ

इस हत्याकांड में गांव के कोमल सिंह ठाकुर और उनके दो बेटे विक्रम ठाकुर व आजाद ठाकुर को भी आरोपी बनाया गया था। कोमल सिंह ठाकुर की पत्नी वर्तमान में ग्राम पंचायत की सरपंच हैं और वह निर्विरोध चुनी गई थीं। वहीं, कोमल सिंह खुद पूर्व जनपद उपाध्यक्ष रह चुका है। इस मामले में इस्लाम खान, गोलू सोनी, अनीश खान, गोलू उर्फ फरीम खान, अभिषेक रैकवार, अरबाज खान सहित कुल 13 लोगों को आरोपी बनाया गया था।

अदालत ने कहा - संदेह के आधार पर सजा संभव नहीं

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि किसी भी आरोपी के खिलाफ हत्या के पर्याप्त और ठोस सबूत नहीं मिले हैं। मृतक की मां और अन्य गवाहों के बयानों में भारी विरोधाभास था, और मुख्य गवाह की मौत हो जाने से अभियोजन पक्ष मजबूत तर्क नहीं दे पाया। पुलिस की जांच में भी गंभीर खामियां पाई गईं, जैसे - सीसीटीवी का डीवीआर गायब होना, पीड़ित पक्ष द्वारा वीडियो सबूत न देना और मेडिकल रिपोर्ट में अभियोजन पक्ष द्वारा स्पष्ट प्रमाण न प्रस्तुत करना। इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने सभी 13 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया।

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