भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय में जनजातीय चित्रकला को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही शलाका चित्र प्रदर्शनी की 59वीं कड़ी की शुरुआत हो गई है। इस बार यह प्रदर्शनी भील समुदाय की युवा चित्रकार पायल मेड़ा के चित्रों को समर्पित है। प्रदर्शनी सह-विक्रय का आयोजन 3 मार्च 2025 से 30 मार्च 2025 तक किया गया है, जहां उनके चित्रों को देखा और खरीदा जा सकता है।
मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय द्वारा ‘लिखन्दरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में प्रत्येक माह किसी एक जनजातीय चित्रकार की कृतियों को प्रदर्शनी और विक्रय के लिए प्रस्तुत किया जाता है। ‘शलाका’ नाम से जारी इस श्रृंखला का उद्देश्य प्रदेश के जनजातीय कलाकारों को प्रोत्साहित करना और उनकी कला को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाना है। इसी क्रम में मार्च माह के लिए भीली चित्रकार पायल मेड़ा को यह अवसर प्रदान किया गया है।
भोपाल में जन्मी पायल मेड़ा बचपन से ही पारंपरिक भीली चित्रकला से जुड़ी रही हैं। पिता के असमय निधन के बाद आर्थिक चुनौतियों के कारण उनकी शिक्षा केवल प्राथमिक स्तर तक ही हो पाई। हालांकि, उन्होंने अपनी मां सुप्रसिद्ध चित्रकार लाडोबाई से चित्रकला की बारीकियां सीखी और इसी क्षेत्र में अपना भविष्य गढ़ा। लाडोबाई स्वयं भी एक प्रसिद्ध भीली चित्रकार हैं और उनकी प्रेरणा ने पायल को आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पायल न केवल पारंपरिक पिथौरा चित्रकला में निपुण हैं, बल्कि उनके चित्रों में पशु-पक्षी, प्रकृति और जनजातीय जीवन के विभिन्न पहलुओं की झलक भी देखी जा सकती है। वे भारत भवन, भोपाल सहित कई सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थानों के लिए जनजातीय बच्चों को चित्रकला का प्रशिक्षण देने में भी सक्रिय रही हैं।
द मूकनायक से बातचीत में पायल ने कहा, "चित्रकला मेरे लिए सिर्फ आजीविका का साधन नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति को जीवंत रखने का माध्यम भी है। कठिनाइयों के बावजूद मैंने इसे नहीं छोड़ा, क्योंकि यह मेरे अस्तित्व का हिस्सा है।"
पायल भारत भवन, भोपाल सहित कई संस्थानों में जनजातीय बच्चों को चित्रकला का प्रशिक्षण दे रही हैं और चाहती हैं कि आने वाली पीढ़ी भी अपनी पारंपरिक कला को सहेजे और आगे बढ़ाए।
भीली चित्रकला की इस युवा कलाकार ने नई दिल्ली, बड़ौदा, भोपाल समेत कई शहरों में आयोजित चित्रकला प्रदर्शनियों में अपनी भागीदारी दर्ज कराई है। उनकी कृतियों में परंपरा और नवाचार का अनूठा संगम देखने को मिलता है, जिससे उनकी चित्रकला को अलग पहचान मिल रही है।
अपनी सफलता का श्रेय पायल अपनी मां लाडोबाई को देती हैं। उन्होंने बताया कि चित्रकला में उनकी यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन मां के सतत मार्गदर्शन और प्रेरणा ने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
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