मध्य प्रदेश: पहली बार चुने गए इस आदिवासी MLA ने विधानसभा में रख दी ये डिमांड!

डोडियार ने विधानसभा में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी छोटे राज्यों के गठन के पक्षधर थे। उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड, मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ और बिहार से झारखंड राज्य बना।
मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा का विशेष सत्र
मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा का विशेष सत्र फोटो- द मूकनायक

भोपाल। मध्य प्रदेश में भील प्रदेश की मांग तेज हो गई है। गुरुवार को मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा के विशेष सत्र के अंतिम दिन यह मांग भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के विधायक कमलेश्वर डोडियार ने की है। उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार को इसपर गौर करना चाहिए। इस मांग के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं।

गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भील प्रदेश को लेकर भारत आदिवासी पार्टी के साथ विभिन्न सामाजिक संगठन इसे उठाते रहे हैं। 108 साल पुरानी यह मांग अब प्रदेश की विधानसभा में आ पहुचीं है। दरअसल रतलाम की सैलाना सीट से आदिवासी विधायक कमलेश्वर डोडियार ने राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए कहा कि आदिवासियों के विकास के लिए भील प्रदेश की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और केंद्र में भाजपा की ही सरकार है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।

डोडियार ने विधानसभा में कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी छोटे राज्यों के गठन के पक्षधर थे। उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड, मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ और बिहार से झारखंड राज्य बना। इन राज्यों के गठन के बाद तेजी से विकास हुआ। इसलिए भील प्रदेश भी बनना चाहिए।

इन दोनों प्रदेशों में बीएपी के चार विधायक

विधानसभा चुनाव 2023 में राजस्थान में भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) को 3 और मध्य प्रदेश में 1 सीट पर जीत मिली है। बीएपी राजस्थान विधानसभा की 4 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। बांसवाड़ा-डूंगरपुर इलाके में पार्टी का वोट प्रतिशत 27 के आसपास रहा। कहा जा रहा है कि आने वाले वक्त में भील प्रदेश की मांग बीजेपी की परेशानी बढ़ा सकती है।

इसके कारण यह भी है कि गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी की ही सरकार है। इन तीनों राज्यों में आदिवासियों की संख्या लगभग 4.4 करोड़ है। तीनों ही राज्यों में आदिवासियों के लिए लोकसभा की 13 सीटें रिजर्व है। 2019 में इन 13 सीटों पर बीजेपी को एकतरफा जीत मिली थी।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए आदिवासी विधायक कमलेश्वर डोडियार ने कहा कि मध्य प्रदेश काफी बड़ा राज्य है इसलिए आदिवासियों पर इतना ध्यान नहीं जाता है। आदिवासी भील समुदाय काफी पिछड़ा हुआ है। और यही हालात राजस्थान, गुजरात में भी है। डोडियार ने कहा कि हम कोई नए राज्य के गठन की मांग नहीं कर रहे। भील प्रदेश तो पूर्व में अस्तित्व में रहा है। आजादी के पहले लोग इन स्थानों को भील कंट्री के नाम से जानते थे। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी छोटे राज्यों के पक्ष में थे।

बीएपी के विधायक कमलेश्वर डोडियार
बीएपी के विधायक कमलेश्वर डोडियार

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में इसका असर भाजपा पर पड़ सकता है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नितिन दुबे ने कहा कि भील प्रदेश की मांग पहले के मुताबिक बहुत तेज हुई है। पिछले पांच वर्षों में राजस्थान में इस मांग को लेकर सैकड़ों आंदोलन हुए। जब कोई भी मांग आंदोलन में बदल जाए तो निश्चित रूप से वर्तमान सरकार को इसका नुकसान उठाना पड़ता है।

इन जिलों को शामिल करने मांग- भील प्रदेश गठन के लिए गुजरात उत्तर पूर्व, राजस्थान के दक्षिण और मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग को शामिल करने की मांग की जा ही है। जिलों के हिसाब से देखा जाए, तो इसमें करीब 20 जिलों का पूर्ण हिस्सा और 19 जिलों का आंशिक हिस्सा शामिल किए जाने की मांग की जा रही है। राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही, राजसमंद और चित्तौड़गढ़, जालोर-बाड़मेर-पाली इलाके में भील प्रदेश की मांग समय-समय पर उठती रही है। इसी के साथ मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, झाबुआ, रतलाम, धार, बुरहानपुर, बडवानी, खंडवा, खरगोन जैसे जिले में इसकी अलग प्रदेश बनाने की मांग हो रही है। दरअसल इनमें से कुछ जिले के हिस्से गुजरात की शीमा से सटे हुए हैं।

कब शुरू हुई भील प्रदेश की मांग?

भारत में भील सबसे पुरानी जनजाति है, जिसकी आबादी करीब 1 करोड़ के आसपास है। भील द्रविड़ का वील शब्द से बना हुआ है, जिसका मतलब होता है- धनुष। भील जनजाति के लोग अपने लिए लंबे वक्त से अलग प्रदेश की मांग कर रहे हैं। साल 1913 में पहली बार मानगढ़ में समाजिक कार्यकर्ता और खानाबदोश बंजारा जनजाति के गोविंदगिरी ने अपने 1500 समर्थकों के साथ अलग प्रदेश की मांग रखी थी।

रिहा होने के बाद गोविंदगिरी के नेतृत्व में उनके समर्थकों ने मानगढ़ के पास बड़ा आंदोलन किया। आंदोलन को खत्म करने के लिए स्थानीय प्रशासन ने अंग्रेजों से सहायता मांगी। इसके बाद की पुलिसिया कार्रवाई में कई भील आदिवासी मारे गए थे। घटना के बाद गोविंदगिरी और पुंजा धीरजी को गिरफ्तार कर अंडमान जेल भेज दिया गया। आजादी के वक्त भी भील प्रदेश की मांग को लेकर सुगबुगाबहट हुई, लेकिन शुरू में इस मांग को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई। इसके बाद से ही समय-समय भील प्रदेश की मांग उठने लगी।

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