सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए प्रधानमंत्री को लिखी ’पाती’

आगामी 15 नवम्बर को झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री की बिरसा मुंडा की जन्मस्थली की यात्रा के दौरान 7वें धर्म के तौर पर मान्यता देने की मांग।
सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए प्रधानमंत्री को लिखी ’पाती’

नई दिल्ली। आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मु ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर सरना धर्म कोड को सातवें धर्म के तौर पर मान्यता देने की मांग की है। आगामी 15 नवंबर को प्रदेश दौरे पर आ रहे प्रधानमंत्री से इस आशय की घोषणा करने की अपील की गई है, जिससे भारत के लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी को मान्यता मिल सके।

क्या लिखा पत्र में?

पूर्व सांसद ने पत्र में लिखा है कि, “आप भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर (1875), जो झारखंड प्रदेश का स्थापना दिवस (15 नवंबर 2000) भी है, के ऐतिहासिक शुभ अवसर पर 15 नवंबर 2023 को बिरसा मुंडा के जन्मस्थली उलिहातू ग्राम, खूंटी- रांची पधार रहे हैं। आदिवासी सेंगेल अभियान बिरसा मुंडा की धरती पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत करता है। आपने महामहिम राष्ट्रपति के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर द्रौपदी मुर्मू को पदास्थापित कर संपूर्ण भारत के आदिवासियों को सम्मानित और गौरान्वित किया है। उसी प्रकार बिरसा मुंडा को राष्ट्रीय आइकॉन बनाया है। बिरसा के जन्मदिन 15 नवंबर को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस- 2022 में घोषित और पालन कर राष्ट्र के सभी आदिवासी वीर शहीदों और उनके राष्ट्र रक्षा संघर्षों और बलिदानों को रेखांकित और सम्मानित किया है। भारतीय आदिवासी समाज आपका हृदय से आभारी है। क्या आप इस ऐतिहासिक दौरे में भारत के प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड देकर धार्मिक आजादी प्रदान कर धन्य करेंगे?“

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सरना धर्म क्या है?

सरना धर्म को उसके अनुयायी एक अलग धार्मिक समूह के रूप में स्वीकार करते हैं, जो मुख्य रूप से प्रकृति के उपासकों से बना है। सरना आस्था के मूल सिद्धांत जल (जल), जंगल (जंगल), जमीन (जमीन) के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिसमें अनुयायी वन क्षेत्रों के संरक्षण पर जोर देते हुए पेड़ों और पहाडि़यों की पूजा करते हैं। पारंपरिक प्रथाओं के विपरीत, सरना विश्वासी मूर्ति पूजा में शामिल नहीं होते हैं और वर्ण व्यवस्था या स्वर्ग- नरक की अवधारणाओं में विश्वास नहीं करते हैं। सरना के अधिकांश अनुयायी ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे आदिवासी बेल्ट में केंद्रित हैं।

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मान्यता और संरक्षण की मांग

सरना धर्म के पैरोकार कई बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को संबोधित पत्रों में अपने विचार व्यक्त करते हुए आदिवासियों के लिए एक अलग धार्मिक संहिता की स्थापना की मांग करते रहे हैं। वे दावा करते हैं कि स्वदेशी लोग प्रकृति के उपासक हैं और उन्हें एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। सालखन मुर्मू कहते हैं कि एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता जनजातियों को उनकी भाषा और इतिहास के संवर्द्धन के लिए बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगी। इस तरह की मान्यता के अभाव में ही कुछ समुदाय के सदस्यों ने अल्पसंख्यक स्थिति और आरक्षण का लाभ उठाने के लिए हाल ही में ईसाई धर्म अपनाया।

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प्रकृति संरक्षण के लिए सरनावाद का महत्व

विशेषज्ञों का तर्क है कि प्रदूषण को दूर करने और वनों के संरक्षण पर वैश्विक फोकस के साथ, मूल समुदायों को सबसे आगे रखा जाना चाहिए। सरनावाद को एक धार्मिक संहिता के रूप में मान्यता देना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस धर्म का सार प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में निहित है।

प्रगति और चुनौतियां

नवंबर 2020 में, झारखंड सरकार ने सरना धर्म को मान्यता देने और इसे 2021 की जनगणना में एक अलग कोड के रूप में शामिल करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने के लिए एक विशेष विधानसभा सत्र आयोजित किया। हालांकि, केंद्र सरकार ने अभी तक इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया और कार्रवाई नहीं की है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी भारत की जनगणना के लिए धर्म कोड के भीतर एक स्वतंत्र श्रेणी के रूप में सरना धर्म की सिफारिश की है।

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सरना धर्म कोड की मान्यता संघर्ष-आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

1. भारत देश के लगभग 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी अर्थात सरना धर्म कोड की मान्यता से वंचित रखने के लिए मुख्यतः कांग्रेस और भाजपा दोषी हैं। 1951 की जनगणना तक आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक कॉलम था। जिसे कांग्रेस पार्टी ने बाद में हटा दिया। अब भाजपा आदिवासियों को जबरन हिंदू बनाने पर उतारू है। परन्तु 2011 की जनगणना में प्रकृति पूजक आदिवासियों ने 50 लाख की संख्या में सरना धर्म लिखाया था जबकि मान्यता प्राप्त जैन धर्म वालों की संख्या 44 लाख थी। तब भी आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता अबतक नहीं देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकार पर हमला है। धार्मिक गुलामी की यह प्रताड़ना भारत के आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि बनने- बनाने को मजबूर करती है। नतीजतन आदिवासी अपनी भाषा संस्कृति, सोच संस्कार और प्रकृतिवाद जीवन मूल्यों आदि की जड़ों से कटने को विवश हैं। जो भयंकर धार्मिक शोषण और मानवाधिकार का उल्लंघन है।

2. अपनी धार्मिक आजादी को 2023 में हासिल करने के लिए देश-विदेश से लाखों आदिवासी सरना धर्म कोड जनसभा के लिए 8 नवंबर 2023 को रांची (झारखंड) के मोरहाबादी मैदान में एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे। देश के महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और मान्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी ललकारेंगे। भारत के आदिवासियों को संविधान प्रदत्त धार्मिक आजादी प्रदान करो। सरना धर्म कोड मान्यता की घोषणा करो अन्यथा 8 दिसंबर भारत बंद होगा। रेल-रोड चक्का जाम होगा। सेंगेल आदिवासियों के धार्मिक आजादी के साथ समाजिक और राजनीतिक आजादी के लिए भी 7 प्रदेशों में संघर्षरत हैं।

3. सरना धर्म कोड मान्यता का मामला 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी के साथ प्रकृति पर्यावरण को बचाने का भी मामला है।

4. बीजेपी-आरएसएस के चिंतकों की सोच है कि सरना की मांग के पीछे चर्च का हाथ है। जो गलत और निराधार है। बल्कि सरना धर्म कोड की मान्यता हो जाए तो कोई सरना आदिवासी ईसाई नहीं बनेगा और बने हुए ईसाई भी सरना में घर वापसी करेंगे। अन्यथा प्रकृति पूजक आदिवासियों को विदेशी धर्म संस्कृति की ओर धकेलने के लिए बीजेपी- आरएसएस जिम्मेवार होंगे।

5. जनसंघ-आरएसएस ने पहले भी एक ऐतिहासिक भूल की थी। झारखंड अलग प्रांत आंदोलन को चर्च की साजिश बताकर विरोध किया था। अंततः आदिवासियों की प्रबल जनभावना के कारण झारखंड प्रदेश के रूप में स्थापित हो जाता है।

6. बीजेपी-आरएसएस प्रकृति पूजक आदिवासियों को हिंदू का ठप्पा लगाने को आमादा है। जबकि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 और हिंदू सकसेशन एक्ट 1956 के तहत आदिवासी उसमें शामिल नहीं हैं। आदिवासी प्रकृति पूजक हैं, मूर्ति पूजक नहीं हैं। आदिवासियों के बीच कोई वर्ण व्यवस्था नहीं है। आदिवासियों के बीच स्वर्ग नरक की भी परिकल्पना नहीं है। आदिवासी अपनी सोच- संस्कार, अचार- व्यवहार से भिन्न हैं।

7. प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए सभी पहाड़ पर्वत पूजनीय हैं, देवी देवता की तरह हैं। अतएव सरना धर्म के पवित्र धर्मस्थलों यथा मरांग बुरु ( पारसनाथ पहाड़, गिरिडीह), लुगु बुरु (लालपनिया, बोकारो) और अयोध्या बुरु (पुरुलिया, बंगाल) आदि को भी बचाना आदिवासियों के लिए अयोध्या का राम मंदिर और अमृतसर का स्वर्ण मंदिर की तरह पवित्र हैं। महान धर्मस्थल हैं। अतः कृपया हमारे ईश्वर, हमारे धर्मस्थल और हमारी आस्था को सम्मानित करना और बचना भी भारत देश का दायित्व और कर्तव्य है।

8. हिंदू धर्म के साथ अन्य भारतीय धर्म सिख, जैन, बौद्ध आदि चल सकते हैं तो प्राचीनतम प्रकृति धर्म - सरना धर्म क्यों नहीं चल सकता है?

9. सरना धर्म (प्रकृति धर्म) को मानने वालों को जबरन किसी और धर्म में धर्मान्तरण करना उनका धार्मिक नरसंहार जैसा है। धार्मिक आजादी के मानवाधिकार का घोर उल्लंघन है।

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