रांची- झारखंड की महिलाओं ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर एकजुट होकर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों की मांग को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाया। 8 मार्च को रांची में आयोजित महिला अधिकार सम्मेलन में राज्य भर के विभिन्न जिलों से आई 200 से अधिक महिला प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में महिलाओं ने रोजगार, राजनीति और सामाजिक नेतृत्व में 50% आरक्षण, घरेलू हिंसा से निपटने के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर (OSCC) की स्थापना, और महिलाओं को सम्मानजनक मजदूरी व कार्यक्षेत्र में बराबरी के अधिकार सहित कई मुख्य मांगें रखीं।
यह सम्मेलन झारखंड जनाधिकार महासभा और कई अन्य संगठनों के सहयोग से आयोजित किया गया था, जिसका मुख्य विषय था - "समाज, अर्थ और राजनीति में समानता के हक की दावेदारी।" सम्मेलन में शामिल महिलाओं ने अपने जीवन, परिवार और समाज में बराबरी के अधिकार के लिए चल रहे संघर्षों को साझा किया और एकजुट होकर पितृसत्ता, आर्थिक शोषण और राजनीतिक उपेक्षा के खिलाफ आवाज बुलंद की।
सम्मेलन की शुरुआत में लौना और रिया तुसिका पिंगुआ ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ऐतिहासिक महत्व को याद दिलाया। उन्होंने बताया कि 100 साल पहले अमेरिका और यूरोप में महिलाएं वोट के अधिकार और बराबर रोजगार के लिए संघर्ष कर रही थीं, वहीं रूस में महिलाओं ने विश्व युद्ध, भूख और जार के तानाशाही शासन के खिलाफ 8 मार्च 1917 को क्रांति का बिगुल फूंका था। यह दिन आज पूरी दुनिया में महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बन चुका है।
सम्मेलन में शामिल महिलाओं ने अपने जीवन, परिवार और समाज में बराबरी के अधिकार के लिए चल रहे संघर्षों को साझा किया। शोधकर्ता नसरीन आलम ने बताया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में 32% महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।
एकल नारी सशक्ति संगठन की कौशल्या देवी ने कहा कि समाज में एकल महिलाओं को कई तरह के शोषण का सामना करना पड़ता है, जिसके खिलाफ उनका संगठन लगातार संघर्ष कर रहा है।
आदिवासी नेत्री दयामनी बरला ने झारखंड राज्य के गठन में महिलाओं के योगदान को याद करते हुए कहा कि राज्य बनने के बाद पुरुषों ने उनके संघर्ष को भुला दिया। उन्होंने राजनीति में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला और कहा कि आज भी झारखंड में केवल 10-15% विधायक महिलाएं हैं।
कुछ धार्मिक संगठनों से जुड़ी महिलाओं ने कहा कि धर्म महिलाओं के निजी जीवन और सामाजिक स्थिति को सीमित दायरे में बांधकर रखता है। धार्मिक व्यवस्था में महिलाओं के लिए नेतृत्व की भूमिका हासिल करना एक बड़ी चुनौती है। महिला कवि जसिता केरकेट्टा ने कहा कि समाज, धर्म और पुरुष महिलाओं को घेरकर रखते हैं। पितृसत्ता को खत्म करने के लिए महिलाओं को इन सब पर सवाल उठाना होगा।
अनेक महिलाओं ने कहा कि गैर-बराबरी का एक मुख्य कारण संसाधनों और अर्थ पर महिलाओं का नियंत्रण न होना है। आर्थिक रूप से महिलाओं के श्रम का घर में और बाहर (कंपनी, बाजार, खेती-मजदूरी आदि) व्यापक शोषण होता है। इझामुमो से जुड़ी रजनी मुर्मू ने कहा कि जमीन पर अधिकार न होना आदिवासी महिलाओं के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है।
एपवा की नंदिता भट्टाचार्य ने महिलाओं के अधिकारों पर मंडरा रहे संकट को याद दिलाया। उन्होंने कहा कि आरएसएस और भाजपा देश को संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हिंदू राष्ट्र बनाने पर तुली हैं, जहां महिलाओं की जिंदगी हिंदुत्व और वर्ण व्यवस्था पर आधारित होगी। एड़या की वीणा लिंडा ने कहा कि केंद्र सरकार महिलाओं को संसद और विधानसभा में आरक्षण देने का डोंग कर रही है, लेकिन इसे लागू करने के लिए महिलाओं को आंदोलन करना होगा।
रोजगार में 50% आरक्षण: महिलाओं के लिए हर स्तर की नौकरियों में कम से कम 50% आरक्षण लागू किया जाए। लैंगिक समता के लिए विशेष नीति बनाई जाए और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए।
हिंसा पीड़ितों के लिए सहायता: हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर (OSCC) सक्रिय किया जाए। मानव तस्करी पीड़ितों के लिए पुनर्वास व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व: राज्य में कम से कम 50% विधायक महिलाएं हों। राजनीतिक पार्टियों के हर स्तर की समितियों और नेतृत्व में 50% महिलाएं शामिल हों।
सम्मानजनक मजदूरी: महिलाओं को सम्मानजनक मजदूरी और कार्यक्षेत्र में बराबरी का अधिकार मिले। असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिए मातृत्व अधिकार सुनिश्चित किए जाएं।
शिक्षा और स्वास्थ्य में समानता: परिवार और समाज से अपील की गई कि लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, खेल और रोजगार में बिना भेदभाव के समान अवसर दिए जाएं।
सम्मेलन में आदिवासी विमेंस नेटवर्क, पडवा, एपवा, नारी शक्ति क्लब सहित कई संगठनों ने भाग लिया। दयामनी बरला, एमेलिया, जसिता केरकेट्टा, गीताश्री उरांव, वीणा लिंडा जैसी नेतृत्वकर्ताओं ने अपने विचार साझा किए। सम्मेलन का संचालन एलिना होरो, लौना और रिया तुक्तिका पिंगुआ ने किया।
झारखंड की महिलाओं ने इस सम्मेलन के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया कि वे अब पितृसत्ता, आर्थिक शोषण और राजनीतिक उपेक्षा के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने के लिए तैयार हैं। उनकी यह एकजुटता न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है।
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