कर्नाटक के मंगलुरु में दलितों की नाराज़गी: DCRE थाने पर लापरवाही के आरोप, पुलिस को दी चेतावनी

दलित कार्यकर्ताओं ने डीसीआरई थानों की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल, पुलिस को चेताया, आंदोलन की तैयारी
Mangaluru: दलितों का DCRE थानों पर लापरवाही का आरोप, पुलिस को दी चेतावनी
Mangaluru: दलितों का DCRE थानों पर लापरवाही का आरोप, पुलिस को दी चेतावनीफोटो साभार- TOI
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मंगलुरु: जिले में अनुसूचित जाति और जनजातियों पर अत्याचार के मामलों की जांच के लिए अलग से सिविल राइट्स एनफोर्समेंट निदेशालय (DCRE) थाने स्थापित किए जाने के बावजूद, पीड़ितों को न्याय नहीं मिल रहा है। इस स्थिति से असंतुष्ट होकर दक्षिण कन्नड़ के दलित कार्यकर्ताओं ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है।

रविवार को मंगलुरु पुलिस आयुक्त कार्यालय में आयोजित बैठक में दलित कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी शिकायतें रखीं। यह बैठक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की शिकायतों पर केंद्रित थी और इसमें मंगलुरु सिटी पुलिस कमिश्नरेट व दक्षिण कन्नड़ जिला पुलिस की कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई। बैठक की अध्यक्षता डीसीपी (कानून-व्यवस्था) मिथुन एचएन और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अनिल कुमार एस. भूमरड्डी ने की।

बैठक के दौरान जगदीश पंडेश्वर ने एक मामले का ज़िक्र किया जिसमें एक दलित महिला को विदेश में रहने वाले शख्स ने व्हाट्सएप के जरिए अश्लील कॉल और संदेश भेजे। महिला ने शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। मामला डीसीआरई थाना भेजा गया, लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी तक नहीं हुई। आरोप है कि थाना प्रभारी ने भी गैर-जिम्मेदाराना जवाब दिए।

कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि अगर अगले बैठक तक ऐसे मामलों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे। उन्होंने डीसीआरई थाने में दर्ज अत्याचार के मामलों का पूरा रिकॉर्ड सार्वजनिक करने की भी मांग की।

इस पर डीसीपी मिथुन ने कहा कि चूंकि डीसीआरई फिलहाल सिटी पुलिस आयुक्त के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, इसलिए कार्यकर्ताओं की शिकायतों को लेकर एक पत्र डीसीआरई के डीजी को भेजा जाएगा।

दलित नेताओं की अन्य मांगें

बैठक में दलित नेता एसपी आनंद ने कहा कि सरकार को अनुसूचित जाति-जनजाति समुदाय के लिए स्व-रोज़गार लाभार्थियों के चयन की पुरानी प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए। पहले यह चयन जिला उपायुक्त की अध्यक्षता वाली समिति करती थी, लेकिन पिछले 15 वर्षों से यह काम स्थानीय विधायकों के हाथ में है। इसके चलते अधिकतर लाभ प्रभावशाली वर्ग और विधायकों के करीबी लोगों को मिलते हैं, जबकि वास्तविक ज़रूरतमंद वंचित रह जाते हैं।

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