आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए वकीलों का घोषणापत्र, की ये मांगें..

इस अभियान का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के एडवोकेट मुकेश कर रहे हैं, जो लंबे समय से देशभर में वकीलों के समुदाय को प्रभावित करने वाले इन सुधारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। उनका यह प्रयास वकीलों की सुरक्षा, कल्याण और पेशे में समावेशिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जा रहा है।
वकीलों एक एक समूह
वकीलों एक एक समूहएआई तस्वीर
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नई दिल्ली - ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (AILAJ) ने 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए एक व्यापक घोषणापत्र जारी किया है। इस घोषणापत्र में वकीलों, कानूनी सहायकों और विधि समुदाय के कल्याण और सुरक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण मांगें शामिल हैं।

घोषणापत्र की एक प्रमुख मांग दिल्ली एडवोकेट्स प्रोटेक्शन एक्ट लागू करना है। हाल ही में वकीलों पर हुए हमलों, जैसे एसिड हमले और चाकूबाजी, ने अधिवक्ताओं के लिए कानूनी और संस्थागत सुरक्षा की आवश्यकता को स्पष्ट कर दिया है।

दिल्ली अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम:

  • AILAJ दिल्ली में वकीलों के लिए एक संरक्षण अधिनियम की मांग करता है जो हिंसा, धमकी, और उत्पीड़न से बचाव प्रदान करे। यह अधिनियम विशेष रूप से जाति, वर्ग, लिंग या पहचान के आधार पर होने वाले अपराधों से सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा:

  • संगठन ने मासिक भत्ते, व्यापक चिकित्सा बीमा, और पेंशन योजनाओं की मांग की है, विशेषकर उन वकीलों और कानूनी सहायकों के लिए जो वित्तीय असुरक्षा का सामना करते हैं। मातृत्व और पितृत्व लाभ, तथा आपातकालीन राहत कोष की भी मांग की गई है।

न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार:

  • दिल्ली की जिला अदालतों के आधुनिकीकरण की मांग की गई है, जिसमें प्रयाप्त स्थान, बेहतर हवादारी, नि:शुल्क और तेज इंटरनेट, साफ शौचालय और पीने के पानी की सुविधा शामिल है। विशेष रूप से, विकलांग व्यक्तियों के लिए सुलभता बढ़ाई जानी चाहिए।

लिंगिक और विविधता समावेशन:

  • लिंगिक और विविधता समावेशन को प्रोत्साहित करने के लिए, AILAJ ने शिशु देखभाल केंद्र, सेनेटरी पैड वेंडिंग मशीनें, और लचीले कार्य समय की स्थापना की वकालत की है।

न्याय तक पहुंच को सुलभ बनाना:

  • ई-कोर्ट और वर्चुअल सुनवाई के विस्तार को प्रोत्साहित करना, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में देरी कम हो और न्याय व्यवस्था अधिक सुलभ हो सके।

AILAJ ने सभी चुनावी उम्मीदवारों से इन मांगों को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करने और जीत के बाद इनका क्रियान्वयन करने का आह्वान किया है। वे मानते हैं कि वकीलों की सुरक्षा और सशक्तिकरण एक न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला है।

इस घोषणापत्र के साथ, AILAJ ने एक प्रस्तावित 'दिल्ली अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम' का मसौदा भी प्रकाशित किया है जो समीक्षा और चर्चा के लिए उपलब्ध है।

घोषणापत्र में निम्नलिखित बिंदुओं पर भी जोर दिया गया है:

  • वकीलों और लॉ क्लर्क्स के लिए आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना, जो अस्थिर और जोखिमभरे हालात में काम करते हैं।

  • दिल्ली में न्यायालयों के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना ताकि न्याय तक सभी की पहुंच आसान हो सके।

  • कानून के क्षेत्र में लैंगिक और क्वीयर समावेश को बढ़ावा देना। यह पेशा अभी भी पुरुष-प्रधान है और महिलाओं, क्वीयर व्यक्तियों और हाशिये पर मौजूद वकीलों के लिए कई बाधाओं से भरा हुआ है।

AILAJ के राष्ट्रीय महासचिव और बेंगलुरु के ट्रेड यूनियन नेता, एडवोकेट क्लिफ्टन डी’ रोज़ारियो ने घोषणापत्र जारी करते हुए कहा, “वकील लोकतंत्र के एक स्वतंत्र स्तंभ हैं और वे राजनेताओं की मर्जी के आगे कभी नहीं झुकेंगे। यह घोषणापत्र हमारी पेशेवर अधिकारों की लड़ाई है—मूलभूत सुरक्षा की लड़ाई, जिसके बिना वकील अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं कर सकते।”

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रोहिन भट्ट ने न्यायपालिका में लोकतंत्रीकरण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “न्यायपालिका और कानूनी पेशे का लोकतंत्रीकरण लैंगिक और क्वीयर समावेश के बिना संभव नहीं है। महिलाएं और ट्रांस व्यक्ति अक्सर वकीलों के चैंबर और बार रूम में उत्पीड़न का सामना करते हैं। महिलाओं के लिए अलग बार रूम, वकीलों के लिए लैंगिक और क्वीयर संवेदनशीलता कार्यक्रम, और अदालतों में समान अवसर सेल की स्थापना तत्काल जरूरी है।”

एडवोकेट भट्ट ने यह भी सुझाव दिया कि इन मांगों को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 2019 और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुरूप बनाया जाना चाहिए, ताकि यह पेशा अधिक समावेशी और सुलभ हो सके।

पटना हाईकोर्ट की एडवोकेट मंजू शर्मा ने न्यायिक ढांचे की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “वर्तमान न्यायिक अधिसंरचना पूरी तरह से पुरुषों के लिए डिजाइन की गई लगती है। पहली पीढ़ी की महिला वकील, विशेष रूप से हाशिये के समुदायों से, बार रूम में एक सीट तक पाने के लिए संघर्ष करती हैं। हमें दलित, आदिवासी और अन्य हाशिये के समुदायों के वकीलों के लिए सरकारी पैनलों में आरक्षण सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि पेशा अधिक समावेशी बने।”

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