तमिलनाडू : अनुसंधान में खामी पुलिस की, किशोर ने भोगी सजा! एक्टिविस्ट बोले- भरपाई कौन करेगा ?

तीन साल पहले 52 साल की महिला का रेप और मर्डर का दोषी माना था , दुबारा जांच में 15 वर्षीय किशोर निकला बेगुनाह
तमिलनाडू : अनुसंधान में खामी पुलिस की, किशोर ने भोगी सजा! एक्टिविस्ट बोले- भरपाई कौन करेगा ?
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चेन्नई- तमिलनाडू से हाल ही में उजागर हुई एक रिपोर्ट पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठा रही है. यहां 15 साल के एक किशोर की जिंदगी पुलिस की लापरवाही और जांच में हुई खामियों के कारण तहस-नहस हो गई। 2021 में एक आदिवासी महिला के कथित बलात्कार और हत्या के आरोप में डीटेन इस किशोर को दो साल बाद निर्दोष करार दिया गया। लेकिन इन दो सालों में वह सुधार गृह की यातना और समाज के अपमान का शिकार हुआ।

अक्टूबर 2021 में, चेंगलपट्टू जिले में 52 वर्षीय आदिवासी महिला अपने घर से लापता हो गई थीं। दो दिन बाद, उनका शव घर से आधा किलोमीटर दूर मिला। महिला के साथ आखिरी बार देखे जाने की जानकारी के आधार पर पुलिस ने 15 वर्षीय किशोर को पकड़ लिया ।

पुलिस का आरोप था कि किशोर ने महिला का बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी। इसके बाद उसे न्यायिक प्रक्रिया के तहत बाल सुधार गृह भेज दिया गया।

"लास्ट सीन थ्योरी" का दुरुपयोग

द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने "लास्ट सीन थ्योरी" के आधार पर किशोर को आरोपी बनाया। यह थ्योरी कहती है कि अगर किसी पीड़ित के साथ आखिरी बार देखे गए व्यक्ति अपराध की स्थिति स्पष्ट नहीं कर पाते, तो उन्हें दोषी माना जा सकता है।

किशोर की गिरफ्तारी ने न केवल उसकी आजादी छीन ली बल्कि उसके परिवार को भी सामाजिक अपमान झेलना पड़ा।

हाल ही में, पुलिस के नॉर्थ जोन के आईजी आसरा गर्ग ने मामले की पुनः जांच के आदेश दिए। उन्हें एक जागरूक व्यक्ति ने बताया कि लड़के का महिला की मौत से कोई संबंध नहीं है। इसके बाद पोस्टमॉर्टम और पैथोलॉजी रिपोर्ट्स का दोबारा विश्लेषण किया गया।

जांच में पाया गया कि महिला की मौत आंतरिक अंगों के फेल और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण हुई थी। इस पर पुलिस ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की और किशोर को बरी कर दिया गया।

बाल यौन शोषण के मामलों पर काम करने वाली संस्थान तुलिर सेंटर फॉर प्रिवेंशन एंड हीलिंग ऑफ़ चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज की विद्या रेड्डी ने मीडिया रिपोर्ट्स से जानकारी मिलने के बाद मामले को फोलो किया. रेड्डी कहती हैं , " बिना ठोस सबूत के किसी 15 साल के बच्चे पर आरोप लगाना गलत था। उसकी उम्र और महिला की उम्र के अंतर को देखते हुए यह मामला पहले से ही संदेहास्पद था।"

विद्या ने बताया, "POCSO एक्ट, 2012 के अनुसार, 18 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति 'अयौन' (asexual) माना जाता है। किसी नाबालिग के साथ यौन गतिविधि को अपराध माना जाता है। "

उन्होंने यह भी कहा, "अगर इस मामले में पीड़िता एक 15 वर्षीय लड़की और आरोपी एक 50 वर्षीय पुरुष होता, तो लोग इसे स्पष्ट रूप से 'बलात्कारी का उचित दंड' मानते।"

उन्होंने कहा, "अगर महिला जीवित होती, तो उसे किशोर पर दुर्व्यवहार करने वाली माना जाता। यह कानून का दोहरा मापदंड दिखाता है।" ह्यूमन राइट्स के पैरवीकार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह मामला न्यायिक व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है। विद्या ने कहा, "अगर जांच शुरू से सही दिशा में होती, तो बच्चे को दो साल की जेल और अपमान से नहीं गुजरना पड़ता। पुलिस ने जल्दबाजी में मामला दर्ज किया और मासूम की जिंदगी खराब कर दी।"

इस मामले ने सवाल उठाए हैं कि क्या इस बच्चे को हुई मानसिक, सामाजिक और शारीरिक क्षति का मुआवजा मिलेगा। एक्टिविस्ट सवाल उठा रहे हैं कि "क्या किसी के निर्दोष साबित होने से उसका जीवन फिर से पहले जैसा हो सकता है?"

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