पति की 1.5 लाख रुपए सैलरी फिर भी पत्नी को नहीं देना चाहता था 15 हज़ार रुपए! बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनाया करारा फैसला

पति की आय में भारी अंतर को देखते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को सम्मानजनक जीवन के लिए भरण-पोषण राशि जरूरी
Bombay High Court Upholds ₹15,000 Interim Maintenance for Working Wife, Rejects Husband’s Plea
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी को 15,000 रुपए अंतरिम भरण-पोषण देने के आदेश को बरकरार रखा, पति की याचिका खारिज
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मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने बांद्रा फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी को 15,000 रुपए प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति मंजुषा देशपांडे ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि पत्नी के पास रोजगार होने के बावजूद उसे वैसा ही जीवनस्तर बनाए रखने के लिए आर्थिक सहायता का हक है जैसा वह अपने ससुराल में जीती थी।

यह दंपती 28 नवंबर 2012 को विवाह बंधन में बंधा था लेकिन मई 2015 से अलग रह रहा है। पति ने 7 जून 2019 को तलाक की अर्जी दी थी, जबकि पत्नी ने 29 सितंबर 2021 को अंतरिम भरण-पोषण की मांग की। 24 अगस्त 2023 को फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया कि पति 1 अक्टूबर 2022 से तलाक याचिका के निपटारे तक 15,000 रुपए प्रति माह दे—जिसे पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पति का तर्क और अदालत की टिप्पणी

पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी एक सहायक अध्यापक के तौर पर 21,820 रुपए मासिक वेतन कमाती है और ट्यूशन व एफडी के ब्याज से भी आमदनी होती है। उसने कहा कि उसकी खुद की नेट सैलरी 57,935 रुपए है जो परिवार (विशेषकर बुजुर्ग माता-पिता) के भरण-पोषण में खर्च हो जाती है और उसके पास कोई अतिरिक्त आय नहीं बचती।

हालांकि, हाईकोर्ट ने पति के वित्तीय विवरण में गंभीर विरोधाभास पाए। पत्नी द्वारा प्रस्तुत वेतन पर्चियों से पता चला कि 2022 और 2024 में पति की मासिक आय 66,000 रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपए से अधिक तक रही। साथ ही अदालत ने यह भी नोट किया कि पति के पिता को 28,000 रुपए प्रति माह पेंशन मिलती है, जिससे यह दावा कमजोर पड़ गया कि वे पूरी तरह आर्थिक रूप से बेटे पर निर्भर हैं।

18 जून को सुनाया गया यह फैसला 26 जून 2025 को सार्वजनिक हुआ। न्यायमूर्ति देशपांडे ने दोनों पक्षों की आय में स्पष्ट असमानता पर जोर दिया और कहा कि पत्नी की सीमित आमदनी स्वतंत्र जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है और उसे अपने माता-पिता और भाई के साथ रहना पड़ रहा है।

आदेश में कहा गया, “हालांकि पत्नी कमा रही है, पर यह आमदनी उसके अपने भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि उसे रोज़ लंबी दूरी तय कर नौकरी करनी पड़ती है। वह अपने माता-पिता के घर में रह रही है, जहां वह अनिश्चितकाल तक नहीं रह सकती। अपनी मामूली आय के कारण वह अपने भाई के घर में माता-पिता के साथ रहने को मजबूर है, जिससे सभी को असुविधा और कठिनाई हो रही है।”

सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार

न्यायमूर्ति देशपांडे ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य पत्नी को सम्मानपूर्वक वही जीवनस्तर देना है जो वह विवाह के दौरान जीती थी, भले ही वह स्वयं कार्यरत हो।

न्यायमूर्ति देशपांडे ने कहा, “पति की आय पत्नी की तुलना में कहीं अधिक है और उस पर कोई विशेष वित्तीय जिम्मेदारी भी नहीं है। मान भी लें कि उसे अपने और अपने माता-पिता के लिए कुछ खर्च करने ही होंगे, तो भी उसके पास इतनी राशि शेष रहती है कि वह पत्नी को फैमिली कोर्ट के आदेशानुसार सहायता दे सके। केवल इसलिए कि पत्नी कमा रही है, वह अपने matrimonial home के जीवनस्तर जैसी मदद से वंचित नहीं की जा सकती।”

अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित 15,000 रुपए का भरण-पोषण न तो असंगत है और न ही अत्यधिक।

अदालत ने कहा, “मुझे फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया भरण-पोषण राशि का आदेश अनुचित या अत्यधिक नहीं लगता। अतः फैमिली कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में, यह रिट याचिका खारिज की जाती है। रूल समाप्त किया जाता है।”

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