नई दिल्ली- भारत में बौद्ध धर्म के अनुयायी 12 मई को बुद्ध पूर्णिमा मनाने जा रहे हैं। इस अवसर पर बौद्ध समुदाय डॉ. भीमराव अंबेडकर के संदेशों को याद करेगा। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म समानता और न्याय का मार्ग है। आज भी लाखों दलित और पिछड़े वर्ग के लोग बाबासाहेब के रास्ते पर चलकर बौद्ध धर्म अपना रहे हैं।
इस अवसर पर एक ऐतिहासिक घटना का संस्मरण यहाँ प्रासंगिक होगा — 14 अक्टूबर 1956 को डॉ. अंबेडकर ने नागपुर में 7 लाख से अधिक अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया था। यह दुनिया के इतिहास में धर्मांतरण की सबसे बड़ी घटना थी। इस ऐतिहासिक फैसले की तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता सी.एन. अन्नादुरई (अन्ना) ने खुलकर सराहना की थी। अन्ना जैसे नेताओं ने भी इस ऐतिहासिक धर्मांतरण को सामाजिक क्रांति का हिस्सा माना।
अम्बेडकरवादी लेखक और पेशे से दंत चिकित्सक डॉ एसपीवीए साईराम ने 'द कल्चर केफे' में प्रकाशित एक लेख में दोनों महान नेताओं के बीच नजदीकियों को उजागर किया। अन्नादुरई और बाबा साहब की मुलाकात 1940 के दौरान हुई थी। 6 जनवरी 1940 को डॉ. अंबेडकर ने पेरियार और उनके साथियों के लिए एक चाय पार्टी आयोजित की थी। अगले दिन, धारावी में एक जनसभा हुई, जहां अंबेडकर ने अंग्रेजी में और पेरियार ने तमिल में भाषण दिया। अन्नादुरई ने अंबेडकर के भाषण का तमिल में और पेरियार के भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिससे दोनों नेताओं के विचार लोगों तक पहुंचे।
21 अक्टूबर 1956 को 'द्रविड़ नाडु' अखबार में अन्नादुरई ने लिखा —
"आज बौद्ध धर्म ने एक करुणामय कार्य किया है — उन लोगों को अपने आंचल में समेटा जो हिंदू धर्म से थक चुके हैं और उसे छोड़ना चाहते हैं। इतिहास में ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई: एक ही दिन, एक जगह, तीन लाख से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने एक धर्म छोड़कर दूसरा अपनाया। एक पत्रकार ने इसे देखकर लिखा कि दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं हुआ और उसने इस जनसमूर को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया, जो शहर से बाहर दस लाख वर्ग फीट के मैदान में एकत्र हुए थे..."
अन्नादुरई ने आगे लिखा —
"डॉ. अंबेडकर हिंदू धर्म के गहरे जानकार हैं और उन्होंने इसका गंभीर अध्ययन किया है। यह कहना सही होगा कि कोई भी हिंदू ग्रंथ, चाहे वह वैदिक हो या आगम, ऐसा नहीं है जिसे उन्होंने न पढ़ा हो। कानून में उनका ज्ञान विशाल है और उनकी कानूनी समझ ने भारतीय संविधान बनाने में मदद की। ऐसे विद्वान व्यक्ति का हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाना एक अनोखा निर्णय है..."
अन्नादुरई ने हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था पर कठोर टिप्पणी करते हुए लिखा —
"अस्पृश्यता, दूर रखने की प्रथा, जन्म के आधार पर ऊंच-नीच... अगर यह सोने का महल भी हो, तो यह एक ऐसी इमारत है जिसमें जहरीले विषाणु भरे हैं। डॉ. अंबेडकर जैसे लोग इस व्यवस्था में नहीं रह सकते। वे एक दिन इसे छोड़कर जाएंगे ही। डॉ. अंबेडकर का धर्मांतरण हर बुद्धिमान व्यक्ति की प्रशंसा का हकदार है।"
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.