राजस्थान: नौकरी बचाने के लिए 3 माह की बच्ची को नहर में फेंकने के लिए क्यों मजबूर हुआ दंपति?

संविदाकर्मी शिक्षक ने पत्नी के साथ मिलकर अपने ही कलेजे के टुकड़े की जान ली। राष्ट्रीय बालिका दिवस से एक दिन पहले दिया घटना को अंजाम। सरकार व समाज के लिए साढ़े 3 महीने की अंशु छोड़ गई कई सवाल।
आरोपी दंपति
आरोपी दंपतिफोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

जयपुर। राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day) से ठीक एक दिन पहले रविवार को राजस्थान के बीकानेर जिले में साढ़े तीन महीने की मासूम बेटी को नहर में फेंकने की घटना सामने आई है। हादसे में बालिका की मौत के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर माता-पिता को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है।

पुलिस की प्रारम्भिक जांच में आरोपी पिता ने संविदा की नौकरी बचाने के लिए अपनी पत्नी के साथ साजिश रच कर कलेजे के टुकड़े (साढ़े 3 महीने की बेटी) अंशु (चौथी संतान) को इंदिरागांधी नहर में फेंक दिया। इस घटना के सामने आने के बाद हर कोई स्तब्ध है। बेरहम दंपति के इस अमानवीय कृत्य की हर तरफ आलोचना हो रही है।

संविदा कर्मी द्वारा स्थायीकरण नहीं होने के डर में बेटी की हत्या कर देने की घटना ने पर्याप्त रोजगार का दावा करने वाले सरकारी सिस्टम को भी ललकारा है। क्या राजस्थान में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई कि कोई संविदा की नौकरी को बचाए रखने के लिए अपनी ही संतान की जान लेने पर उतर आए। यदि ऐसा है तो हमारा यूं बालिका दिवस मनाना भी बेमानी होगा। पुलिस हत्या की जांच के बाद दोषियों को सजा दिलाकर आम घटनाओं की तरह फाइल बन्द कर देगी। लेकिन ऐसी घटनाओं पर लगाम कब लगेगा, यह सवाल हमेशा बना रहेगा।

आरोपी दंपति
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अल्प संख्यक सेवा संघ प्रदेश अध्यक्ष जुल्फिकार खान ने इस घटना को अमानवीय कृत्य बताते हुए कड़े शब्दो मे निंदा की है। खान ने द मूकनायक से बात करते हुए सवाल उठाया है कि, "आखिर राजस्थान में यह स्थिति क्यों बनी कि कोई संविदा की नौकरी बचाने के लिए अपनी संतान की जान लेने पर मजबूर हुआ। नैतिकता के आधार पर इस मासूम की हत्या का जिम्मेदार कौन होगा। यह भी तय किया जाए।"

खान आगे कहते हैं कि, "यह घटना सामान्य कतई नहीं हो सकती। इसके पीछे छिपे कारणों को ढूंढ कर निवारण करना होगा। राज्य में रोजगार की स्थिति बताने के लिए भी यह घटना काफी है। सरकार की संविदा कर्मियों के प्रति संवेदनशीलता भी उजागर करती है। यहां किस तरह नियमितीकरण के नाम पर संविदा कर्मियों का शोषण हो रहा है। सरकार को चाहिए ऐसी घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए संविदा कर्मियों के नियमितीकरण के नियमों में सरलता लाए।"

हत्या का मामला दर्ज, दंपति गिरफ्तार

राजस्थान के बीकानेर जिले के छतरगढ़ थाना क्षेत्र के भारतमाला रोड पर इंदिरागांधी नहर की वितरिका में साढ़े 3 महीने की बेटी को फेंक कर हत्या करने के मामले में पुलिस ने पिता झंवरलाल मेघवाल व पत्नी गीता देवी निवासी दियातरा के खिलाफ हत्या के आरोप में मामला दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस आरोपी दंपति से बेटी की हत्या के कारणों की कड़ाई से पूछताछ कर रही है। मामले की जांच कर रहे खाजूवाला पुलिस उपाधीक्षक विनोद कुमार ने बताया कि दम्पति को न्यायालय में पेश कर पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर लेंगे।

यूं दिया घटना को अंजाम

आरोपी झंवलाल की पहल से ही दो बेटियां व एक बेटा था। बड़ी बेटी को अपने भाई को गोद दे चुका था। अंशु चौथी संतान के रूप में पैदा हुई।

अंशु की पैदाइश के समय से ही पत्नी गीता देवी चक 4 सीएचडी गांव में अपने मायके में रह रही थी। चौथी बेटी की किसी को भनक नहीं लगे इसे लेकर दंपति चिंता में रहते थे। उन्हें नौकरी खोने का हमेशा डर रहता था।

आरोपी दंपति
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पुलिस के अनुसार रविवार को झंवरलाल अपने ससुराल गया। वापस बाइक से पत्नी गीता देवी के साथ अपने गांव दियातरा आ रहा था। दंपति के साथ दो साल का बेटा व साढ़े तीन महीने की बेटी भी थी।

छतरगढ़ - बीकानेर भारतमाला सड़क मार्ग पर इंदिरा गांधी मुख्य नहर पुल क्रॉस करते हुए झंवरलाल की पत्नी गीता देवी ने साढ़े तीन महीने की बेटी को नहर में फेंक दिया। जबकि 2 साल का बेटा बाइक पर रहा। इन्हें नहर में बच्चा फेंकते ग्रामीणों ने देख लिया। ग्रामीण चिल्लाए तब तक दंपति भाग निकले। ग्रामीणों ने नहर में छलांग लगा कर बच्ची को बाहर निकाला तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।

घटना की छतरगढ़ पुलिस को सूचना दी गई। सूचना पर पुलिस ने नाकाबंदी कर बाइक सवार दंपति की तलाश की। इस दौरान दोनों भागते हुए पुलिस के हत्थे चढ़ गए। इस पर छतरगढ़ पुलिस ने पूछताछ के बाद जुर्म कबूलने पर हत्या के आरोप में दोनों पर मामला दर्ज कर लिया।

नौकरी में नियमित नहीं होने के डर में ले ली बेटी की जान

मामले की जांच कर रहे वृत्ताधिकारी विनोद कुमार कहते हैं कि, "झंवरलाल मेघवाल निवासी दियातरा ग्राम पंचायत चांडासर के राजकीय विद्यालय में संविदा कर्मी के रूप में विद्यालय सहायक के पद पर कार्य कर रहा है। प्रारम्भिक पूछताछ में आरोपी ने बताया कि दिसंबर महीने में नौकरी के लिए दो संतान होने सम्बन्धी उसने एक झूंठा शपथ पत्र दिया था। जबकि उसके पहले से 4 बच्चे थे।"

पुलिस के अनुसार, झंवरलाल मेघवाल को आशंका थी कि यदि किसी को 4 संतान होने की भनक लगी तो शिकायत होने पर वह नियमित नहीं हो पायेगा, और बेरोजगार हो जाएगा। अपनी नौकरी बचाने के लिए ही उसने दूधमूही मासूम बेटी की जान ले ली।

ऐसे कैसे अपनी संतान की जान ले सकता है कोई!

जांच कर रही पुलिस इस कृत्य पर अचंभित है। जांच कर रहे वृत्ताधिकारी विनोद कुमार कहते हैं कि, "नौकरी के लिए कैसे कोई अपनी ही संतान की जान ले सकता है। एक मां कैसे अपने कलेजे के टुकड़े की हत्या के लिए निर्दयी हो गई। आखिर उस पर ऐसा क्या दबाव था। गर्भवती होने पर क्यों वह मायके जाकर रहने लगी। साढ़े तीन महीने पहले जन्मी मासूम को आखिर अब क्यों मारा गया। इन पहलुओं पर भी पुलिस जांच कर रही है।"

अमानवीय कृत्य- ऐपवा

"निःसंदेह यह घटना निहायत अमानवीय कृत्य है किंतु इससे भी ज्यादा एक व्यवस्था गत प्रश्न भी है। बेरोजगारी का आलम, भविष्य के प्रति असुरक्षा का डर व्यक्ति को कैसे असंवेदनशील बना देता है। एक शिक्षक जब इस तरह की बर्बरता पूर्ण घटना को अंजाम देता है तो हम किस तरह की शिक्षा देते हैं, यह भी देखा जा सकता है। यह घटना बताती है कि जब सामाजिक व्यवस्था में व्यक्ति के जीने और सुरक्षित होने का सवाल बड़ा बन जाता है तो उसके नैतिक मूल्य और तथाकथित संस्कारवान बनने का होहल्ला महज ढकोसला बनकर रह जाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सेवा नियम बनाने वालों पर ये नियम लागू नहीं होते हैं। हमें समय रहते इस तरह की पाशविक मनोवृत्ति के बनने के व्यवस्थागत जनविरोधी कुरूपताओं को भी चिन्हित करने की ईमानदार कोशिश करनी होगी," डॉ सुधा चौधरी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने कहा।

मनोविश्लेषक की राय

"ना केवल बालिका दिवस अपितु किसी भी दिन किसी भी बालक को नहर में फेंक में जैसा जघन्य अपराध निसंदेह अक्षम्य है। संविदा कर्मी द्वारा किए गए इस कुकृत्य के पीछे नौकरी बचाने की चाहत प्रबल है ही बल्कि यह समाज की परवरिश में छुपी कालीमा को भी परिलक्षित करती है। इतनी आधुनिकता के बावजूद भी लड़के और लड़की में भेद को नकारा नहीं जा सकता। यह एक मूल प्रश्न है कि क्या इस जगह बालिका ना होकर बालक होता तो भी यही करती। निश्चित रूप से नहीं। आज भी समाज व समुदाय को लिंगभेद पर संवेदनशील करने की जरूरत है, साथ ही सरकार द्वारा कड़े कानून बनाकर उनका पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो", डॉ गायत्री तिवारी, प्रोफेसर, मानव विकास एवं, पारिवारिक अध्ययन विभाग, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर राजस्थान, ने कहा।

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