अब शव रखकर नहीं लड़ सकेंगे न्याय की लड़ाई, राजस्थान में पास हुआ देश का पहला ऐसा विधेयक

शव रखकर प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ 'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' विधेयक में हैं सजा के प्रावधान
अब शव रखकर नहीं लड़ सकेंगे न्याय की लड़ाई, राजस्थान में पास हुआ देश का पहला ऐसा विधेयक

जयपुर। राजस्थान में अब न्याय पाने के लिए कोई भी परिजन या अन्य व्यक्ति शव के साथ धरना-प्रदशर्न नहीं कर सकेगा। ऐसा करने पर जुर्माना या सजा भी भुगतना पड़ सकता है। राजस्थान में शवों के साथ धरना-प्रदर्शन के बढ़ते चलन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार नया कानून लेकर आई है। राजस्थान सरकार ने गुरुवार को सदन में चर्चा के बाद 'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' ध्वनिमत से पास करवा लिया। अब राजस्थान मृतक शरीरों के सम्मान के लिए कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।

कानून के अमल में आने के बाद बलात्कार, हत्या जैसे जघन्य अपराध के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर शव के साथ प्रदर्शन करने या फिर शव लेकर समय पर अंतिम संस्कार नहीं करने वाले परिजनों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' कानून बनाने के पीछे सरकार का मानना है कि राजस्थान में शवों के साथ धरना-प्रदर्शन की प्रवृति बढ़ी है। अब कानून अमल में आने के बाद मृतक शरीरों की गरिमा सुनिश्चित करते हुए धरना-प्रदर्शन में शवों के दुरुपयोग पर अंकुश लग सकेगा। इस विधेयक से लावारिस शवों की डीएनए और जेनेटिक प्रोफाइलिंग कर डाटा संरक्षित भी किया जा सकेगा। ताकि भविष्य में उनकी पहचान हो सके।

क्यों पड़ी जरूरत?

राज्य सरकार के 'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' (Rajasthan Dead Body Respect Bill 2023) सदन के पटल पर लाने के बाद चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री शांतिधारीवाल ने जवाब में कहा कि मृत शवों को रख कर धरना-प्रदर्शन की प्रवृति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्ष 2014 से 2018 तक इस तरह की 82, और वर्ष 2019 से अब तक 306 घटनाएं हुई है। वर्तमान में ऐसी घटनाओं पर प्रभावी रूप से रोक लगाने के लिए विधेयक में प्रावधान नहीं है। इस लिए यह विधेयक लाया गया है।

शव नहीं लेने पर परिजन को एक वर्ष तक की सजा का प्रावधान

'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' के तहत परिजन द्वारा मृत व्यक्ति का शव नहीं लेने की स्थिति में एक वर्ष तक की सजा व जुर्माना का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार परिजन से भिन्न अन्य व्यक्ति द्वारा शव का विरोध के लिए इस्तेमाल करने पर दो वर्ष तक की सजा व जुर्माना का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार परिजन से भिन्न अन्य व्यक्ति द्वारा शव का विरोध के लिए इस्तेमाल करने पर छह माह से पांच वर्ष तक की सजा एवं जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान भी किया गया है।

24 घंटे में कार्यपालक मजिस्ट्रेट करवाएगा अंतिम संस्कार

मृत शरीर के सम्मान के लिए लाए गए नए विधेयक के प्रावधान के तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट को मृतक का अंतिम संस्कार 24 घंटे में कराने की शक्ति प्रदान की गई है। यह अवधी विशेष परिस्थितियों में बढ़ाई भी जा सकेगी। साथ ही परिजन द्वारा शव का अंतिम संस्कार नहीं करने की स्थिति में लोक प्राधिकारी द्वारा अंतिम संस्कार किया जा सकेगा।

सदन में विधेयक पर चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री शांतिधारीवाल ने जवाब में कहा कि सिविल रिट पिटीशन आश्रय अधिकार अभियान बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया में उच्चतम न्यायालय ने मृत शरीरों के शिष्ट पूर्वक दफन या अंतिम संस्कार के निर्देश प्रदान किए थे। इन निर्देशों की पालना में इस विधेयक में लावारिस शवों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करना और सूचना की गोपनीयता रखने जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं। इससे लावारिस शवों का रिकार्ड संरक्षित हो सकेगा, और उनकी भविष्य में पहचान भी हो सकेगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2023 तक प्रदेश में 3216 लावारिस शव मिले हैं।

'राजस्थान मृत शरीर का सम्मान विधेयक 2023' सदन पास होने के बाद द मूकनायक ने विधेयक को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों और कानूनविदों से चर्चा कर उनकी राय जानी। इस दौरान दलित शोषण मुक्ति मंच के प्रदेश संयोजक एडवोकेट किशन मेघवाल ने कहा कि बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों में भी समय पर न्याय नहीं मिलने की स्थिति में राजस्थान का दलित, आदिवासी और शोषित वर्ग शव के साथ सड़कों पर आकर न्याय की लड़ाई लड़ता था। नया विधेयक का मतलब है कि अब आप न्याय के लिए सड़क पर भी नहीं लड़ पाएंगे। राजस्थान में न्याय के लिए संघर्ष के रास्ते बंद किए जा रहे हैं।

भीम आर्मी राजस्थान प्रदेश महासचिव एडवोकेट हरिश मेहरड़ा ने दू मूकनायक से बात करते हुए कहा कि यह गहलोत सरकार का तानाशाही फरमान है। हत्या जैसे मामलों को दबाने की सरकार की साजिश है।

उन्होंने कहा कि हत्या, बलात्कार या प्रताड़ना के बाद सुसाइड जैसे संगीन मामलों में राजनीतिक पहुंच वाले अपराधी शामिल होने पर ऐसे लोगों की गिरफ्तारी तक नहीं होती है। पुलिस भी ऐसे लोगों की गिरफ्तारी से गुरेज करती है। ऐसे में सामाजिक संगठनों के लोग सड़कों पर उतरकर न्याय की लड़ाई लड़ते हैं। शव रखा होने पर समय पर न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है। अब गहलोत सरकार ऐसा बिल पारित कर गरीब, शोषित, पीड़ितों के साथ बड़ा अन्याय कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चैतन बैरवा ने कहा कि प्रदत्त मूलभूत अधिकार का हनन मानते इस विधेयक को न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।

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