राजस्थान विजन दस्तावेज 2030: सपनों के राजस्थान में क्या मछुआरों के लिए जगह नहीं?

विशेषज्ञों के मुताबिक राजस्थान में मछली उत्पादन में राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा ग्रोथ के बावजूद मछुआरों की आजीविका और मत्स्य संवर्धन के लिए पर्याप्त प्रयास नही किये जा रहे हैं जबकि आगरा से हावड़ा तक राजस्थान के मछलियों की मांग है. यह सर्वविदित है कि राज्य मे मछलीपालन हजारों लोगों की, विशेष रूप से अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग और जनजाति समुदाय के लिएआजीविका का मुख्य स्रोत है. मछली पालन और मछली पकड़ने संबधी कार्यों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की खासी भागीदारी है.
जयसमंद झील में रोहू, कतला, मृगल, लाची, सिंघाड़ा, मुरमोला जैसी मछलियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं जिनकी बाहर राज्यों में बहुत डिमांड है.
जयसमंद झील में रोहू, कतला, मृगल, लाची, सिंघाड़ा, मुरमोला जैसी मछलियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं जिनकी बाहर राज्यों में बहुत डिमांड है.

उदयपुर: राजस्थान को देश में अग्रणी राज्य बनाने के लिए मुख्यमंत्री की पहल पर शुरू किए गए राजस्थान मिशन-2030 के तहत आमंत्रित सुझावों के आधार पर तैयार किए गए विजन दस्तावेज का गुरूवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जयपुर में राज्य स्तरीय समारोह में विमोचन किया। हजारों लोग सपनों के राजस्थान का खाका जारी करने के साक्षी बने।

कृषि, पशुपालन, डेयरी , शिक्षा, स्वास्थ्य अदि सभी क्षेत्रों में विजन डॉक्यूमेंट के लिए प्रदेश की सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक प्रगति आदि से संबधित 3 करोड़ से अधिक सुझाव लोगों से प्राप्त हुए थे जिसके आधार पर विजन दस्तावेज जारी किया गया.

महाराणा प्रताप कृषि एव प्रोद्योगिकी विवि ( एमपीयूएटी) उदयपुर के मात्स्यिकी महाविद्यालय के पूर्व डीन डॉ. एलएल शर्मा एवं डॉ सुबोध शर्मा ने फिशरीज प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग के जरिये मछलीपालन से आजीविका अर्जित करने वाले हजारों मछुआरों के लिए आय बढ़ाने संबधी सुझाव प्रेषित किये थे. हालाँकि एक्सपर्ट्स कहते हैं कि विजन डोक्युमेंट में फिशरीज के लिए कोई ठोस कार्ययोजना शामिल नही की गयी है. गौरतलब है कि राजस्थान की मछलियां दिल्ली, आगरा, असम , पंजाब से लेकर कोलकाता तक के बाजारों में बिकती हैं. खासकर दक्षिणी राजस्थान के जयसमन्द झील की मछलियों की बाहर राज्यों में बहुत डिमांड है.

फारेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा वर्ष 2009 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में करीब 16 हजार लोग मछली पालन और मछली पकड़ने संबधी कार्य से आजीविका अर्जित करते हैं. एक रफ अनुमान के अनुसार 6 वर्ग के लोग मछली पालन से जुड़े कार्य करते हैं, इनमे पहला वर्ग जयसमंद लेक, माही और कड़ाना बेक वाटर्स क्षेत्र के निवासी, दूसरा पारपरिक मछुआरा समुदाय में मध्य प्रदेश से आये भोई और उत्तर प्रदेश की मल्लाह कम्युनिटी जो भरतपुर में बस गए हैं. तीसरा वर्ग मत्स्य ठेकेदारों का है जो मछली बेचने का व्यापार करते हैं. चौथा वर्ग कम संख्या में ऐसे कृषक समुदाय का है जो किसी संस्थागत ट्रेनिग अथवा स्वय सीख कर अपने ज्ञान से मत्स्य उत्पादन पालन करते हैं. पांचवा वर्ग यूपी, बिहार और ओडीशा से आये पारपरिक मछली पालक हैं जिन्हें मत्स्य ठेकेदार राजस्थान में कार्य के लिए लाये हैं और छठा वर्ग फिशरीज से जुडी एक्टिविटीज, मार्केटिंग, ट्रांसपोर्ट, सप्लाई से जुड़े लोगों का है जिनका गुजरा मछली पालन पर टिका हुआ है. रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया था कि 88,277 टन का टारगेट फिश प्रोडक्शन होने पर 65, 957 लोगों को आजीविका प्राप्त हो सकती है.

राजस्थान जनजाति क्षेत्र विकास सहकारी संघ द्वारा संचालित जयसमंद स्थित फिश फार्म
राजस्थान जनजाति क्षेत्र विकास सहकारी संघ द्वारा संचालित जयसमंद स्थित फिश फार्म चित्र- प्रो. एल.एल. शर्मा

जलीय संसाधनों से समृद्ध राज्य है राजस्थान

राजस्थान विशाल जलीय संसाधनों से समृद्ध राज्य है,  राज्य में मत्स्य पालन के लिए लघु और वृहद जलाशय, सिंचाई बांध, और ग्रामीण तालाबों को मिला कर कुल उपलब्ध जल संसाधनों की संख्या 15838 हैं।  नदियों और नहरों (30,000 हेक्टेयर) और जल जमाव क्षेत्र (80,000 हेक्टेयर) के अलावा 4,23,765 हेक्टेयर क्षेत्र  जलाशयों के पूर्ण टैंक स्तर (एफटीएल) पर  मछली पालन के लिये उपलब्ध है।  इसके अतिरिक्त 1,80,000 हेक्टेयर नमक प्रभावित सेम का क्षेत्र भी इस कार्य के लिए उपलब्ध है।  

राज्य ने पिछले तीन दशकों के दौरान अंतर्देशीय मत्स्य पालन में लगातार वृद्धि की है।  मछली पालन का क्षेत्र और मछली उत्पादन दोनों में वृद्धि हुई है।  कथित तौर पर, राज्य का मछली उत्पादन 90,000 मीट्रिक टन के सर्वकालिक उच्च आंकड़े को छू गया है, जिससे पिछले वित्त वर्ष में 75 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व प्राप्त हुआ है।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश के मत्स्य पालन क्षेत्र ने 8% की सराहनीय वृद्धि देखी है। राज्य में वर्ष 1980-81 में 14000 मे. टन से 2010-11 में 28200 मी. टन मत्स्य उत्पादन मिला है। राष्ट्रीय औसत 8% की तुलना में 2000-01 और 2010-11 के बीच वार्षिक वृद्धि दर 12.6% देखी गई है। कुल मछली उत्पादन का लगभग 60% जलाशयों से और शेष टैंक और तालाबों से आता है। जबकि बड़े जलाशयों की उत्पादकता 55 किग्रा/हेक्टेयर है जो कि राष्ट्रीय औसत से ऊपर है। दूसरी ओर छोटे जल निकायों की उत्पादकता 1.2 टन/हेक्टेयर/वर्ष है जो कि राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। मछली उत्पादन की दृष्टि से राज्य का देश में 18वाँ स्थान है। 

सांकेतिक चित्र -मत्स्य पालन विभाग, भारत सरकार
सांकेतिक चित्र -मत्स्य पालन विभाग, भारत सरकार Picasa

द मूकनायक से बातचीत में डॉ. एलएल शर्मा ने बताया कि राज्य में लगभग 150 प्रकार की मछली प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कुछ विदेशी मछलियों को भी चाहे- अन चाहे तरीके से हमारे राज्य के जल निकायों में प्रवेश मिल गया है। दूसरी ओर दिनों दिन बढ़ते प्रदूषण और अन्य मानवजनित कारकों के कारण झीलों और जलाशयों पर तनाव बढ़ रहा है, इसलिए, मत्स्य पालन को बनाए रखने के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह सर्वविदित ही है कि राज्य मे मछली पालन  हजारों लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है विशेष रूप से अपेक्षाकृत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग और जनजाति समुदाय के लिए। 

एक्सपर्ट्स की राय: राजस्थान मे मत्स्यकी संसाधनों के संरक्षण, चुनौतियों और विकास हेतु निम्न सुझावों पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है -

  •  राज्य मछली की घोषणा: अन्य राज्यों की तर्ज पर मछली पालन को बढ़ावा देने की दिशा मे इंडेमिक (स्थानिक) मत्स्य प्रजाति लेबिओ राजस्थानीकस अथवा किसी अन्य प्रचलित मत्स्य प्रजाति को राज्य मछली घोषित किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इसी श्रृंखला मे राजस्थान में ऊँट पालतू राज्य पशु है, चिंकरा राज्य पशु, गोडावन राज्य पक्षी, खेजड़ी राज्य वृक्ष और रोहिडा को राज्य पुष्प का दर्जा प्राप्त है। इस हेतु राजस्थान मत्स्य विभाग द्वारा सुझाव मांगे जा सकते हैं। 

  • आरएमओएल: राजस्थान में मत्स्य पालन विकास पर 2010 में राजस्थान आजीविका मिशन (आरएमओएल) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को वैज्ञानिक मत्स्य पालन और जलीय कृषि प्रबंधन के लिए पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट का हिंदी मे अनुवाद कर मत्स्य विभाग की वेब साइट पर आम जन के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए। 

  • लिम्नोलॉजी और मत्स्य पालन पर उत्कृष्टता केंद्र: राज्य और विशेषतः उदयपुर और इसके आसपास कई झीलें हैं। सतही जल पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव के साथ, मछली, मत्स्य पालन और लिम्नोलॉजिकल कारकों की नियमित निगरानी की आवश्यकता है जिसके लिए लिम्नोलॉजी और मत्स्य पालन पर उत्कृष्टता केंद्र  आईसीएआर, नई दिल्ली के वित्तीय सहयोग से मत्स्य पालन महाविद्यालय, एमपीयूएटी, उदयपुर में स्थापित किया जाना चाहिए।

  •  मछली पर डाटा बेस:  आम आदमी को बहुमूल्य मछली संपदा से परिचित कराने के लिए राजस्थान के जलक्षेत्रों की मछली, मत्स्य पालन और जलीय उत्पादकता पर अध्यतन जानकारी के साथ डेटाबेस तैयार और प्रकाशित किया जाना चाहिए।  अनुदान सहायता के आधार पर इस उद्देश्य के लिए मत्स्य पालन महाविद्यालय की विशेषज्ञता का उपयोग किया जा सकता है।

  •  जलाशय 'सोए हुए दानव': जलाशयों की जलीय उत्पादन क्षमता का अधिकतम दोहन करने के लिए उपलब्ध मछली खाद्य संसाधनों के आधार पर प्रत्येक जलाशय के लिए उपलब्ध प्राकृतिक भोजन (प्लैंक्टन, बेन्थोस और पेरीफाइटन) के आधार पर भंडारण (प्रजातियों के प्रकार और उनके अनुपात, प्रति हेक्टेयर बीज की संख्या) के लिए उपयुक्त रणनीति तैयार की जानी चाहिए। इससे मछली उत्पादन को आशातीत बढ़ावा मिलेगा। 

  •  मछली का मूल्य संवर्धन: मछली की डिब्बाबंदी, प्रसंस्करण और अन्य मछली उत्पादों जैसे मूल्य संवर्धन के तरीकों को अपनाकर मछली किसानों को अधिक लाभ पहुँचने के उद्देश्य से आवश्यक बुनियादी ढांचा और प्रशिक्षण सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए।

  • फीड मिल: राज्य मे बढ़ते मछली पालन और झींगा पालन को देखते हुए कम से कम 2-3 मछली फ़ीड मिलें निजी क्षेत्र में स्थापित की जानी चाहिए। 

  •  राज्य मत्स्य पालन विभाग को मजबूत बनाना: राज्य मत्स्य पालन विभाग में वर्ष 1982 में 1350 कर्मचारियों के पद थे जो बाद में आरएमओएल रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009-10 तक घटकर 536 हो गए और वर्तमान में कुल मिलाकर सिर्फ 350 कर्मचारियों के कंधे पर राज्य के मत्स्य विकास का पूरा भार है।  राज्य के मत्स्य संसाधनों के वैज्ञानिक और प्रभावी प्रबंधन और अन्य राज्यों के समान नई मत्स्य पालन प्रौद्योगिकियों के प्रभावी अनुकूलन के लिए, राजस्थान के सभी 50 जिलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित तरीके से कर्मचारियों की संख्या को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।  इस प्रकार, प्रत्येक संभाग मे 1 सहायक निदेशक, हर जिले में: 1- एफडीओ, 2 एएफडीओ और हर तहसील स्तर पर 2 मत्स्य निरीक्षक और 4 मछुआरे होने चाहिए।

  • मत्स्य पालन शिक्षा: वर्ष 2010 में राज्य सरकार द्वारा  मत्स्यकी महाविद्यालय की स्थापना की गई थी। तब से इस कॉलेज मे एमपीयूएटी के सक्षम निकायों द्वारा अनुमोदित बीएफएससी, एमएफएससी और पीएचडी पाठ्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। ये सभी पाठ्यक्रम आई सी ए आर द्वारा मेडिकल या इंजीनियरिंग की तरह प्रोफेशनल घोषित किये गए हैं। हालाँकि, 13 वर्षों के बाद भी इस कॉलेज में आईसीएआर की सिफारिशों के अनुसार संकाय पदों को राज्य सरकार द्वारा मंजूरी नहीं दी गई है, जो शिक्षण कार्यक्रमों को गंभीर रूप से आहत कर रही है। 

मत्स्यकी कालेज : आर्थिक रूप से कमजोर छात्र पाते हैं शिक्षा लेकिन नौकरी के अवसर कम

मत्स्यकी कॉलेज उदयपुर के छात्र मुख्य रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं और उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा मे अपना परचम लहराया है, जिससे वे प्रदेश के मत्स्य पालन विभाग, अन्य राज्यों के मत्स्य विभागों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और अन्य निजी क्षेत्र के संगठनों में उच्च पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।  चूंकि वर्तमान समय मे इस महाविद्यालय के संकाय सदस्य एक-एक करके सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के लिए मत्स्य पालन महाविद्यालय, एमपीयूएटी, उदयपुर में नए संकाय सदस्यों की नियुक्ति तुरंत ही की जाए।  इससे प्रदेश के एक मात्र मात्स्यकी महाविद्यालय को जीवंत रखने, आदिवासी बहुल क्षेत्र की प्रशिक्षण और अनुसंधान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनुसंधान कार्यक्रमों को भी नई गति मिलेगी।

 एफडीओ और एएफडीओ और मत्स्य निरीक्षकों की योग्यता: जब 2010 में मत्स्य पालन महाविद्यालय खोला गया था, तो राजस्थान विधानसभा में माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा घोषणा (बजट भाषण 2010-11 बिंदु 131) की गई थी: "राज्य में मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में प्रशिक्षित तथा योग्य तकनीकी मानव संसाधन की कमी है। राज्य में जलकृषि एवं मत्स्यकी उद्योग को विकसित करने की दृष्टि से आगामी वर्ष से कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर के अंतर्गत 4 करोड़ रुपये की लागत से एक Fisheries College स्थापित किया जायेगा."

इसके बाद, इस कॉलेज से छात्रों के कई बैच उत्तीर्ण हुए हैं।  यह बताना प्रासंगिक है कि इन छात्रों के लिए सरकारी क्षेत्रों में नौकरी के अवसर केवल राज्य के मत्स्य पालन विभाग में ही हैं और बहुत सीमित हैं।  भारत के कई अन्य राज्यों में मत्स्य पालन विभागों द्वारा एफडीओ, एएफडीओ और मत्स्य पालन निरीक्षकों के लिए आवश्यक योग्यताएं केवल बीएफएससी/एमएफएससी डिग्री हैं क्योंकि ये कथित तौर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम हैं और साधारण बीएससी और बीएफएससी के बीच और इसी तरह एमएससी जूलॉजी और एमएफएससी के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती है। बीएससी पाठ्यक्रम (शुद्ध विज्ञान) में और एमएससी जूलॉजी में लागू मत्स्य पालन पाठ्यक्रम सामग्री केवल 10 से 15% है। इसके विपरीत राजस्थान के मत्स्य विभाग मे विभिन्न पदों पर चयन हेतु, शुद्ध विज्ञान (BSc)और एमएससी जूलॉजी-मत्स्य और मत्स्य पालन (MSc: Zoology, Fish and Fisheries) की योग्यता को प्रोफेशनल योग्यता प्राप्त BFSc और MFSc डिग्री धारी छात्रों के समकक्ष रखा जाता है। जो कि मत्स्य पालन नौकरियों के लिए बीएफएससी और एमएफएससी छात्रों के साथ घोर अन्याय है।

मछली पालन को बढ़ावा मिले तो करने होंगे कई काम

डॉ. सुबोध शर्मा कहते हैं कि राज्य में प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत कई अन्य सहायक क्षेत्रों को शीघ्र ही मजबूत करने की आवश्यकता है। इसके लिए मत्स्य सेवा केंद्र स्थापित करना - मछुआरों और मछली किसानों की सेवा के लिए स्थानीय लाभार्थियों द्वारा संचालित वन-स्टॉप शॉप विस्तार केंद्रो की स्थापना, जलीय पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, जलीय रेफरल प्रयोगशालाएं, रोग निदान और गुणवत्ता परीक्षण मोबाइल प्रयोगशालाएं, मछली कियोस्क, बर्फ संयंत्र/शीत भंडार केंद्र, मछली चारा मिल /संयंत्र, मछली परिवहन सुविधाएं, उद्यम इकाइयों को मंजूरी सम्मिलित हैं।  इसके अतिरिक्त, एनएफडीबी द्वारा राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, आईसीएआर मत्स्य पालन संस्थानों के सहयोग से प्रशिक्षण कार्यक्रम, विश्व मत्स्य पालन दिवस, मछली महोत्सव आदि जैसी कई सामुदायिक आउटरीच गतिविधियां व्यापक स्तर पर आयोजित की जा सकती हैं जिससे मछली पालन को राज्य में भी बढ़ावा दिया जा सके। 

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