राजस्थान के लोक कलाकार: मान-सम्मान के साथ पहचान के भी 'तलबगार'

मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना 2023 के तहत देश में पहली बार लोक कलाकारों और कला का प्रदर्शन करने वाले समुदायों को 100-दिन के रोज़गार की गारंटी मिली है।
लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना की लांचिंग पर जयपुर में उत्सव मनाते कलाकार
लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना की लांचिंग पर जयपुर में उत्सव मनाते कलाकार

जयपुर. राजस्थान की लोक संस्कृति, गीत-नृत्य, कलाकारों की पूरी दुनिया मे धूम और अपनी अलग पहचान है। लंगा-मांगणियार, कालबेलिया, हेला ख्याल, कुचामनी ख्याल, कच्ची घोड़ी, चकरी नृत्य, भवई, चरी, तेरह ताली , नट, बहरूपिये, फड़, कठपुतली..! 

हर साल लाखों की संख्या में विदेशी मेहमान राजस्थान के रेतीले धोरों और यहाँ की रंग बिरंगी कला संस्कृति , रहन सहन, खान पान औएर रीति रिवाजों को देखने के लिए खींचे चले आते हैं और राजस्थान सरकार के पर्यटन पंच लाइन ‘ पधारो म्हारे देस’ का मूल आधार भी प्रांत की कला-संस्कृति है जिसके वाहक ये लोक कलाकार हैं जो अधिकांश वंचित और पिछड़े वर्गों से ताल्लुक रखते हैं। लंगा मांगणियार, कालबेलिया भवई आदि लोक गीत-नृत्य कला विधाओं के कई कलाकार तो अमरीका, रशिया, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, पेरिस आदि कई देशों में प्रस्तुतियां दे चुके हैं लेकिन वतन वापसी पर उन्हें वहीं अपने कच्चे मकानों , केलूपोश  झोपड़ियों में लौटना पड़ता है। 

वहीं मेकअप, वेशभूषा और भाव भंगिमाओं से बरबस लोगों को हंसाने रुलाने वाले बहरूपिये, खेल तमाशे दिखाकर मन बहलाने वाले नट-मदारी, नाच गाना करने वाले बंजारा समुदाय का तो हाल बेहाल है। घुमंतू समुदाय के ये रहवासी बुनियादी सुविधाओं से भी दूर हैं। 

अधिकांश लोक कलाकार वंचित समुदाय और पिछड़े वर्गों से ताल्लुक रखते हैं।
अधिकांश लोक कलाकार वंचित समुदाय और पिछड़े वर्गों से ताल्लुक रखते हैं।

आज़ादी के 76 वर्षों बाद अब जाकर राज्य सरकार ने राजस्थान की मिट्टी से जुड़े और इसकी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे रखने वाले इन लोक कलाकारों की सुध ली है। 

मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना 2023 की शुरुआत की गई है जिसमें राज्य और देश में पहली बार लोक कलाकारों और कला का प्रदर्शन करने वाले समुदायों को 100-दिन के रोज़गार की गारंटी मिली है। लोक कलाकारों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, उनके लिए सम्मानजनक आजीविका प्रदान करने और उनके कला रूपों और संस्कृति के संरक्षण में योगदान देने वाला राजस्थान पहला राज्य बना है। इस अवसर पर प्रदेश भर से करीब 200 कलाकार जयपुर एकत्र हुए जहाँ अलग अलग स्थानों पर फ़्लैश मॉब आयोजित किये गये , लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हुए कलाकारों ने अपनी हुनर का प्रदर्शन किया .

लोक कलाकारों के अधिकारों और इनके सम्मान-पहचान के लिए तीन दशक से भी ज्यादा समय से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ताओं और कलाकारों से द मूकनायक ने बात की और इन समुदायों की आर्थिक, सामाजिक परिस्थितियों को जानने का प्रयास किया.

कलाकारों को मान सम्मान से जीवन यापन का अधिकार- निखिल डे

लोक कलाकारों के अधिकारों , लोक कला और संस्कृति के संवर्धन संरक्षण के लिए कई दशकों से प्रयासरत संस्थान सूचना एव रोजगार का अधिकार अभियान ( एसआरए) के निखिल डे बताते हैं कि देश में यह पहली बार हुआ है कि सरकार ने लोक कलाकारों को रोजगार गारंटी से जोड़ा है.

राजस्थान में कालबेलिया, भील सहित आदिवसी जातियों के बहुत से ऐसे समुदाय है जो समाज की मुख्य धार से दूर है, उन सभी समुदाय के नागरिको को सभ्य और सम्मानजनक आजीविका प्रदान करने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा इस योजना को आरंभ किया गया है। राज्य के सभी वंचित वर्ग के नागरिक लोक कला के प्रदर्शन के जरिए रोजगार प्राप्त कर अपराधों की ओर अग्रसर होने से सुरक्षित होंगे, इसके साथ ही इस योजना के माध्यम से समाज में भेदभाव खत्म होगा जिससे सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से हजारों परिवार मजबूत और सशक्त बनेगे। सूचना एवं रोजगार अभियान संगठन द्वारा लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना के लिए पिछले कई सालों तक मुहीम चलाई गई थी, अब हाल ही में इस योजना को मुख्यमंत्री के द्वारा आरंभ कर दिया गया है।  

पहली बार प्रदेश में लोक गीत संगीत, नाटक और नृत्य करने वाले कलाकारों का डाटा बेस तैयार होगा. इन  कलाकारों को ‘कलाकार कार्ड मिलेंगे ताकि इनकी पहचान कायम हो. ये अपने पंचायत और आसपास के इलाकों में लोक उत्सवों एव जश्न के मौकों पर अपनी कला दिखा सकेंगे जिसके लिए इन्हें 500 रूपये प्रति कार्यक्रम पारिश्रमिक मिलेगा. मनरेगा, रोजगार गारंटी कानून , सूचना के अधिकार सरीखे प्रभावी क़ानूनों की पैरवीकार सामाजिक कार्यकर्त्ता अरुणा राय के साथ आंदोलनों में सहयोगी रहे निखिल कहते हैं कि यह केवल एक शुरुआत है जिससे कलाकारों को मान सम्मान के साथ समाज में जीवन यापन का अधिकार मिलेगा , वे यजमानों पर आश्रित नही रहेंगे बल्कि उनकी अपनी पहचान बतौर एक कलाकार स्थापित होगी.

कलाकारों को प्रस्तुति के लिए  निर्देश देते हुए खड़ताल आर्टिस्ट गाजी खान
कलाकारों को प्रस्तुति के लिए निर्देश देते हुए खड़ताल आर्टिस्ट गाजी खान

मुझे तो मिली पहचान लेकिन मेरा समुदाय उपेक्षित – गाजी खान बरना

जैसलमेर के इंटरनेशनल आर्टिस्ट गाजी खान बरना से द मूकनायक ने बात की. लोक गायक व खड़ताल वादक उस्ताद गाजी खान बरना कई देशों में राजस्थानी लोक संगीत की स्वर लहरिया बिखेर चुके है व बॉलीवुड में भी प्रस्तुति दे चुके है। गाजी खान बरना ने लोक संगीत संस्थान के माध्यम में कई कलाकारों को नि:शुल्क प्रशिक्षण देकर उनके भविष्य को संवारा है। उनकी डेजर्ट शिंफनी पूरी दुनिया में मशहूर है।

गाजी ने बताया कि मांगणियार जाति का यह पेशेवर संगीत उन्हें उनके पुरखों से मिला। खड़ताल व संगीत उन्होंने पिता चूगे खान से सीखा। उन्होंने कहा कि उनके पुरखे राजा-महाराजाओं व मारवाड़ी घरानों में होने वाले सभी आयोजनों में नौ रसों के यहां संगीत गाते-बजाते थे। जब वे छोटे  थे, तो रूपायण संस्थान की कोमल कोठारी ने उनका गाना सुना और लगातार उनकी हौंसला अफजाई से आज वे  इस मुकाम पर हैं . गाजी ने कहा कि दुनिया में साढ़े तीन तरह के वाद्य यंत्र है। इसमें पहले ठोक कर बजाने वाले, दूसरे फूंक मारकर बजाने वाले और तीसरे मरोड़ कर बजाए जाने वाले, जबकि खड़ताल आधा वाद्य है। शीशम की लकड़ी के चार टुकड़ों से बनने वाले इस वाद्य यंत्र में सुर नहीं होता, केवल ताल ही होता है। अन्य वाद्य यंत्रों व गायन के साथ यह लोक संगीत में चार चांद लगा देता है।

बहरूपिये कलाकारों का हर स्वांग लोगों को लुभाता है
बहरूपिये कलाकारों का हर स्वांग लोगों को लुभाता है

उन्होंने बताया कि राजस्थान के इस मांगणियार संगीत को विदेशों में खूब पसन्द किया जा रहा है, वहीं राजस्थान में धीरे-धीरे लोक संगीत कम हो रहा है। बालीवुड के संगीत में लोक संगीत गुम सा होता जा रहा है। इस पर सरकार की ओर से कला को बचाने व कलाकारों को बढ़ाने के प्रयास नहीं होने से नई पीढ़ी की इसमें रूचि भी कम हो रही है। सरकार को कला को बढ़ावा देने के लिए कलाकारों को सुविधाएं देनी चाहिए। “ मैंने इसे पहचान देने के लिए पहचान लोक संगीत संस्थान भी बनाया। लोक कला को बचाने के लिए हर प्रयास किया, लेकिन बजट के अभाव में बंद करना पड़ा. गाजी कहते हैं कि खड़ताल शीशम की लकड़ी से बनता है लेकिन अब शीशम ही नही रहे तो वाद्य यन्त्र की क्वालिटी में वो बात नही रही. गाजी कहते हैं कि लंगा मांगणियार समुदाय को बढ़ावा और उचित मौका नही मिलने के कारण समुदाय के कई कलाकार इस कला से विमुख होकर दुसरे काम जैसे ड्राईवर , कारपेंटर , खेती  बाड़ी आदि करने लगे हैं . समुदाय के लोगों के हालात अच्छे नही हैं लेकिन अब सरकार ने लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना शुरू की है तो इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे .

घुमंतू जीवन यापन करने वाले समुदाय के कलाकार कठिन हालातों में जीते हैं.
घुमंतू जीवन यापन करने वाले समुदाय के कलाकार कठिन हालातों में जीते हैं.

बंजारों के पास मुर्दों को जलाने- दफनाने की भी जगह नहीं- पारस

बंजारा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चितौडगढ़ के सामाजिक कार्यकर्त्ता पारस बंजारा ने द मूक नायक को बताया कि आजीविका की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह पलायन कर घुमते रहने वाला घुमंतू समुदाय राजस्थान का एक जाना पहचाना समुदाय है. इनकी अलग ही भाषा, पहनावा, रिती- रिवाज, परंपरागत व्यवसाय, आजीविका के साधन है तथा ये एक विशिष्ठ सांस्कृतिक पहचान के साथ जीवन यापन करते है. पूर्व मे इन समुदायों ने अंग्रेजों द्वारा लाए गए आपराधिक जन जाति अधिनियम के तहत जन्मजात जरायम पेशा होने का कलंक झेला है।  सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सन 1964 के नोटिफिकेशन के अनुसार राज्य में इस वर्ग में 32 जातियां आती है. जो अपनी अपनी पहचान के साथ राज्य के अलग अलग हिस्सों में बामुश्किल गुजर-बसर कर रही है. कालांतर में ये समुदाय घुमंतू जीवन यापन करता था परन्तु परिवहन के साधन चलने तथा कई प्रकार की सरकारी नीतियों व कानूनी प्रतिबन्ध के चलते अपना पारम्पारिक आजीविका के संसाधनों को छोड़ अब ये धीरे धीरे बसने लगे है. 

 पारस बताते हैं कि वर्तमान में ये समुदाय कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहा है जैसे आज भी कई लोगों के पास पहचान के दस्तावेज, जाति प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र आदि नहीं बने है जिसके चलते ये लोग सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाते है.

आवास एवं पट्टा- कालांतर में घुमक्कड़ जीवन यापन करते रहे किन्तु समय परिस्थितियों के चलते इन्हें निर्जन स्थानों पर गाँवों या शहरों में जहाँ सरकारी भूमि उपलब्ध थी वहां अपना कच्चा- पक्का झोपड़ा या घर बना लिया. ज्यादातर ये जमीनें चारागाह, सवायचक, आबादी की है लेकिन इनके पास इस भूमि का कोई सरकारी दस्तावेज या पट्टा नहीं होने से आये दिन इन्हें प्रशासन व ग्रामीण विस्थापित करते रहते है. इन समुदायों को आवास एवं आवास की भूमि का पट्टे की सख्त आवश्यकता है. साथ ही ये पशु रखते है इसलिए इन्हे पशु बाडे की भी जरुरत है

 घुमंतू समुदायों के पास शमशान की भूमि नहीं होने से इन्हे मुर्दों को जलाने अथवा दफनाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं. इनके बच्चों का शिक्षा से व्यापक रूप से जुडाव नहीं हो पाया है. साथ ही इनकी बस्तियों में आंगनवाडी, मिनी आंगनवाडी भी नहीं होती है.

इनकी बस्तियां आम तौर पर मुख्य गाँवों से दूर बसी होती है तो जो भी विकास की योजना चलती है वे मुख्य गाँवों तक ही सिमित रहती है, इनके मजरे/ खेड़े/ ढाणी आदि में नहीं पहुँच पाती है अतः इनकी बस्तियों को राजस्व गाँव घोषित किया जाना बेहद जरुरी है.

 कई घुमंतू समुदायों को कई प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है किन्तु अनुसूचित जाति, जन जाति अत्याचार निवारण कानून की तरह इन्हे कोई कानूनी सरंक्षण नहीं है.

इनका परम्परागत व्यवसाय एवं आजीविका के साधन ख़त्म हो रहे है तथा इनकी पहचान को सुरक्षित रखने वाली सांस्कृतिक विरासत भी उचित देखभाल एवं सरकारी सरंक्षण के अभाव में ख़त्म हो रहीं है.

योजना की शुरुआत करते मुख्मंत्री अशोक गहलोत
योजना की शुरुआत करते मुख्मंत्री अशोक गहलोत

लोक कलाकार प्रोत्साहन स्कीम नहीं बल्कि कानून बने - श्वेता राव

पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान में लोक कलाकारों के जीवन को काफी करीब से अध्ययन कर रही युवा सामाजिक कार्यकर्ता श्वेता राव ने द मूकनायक को इनके जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया. श्वेता बताती हैं कि इनमे से कई इंटरनेशनल परफोरमर्स हैं लेकिन इनकी कोलोनीज में देखें तो पीने के पानी का पाइप लाइन नहीं, बच्चे स्कूल नही जाते. इनके मकानों के कागजात नहीं. श्वेता के अनुसार राजस्थान में कई ऐसे नायब और विरले वाद्य यन्त्र हैं जो सरक्षण के अभाव में लुप्त होने के कगार पर हैं. सुरिन्दा , नड व कमाईचा आदि ऐसे कई वाद्य यन्त्र हैं जो आजादी से पहले राजस्थान के जेसलमेर बाड़मेर इलाकों में कारीगरों द्वारा बनांये जाते थे लेकिन बटवारे के बाद वो इलाके और कारीगर पाकिस्तान में चले गये और कलाकार यहीं रह गये. इन वाद्य यंत्रों को बनाने के लिए ख़ास लकड़ी का प्रयोग होता है जो अब सहजता से नही नही मिल पाती है. वाद्य यंत्र नही रहे तो इन्हें बजाने वाले लोक कलाकारों की आजीविका पर भी संकट की स्थिति बनी और धीरे धीरे ये अपनी कला से दूर होने लगे हैं.

श्वेता बताती हैं सुरिंदा के कुछ ही वाद्य यंत्र बचे हुए हैं. “ यही समय है की सरकार प्रदेश में विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके वाद्य तंत्रों औएर कला से विमुख होते कलाकारों की सुध लें. सरकार से हमारी मांग है कि लोक कलाकार प्रोत्साहन स्कीम को एक कानून के रूप में लागू किया जाए. एक परिवार को 100 दिन काम की गारंटी की बजाय प्रत्येक कलाकार को सौ दिन का काम मिलना निर्धारित किया जाए ताकि इनके परिवार को मान समान के साथ जीवन यापन करने का अवसर मिल सके. लोक कलाकारों की नई पीढ़ी तैयार करने व इन कलाओं के सरक्षण के लिए आईआईसीडी सरीखी संस्थान स्थापित की जाए जहाँ खयातिनाम लोक कलाकार अपना ज्ञान और अनुभव नई पीढ़ी को बाँट सके . “

गिनती भर रह गये कुचामनी खयाल के फनकार- महबूब अली

कुचामानी ख्याल के ख्यातिनाम कलाकार महबूब अली से भी द  मूकनायक ने इस विधा के लोक कलाकारों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को जानने का प्रयास किया. महबूब अली बताते हैं कि नागौर के छोटे से नगर कुचामन से निकली इस विधा का मंचन/तमाशा करने वाले  सैकड़ों कलाकार थे, लेकिन अब बामुश्किल 25-30 रह गए हैं . भीलवाड़ा, अजमेर, पाली और सीकर आदि जगह इसके अलग अलग रूप प्रचलित हैं. 56 वर्षीय महबूब बचपन में अपने पिता से साथ रहते हुए ख्याल करना सीखे और इनके पिता ने अपने पिता से यह कला सीखी लेकिन आज महबूब के बड़े बेटे ने पारिवारिक विरासत को आगे बढाने की बजाय कुवैत जाकर नौकरी की राह चुनी. महबूब कहते हैं उनके समुदाय में आज भी बच्चे स्कूल नही जाते , उच्च शिक्षा तो दूर की कौड़ी है. गाँवों में तमाशा स्वांग देखने दिखाने का सिलसिला भी लगभग खत्म हो चूका है. कलाकारों के पास काम नही होता तो वे रोजी रोटी एनी जरिये अपनाने को विवश हो जाते हैं. महबूब कहते हैं , “ मेरे बचपन में मुझे याद हा हम पशु मेलों, उत्सवों में गाँवों में जाया करते थे. टेंट और स्टेज बनाकर तमाशा करते थे और ख्याल का मंचन करते थे,महिलाओं का पात्र भी पुरुष ही करते थे. तब रूपया दो रूपया टिकट लगता था . सरकार को इस प्रकार के मंच देने चाहिए ताकि मिटटी से जुड़े इन कलाकारों को काम मिले और वे सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन पोषण कर सके.”

राजस्थान सरकार द्वारा शुरू की गयी लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना को वे सराहनीय कदम  मानते हैं लेकिन वे बताते हैं कि रजिस्ट्रेशन के बाद अभी भी कुचाम्नी ख्याल के कई कलाकारों को वाद्य यंत्रों की खरीद के लिए डे पांच हजार रूपये प्राप्त नही हुए हैं.

वनवासी का रूप धारण किये एक कलाकार
वनवासी का रूप धारण किये एक कलाकार

यह है मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना 2023

राज्य के लोक कलाकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा  लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना को आरंभ किया गया है। राज्य के ऐसे कलाकार जो अपना जीवन यापन कला प्रदर्शन करके कर रहे है, उन सभी कलाकारों को इस योजना के माध्यम से सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। राज्य के सभी पात्र नागरिको को लोक वाद्य यंत्र खरीदने हेतु इस योजना के माध्यम से 5,000 रुपए की आर्थिक सहायता राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी।

इस योजना के माध्यम से प्राप्त लाभ की राशि से सभी हितग्राही नागरिक कलाकृति के यंत्र खरीदने में सक्षम हो सकेंगे। Mukhyamantri Lok Kalakar Protsahan Yojana के माध्यम से प्रदान की जाने वाली लाभ की राशि को राज्य सरकार द्वारा डीबीटी के माध्यम से हितग्राही नागरिक के बैंक खाते में भेजा जाएगा, इस योजना के माध्यम से सभी लाभार्थी नागरिको की आय में वृद्धि हो सकेगी। इस योजना का लाभ प्राप्त करने के इच्छुक कलाकार नागरिक को कम से कम 15 से 20 मिनट का वीडियो अपनी कला का प्रदर्शन करने हेतु बनाना होगा।

कलाकारों को 100 दिन का रोजगार मिलेगा 

राजस्थान सरकार द्वारा कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए राजकीय उत्सव और सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार एवं शिक्षण संस्थानों में अवसर प्रदान किए जाएंगे। राज्य के लोक कलाकारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु इस योजना के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाएगा, इसके माध्यम से 100 दिन के स्टेज शो करने का अवसर राज्य के कलाकारों को प्राप्त होगा। 

राज्य के सभी हितग्राही कलाकारों की आर्थिक स्थिति में इस योजना के माध्यम से बेहतरी होगी, इसके माध्यम से लोक संस्कृति और परंपराओं को प्रोत्साहन मिलेगा।  राजस्थान संगीत नाटक अकादमी को नोडल एजेंसी का कार्यभार इस योजना के संचालन हेतु सरकार द्वारा प्रदान किया गया है।  सभी पंजीकृत कलाकारों को सरकार द्वारा पहचान कार्ड जारी किया जायेगा.

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