उमर खालिद के जेल में 1000 दिन, आखिर कब मिलेगा न्याय?

उमर खालिद के जेल में 1000 दिन, आखिर कब मिलेगा न्याय?

अकेले उमर ही नहीं खालिद सैफई और आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन भी इस मामले में जेल में बंद है। हज़ार दिनों से जेल में बंद होने के बाद भी मामले की सुनवाई भी अभी शुरू नहीं हुई है।

हमारे देश का संविधान कहता है कि निष्पक्ष सुनवाई सभी का अधिकार है, लेकिन क्या हो रहा है, यह चर्चा का विषय है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र, PHD स्कालर, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र नेता उमर खालिद को जेल में एक हज़ार दिन से ज़्यादा हो चुके हैं। दिल्ली पुलिस ने उन्हें दिल्ली दंगों का मुख्य आरोपी बनाया है लेकिन ट्रायल अभी तक शुरू नहीं हुआ है। अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 12 जून को होनी है। उमर के पिता सायद कासिम रसूल इलियासी का कहना है कि "अब तो न्याय की बात करना भी गुनाह सा लगने लगा है।" 

9 जून को दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में 'डेमोक्रेसी डिसेंट एंड सेंसरशिप'  विषय पर एक प्रेस वार्ता और उमर खालिद के लिए समर्थन सभा बुलाई गई थी। लेकिन दिल्ली पुलिस ने एक सूचना जारी कर इसे रद्द करने की बात कही जिसके बात इस मीटिंग का स्थान बदल कर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया कर दिया गया। 

इस मीटिंग में वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार, राज्य सभा संसद मनोज झा और कई बुद्धिजीवियों का आना तय था। राज्य किस तरह विरोधी आवाज़ को दबाता है इस पर चर्चा होने थी। ऐसा पहली बार नहीं है जब गाँधी शांति प्रतिष्ठान में ऐसी चर्चा हो रही थी। आम तौर पर ऐसे कार्यक्रम वहां होते रहते हैं पर दिल्ली पुलिस ने 8 जून की रात करीब 9 बजे सूचना जारी कर कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्या बताते हुए कार्यक्रम की अनुमति निरस्त करने की जानकारी दी। यह अटपटा सा लगता है। इस कार्यक्रम की जानकारी दिल्ली पुलिस को कई दिनों पहले से थी क्योंकि अनुमति भी दिल्ली पुलिस से ही ली गई थी।

उमर खालिद क्यों हैं जेल के भीतर?

उमर बीते 1000 दिन से जेल में हैं। उन पर आरोप है कि वे दिल्ली दंगों की साजिश में शामिल थे। अकेले उमर ही नहीं खालिद सैफई और आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद भी इस मामले में जेल में बंद है। 1000 दिनों से जेल में बंद होने के बाद भी, मामले की सुनवाई शुरू नहीं हुई है। दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद, खालिद सैफई और ताहिर हुसैन के खिलाफ 17000 पन्नों की चार्जशीट बनाई है जिसमें कहा गया है कि फ़रवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों की साज़िश रची गई थी जिसे और किसी ने नहीं , इन तीनों ने रचा था। इन तीनों पर ही गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (UAPA) लगाया गया है जिसके कारण हज़ार दिन बीत जाने के बाद भी ज़मानत नहीं मिली है।

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दिल्ली दंगों की पूरी कहानी 

देश की संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पास किया, तारीख थी 11 दिसंबर 2019यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बिद्ध, जैन, ईसाई, और पारसी शरणार्थियों को तो भारत की नागरिकता देता था पर मुसलमानों को नहीं। और जब इसे NRC से जोड़ कर देखा जाता तो भारत के अल्प संख्यक समुदाय के बीच असंतोष का भाव बढ़ने लगा। CAA NRC के खिलाफ देश भर में बड़े स्तर पर आंदोलन हुए और लम्बे समय तक वे आंदोलन शांति पूर्ण तरीके से चले भी। इस ही बीच 15 दिसंबर 2019 के दिन दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में भी छात्रों के द्वारा एक प्रदर्शन किया, जो की पुलिस के मुताबिक हिंसक हो गया। पर जब CCTV की फुटेज सामने आई तो साफ़ तौर पर पुलिस हिंसा करती दिख रही थी। जामिया की लाइब्रेरी में घुस कर छात्रों पर पुलिस और अर्ध सैनिक बालों के द्वारा लाठियां चलाई गई, एक छात्र की आँख तक इस हिंसा में फूट गई। प्रदर्शन और तेज़ हुए- दिल्ली की महिलाएं इन प्रदर्शनों में सब से आगे दिखाई दी। जामिया के पास का ही इलाका शाहीन बाग़ CAA NRC प्रोटेस्ट का बड़ा केंद्र बना, हज़ारों की संख्या में लोग शाहीन बाग़ के आंदोलन में शामिल हुए। शाहीन बाग़ की ही तर्ज़ पर दिल्ली भर में प्रदर्शन के हॉट स्पॉट बनने लगे भजनपुरा का चाँद बाग़ और मौजपुर का कर्दमपुरी इलाका भी इन में से एक था जो शाहीन बाग़ न जा सके उन्होंने यहीं आंदोलन को आपने समर्थन दिया।

आंदोलन को चलते तीन महीने से ज़्यादा का वक़्त हो चला था । सरकार के इस आंदोलन को देखने के दो ही तरीके थे या तो नज़र अंदाज़ करो या डिटेन करो। 22-23 फरवरी 2020 की रात थी, कर्दमपूरी से लगभग 2KM  दूर जफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे एक और अनिश्चित कालीन प्रदर्शन शुरू हो गया। यहाँ भी महिलाओं ने ही मोर्चा संभल रखा था। 23 फरवरी की दोपहर भाजपा नेता कपिल मिश्रा आपने समर्थकों से अपील करते हुए एक ट्वीट करते हैं कि सभी मौजपुर चौक पर इकट्ठा हों। DCP की मौजूदगी में कपिल मिश्रा एक भड़काऊ भाषण देते हैं। कहते हैं "ट्रम्प के जाने तक तो हम जा रहे हैं, अगर जल्द ही चाँद बाग़ और जाफ़राबाद खली नहीं हुए तो हम आपकी (दिल्ली पुलिस) की भी नहीं सुनेंगे" ज़ोर का शोर होता है और उन्मादी नारे लगते हैं। शाम होते-होते प्रदर्शनकारियों और सरकार समर्थक गुटों के बीच पत्थर बाज़ी की घटनाओं की खबरें आने लगती हैं। तारीख 23 से 24 फरवरी 2020 बदलते ही चांदबाग से ले कर मौजपुर और मौजपुर से जाफराबाद तक का माहौल दंगे में बदल जाता है। 53 लोग मारे जाते हैं जिस मे से 40 मुसलमान 12 हिन्दू और एक दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल शामिल थे। जो समुदाय जहाँ मज़बूत था वहां उपद्रवी हुआ। पुलिस के मुताबिक जिन माकन और दुकानों को नुक्सान पहुंचाया गया उनमें से 80% मुसलामानों के थे। उस रात पुलिस को करीब 700 से अधिक कॉल लिए गए पर जवाब और मदद कितनों को मिली यह दंगों की तस्वीरें बयान करती हैं।   

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क्या था दिल्ली पुलिस का पक्ष?

दिल्ली पुलिस के मुताबिक उमर खालिद, खालिद सैफई और ताहिर हुसैन ने ही दिल्ली दंगों की साजिश रची थी। पर इस इल्ज़ाम का आधार क्या था?

पुलिस ने यह इल्ज़ाम दो आधार पर लगाए। पहला द ट्रम्प एंगल- दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगे के करीब डेढ़ हफ्ते बाद 6 मार्च 2020 को एक FIR लिखी और कहा की दंगे पहले से बनाई गई रणनीति के तहत करवाए गए थे। 24 फरवरी को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल ट्रम्प को दिल्ली आना था और भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने के लिए यह दंगे करवाए गए। एक मीटिंग के बारे में भी बताया गया जो की 8 जनवरी 2020 को शाहीन बाग़  में हुई थी जिस मे केवल उमर खालिद, खालिद सैफई और ताहिर हुसैन मौजूद थे। एक व्यक्ति की बयान को आधार बना कर यह आरोप लगे गया जिसने मई 2020 में दिए आपने बयान में कहा कि "मैंने इन तीनों (उमर खालिद, खालिद सैफई और ताहिर हुसैन) को शाहीन बाग़ में एक बिल्डिंग में जाते देखा था मैं बिल्डिंग के बहार था" फिर सितम्बर 2020 में दिए आपने बयान में उसने कहा कि "मैं भी बिल्डिंग में गया और मेने 24 फरवरी को ट्रम्प के आने पर दिल्ली बम ब्लास्ट करवाने का प्लान सुन लिया" एक ही घटना के बारे में दो अलग-अलग बयान जिन्हें सत्यापित करने का कोई ज़रिया मौजूद नहीं है।

दिल्ली पुलिस का दूसरा आधार, उमर खालिद का भाषण। दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद के 20 मिनट लम्बे भाषण के छोटे से हिस्से को ले कर उसे साक्ष्य की तरह इस्तेमाल किया। भाषण के इस हिस्से में वे कह रहे हैं की “जब 24 फरवरी को ट्रम्प भारत आएंगे तो हम उनको बताएंगे कि भारत की सरकार किस तरीके से भारत को बांटने का काम कर रही है गांधी के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई जा रही है हम तमाम लोग सड़क पर आ जाएंगे । क्या आप हमारे साथ आएंगे?” भाषण के इस हिस्से को सब से पहले BJP IT सेल के अधिक अमित मालवीय ने ट्वीट किया था। 

सबूतों में पाए गए लूप होल?

पुलिस के मुताबिक क्योंकि 24 फरवरी 2020 को डोनल ट्रम्प आपने भारत दौरे पर आ रहे थे इसीलिए भारत को बदनाम करने के लिए दिल्ली दंगों की साज़िश रची गई। 8 जनवरी की मीटिंग भी इसीलिए थी। पर मीडिया रिपोर्ट और पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी की माने तो ट्रम्प की भारत यात्रा की पहली जानकारी 14 जनवरी 2020 को सामने आई थी, तो 8 जनवरी को उमर खालिद को कैसे पता होगा कि 24 फरवरी को ट्रम्प भारत आ रहे हैं। इस तथ्य के जग जाहिर होते ही दिल्ली पुलिस मीटिंग की तारीख बदल कर 16-17 जनवरी की दरमियानी रात बताती है।

दिल्ली पुलिस के भाषण वाले आधार पर भी संदेह उठाया जाता है। जिस भाषण के आधार पर दिल्ली पुलिस उमर पर आरोप लगा रहीं है की वे लोगों को सड़कों पर आने के लिए उकसा रहे थे वह 17 जनवरी की शाम को अमरावती महाराष्ट्र में दिया गया था दिल्ली में नहीं। और उस भाषण के एक अंश को उठा कर अपने तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। उस ही भाषण के 10वें मिनट पर उमर कहते हैं "हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे, अगर वे नफरत फैलाएंगे तो उसका जवाब हम प्यार से देंगे, अगर वे डंडा चलाएंगे तो हम तिरंगा उठाकर लहराएंगे, अगर वह गोलियां चलाएंगे तो हम संविधान को उठाकर अपने हाथ को बुलंद करेंगे, अगर वह जेल में डालेंगे तो हम सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा गाते हुए हंसते-हंसते जेल चले जाएंगे लेकिन इस देश को आप को बर्बाद करने नहीं देंगे" भाषण के अंश को काट कर पूरी बात का मतलब नहीं निकला जा सकता।

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अगर भाषण पर ही कार्रवाई होनी थी तो कलिप मिश्रा कार्रवाई से कैसे बचे हुए हैं, वे जेल के भीतर क्यों नहीं हैं? ऐसा क्यों होता है कि पुलिस एक ओर की भाषणबाजियों को नज़रअंदाज़ कर देती है और दूसरी ओर जेल से बहार नहीं आने देती। भारत की न्याय व्यवस्था में बेल अधिकार है और जेल अपवाद, पर UAPA का कानून इस सिद्धांत और उलट देता है जहाँ जेल में सड़ाया जाना ज़रूरी और बेल अपवाद हो जाती है। हज़ार दिन बीत चुके हैं सवाल पूछने का नतीजा उमर खालिद भुगत रहे हैं।

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