उत्तर प्रदेशः जाति आधारित रैली पर बीजेपी समेत चार पार्टियों को नोटिस, मांगा जवाब

द मूकनायक प्रतिनिधि से अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने कहा- "वोट पाने के लिए जातीय रैलियां करने का एक सबसे बड़ा खामियाजा समाज में जातीय आधार पर गोलबंदी का प्रचलन बढ़ाना है।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ परिसर.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ परिसर.

लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर उत्तर प्रदेश के चार प्रमुख राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किया है. पीठ ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 10 अप्रैल तय की है. ये याचिका जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध से संबंधित है. इधर, मामले में द मूकनायक प्रतिनिधि से कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने कहा कि माननीय न्यायालय बताए क्या समाज से जातियां खत्म हो गई हैं, अगर जातीय खत्म हो गई हैं तो इसका युक्ति-युक्ति जवाब दिया जा सकता है।

10 अप्रैल की तारीख तय

वहीं, सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया कि उसने ऑनलाइन जवाबी हलफनामा दाखिल कर दिया है. हालांकि कोर्ट के रिकॉर्ड पर उक्त हलफनामा नहीं मिला. इस पर कोर्ट ने आयोग को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आखिरी मौका देते हुए मामले की अग्रिम सुनवाई के लिए 10 अप्रैल की तारीख तय की है.10 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई के साथ, सभी की नजरें इलाहाबाद हाईकोर्ट पर होंगी क्योंकि यह इस महत्वपूर्ण मामले पर विचार-विमर्श करेगा. फिलहाल, इसमें शामिल राजनीतिक दलों ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं दिया है.

जातीय रैलियों को लेकर याचिका

यूपी में जातीय आधार पर राजनीतिक रैलियों को लेकर वर्ष 2013 में याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका में राजनीतिक दलों पर ब्राह्मण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि नाम से अंधाधुंध रैलियों पर आपत्ति जताई थी. इस मामले में हाईकोर्ट पहले भी नोटिस जारी कर चुका है. याची के अनुसार कोर्ट ने पूर्व के आदेश में चुनाव आयोग समेत केंद्र और राज्य सरकारों को जातीय रैलियों के विरुद्ध गाइडलाइंस बनाने का आदेश दिया था.

दोबारा भेजा जाए नोटिस

कोर्ट ने पाया कि 11 नवंबर 2022 के आदेश के अनुपालन में भेजी गई नोटिस इन पॉलिटिकल पार्टियों को नहीं मिला है. लिहाजा नई नोटिस भेजा जाए. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली व न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव द्वारा साल 2013 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया.

समाज का होता है विघटन

द मूकनायक प्रतिनिधि से अधिवक्ता मोतीलाल यादव ने कहा- "वोट पाने के लिए जातीय रैलियां करने का एक सबसे बड़ा खामियाजा समाज में जातीय आधार पर गोलबंदी का है। इससे न सिर्फ समाज का विघटन हो रहा है, वहीं जातीय आधार पर चुने जाने के कारण जनप्रतिनिधि भी तटस्थ होकर काम नहीं करते। इसको देखते हुए ही मैंने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी।"

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