भोपाल। कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में मध्यप्रदेश में अपने 71 जिला अध्यक्षों की सूची जारी की है। लेकिन द मूकनायक की पड़ताल से सामने आया है कि इस सूची में समाज के हाशिये पर खड़े वर्गों, ओबीसी, एससी, एसटी और मुस्लिमों को उनकी आबादी के अनुपात में उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी लगातार “जितनी आबादी, उतनी भागीदारी” का नारा देते रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जब कांग्रेस खुद अपने संगठन में इस सिद्धांत का पालन नहीं कर रही है, तो वह इसे देश की राजनीति और सत्ता में कैसे लागू कर पाएगी।
सबसे बड़ा सवाल ओबीसी समाज की हिस्सेदारी को लेकर उठता है। 71 जिला अध्यक्षों की घोषित सूची में ओबीसी वर्ग से केवल 18 जिला अध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि राज्य की आबादी के हिसाब से यह संख्या कम से कम 38 होनी चाहिए थी। साथ ही अनुसूचित जाति (SC) के 8 और अनुसूचित जनजाति (ST) के 10 लोग यानि कुल 18 अध्यक्ष SC-ST के बनाये गए जबकि सांख्य अनुपात लगभग 28 लोगों को मौका दिया जाना चाहिए था। जिसका सीधा अर्थ है, की वंचित और आरक्षित वर्ग को उसके हिस्से का आधा भी प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। यह स्थिति उस वर्ग के लिए निराशाजनक है, जिसकी जनसंख्या मध्यप्रदेश में सबसे बड़ी है और जो चुनावी समीकरणों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है।
मुस्लिम समाज के मामले में यह असमानता और भी अधिक स्पष्ट है। सात की जगह केवल तीन नेताओं को जिला अध्यक्ष बनाया गया। यह स्थिति साफ दिखाती है कि कांग्रेस संगठन ने आबादी के अनुपात में हक़ देने के बजाय अन्य समीकरणों को प्राथमिकता दी।
यह विरोधाभास सीधे तौर पर राहुल गांधी की राजनीति और उनकी छवि पर सवाल खड़ा करता है। राहुल गांधी बार-बार यह कहते हैं कि भारत की राजनीति में हर वर्ग को उसकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। लेकिन उनकी ही पार्टी उनकी इस बात को गंभीरता से नहीं ले रही। क्या उनकी बातें पार्टी संगठन तक पहुँच नहीं पा रही हैं या फिर यह कथनी और करनी का फर्क है? कांग्रेस की यह सूची यह साबित करती है कि राहुल गांधी के दावे केवल भाषणों और नारों तक सीमित हैं, और संगठनात्मक स्तर पर उनका असर नगण्य है।
मध्यप्रदेश की सामाजिक संरचना पर नज़र डालें तो यहाँ ओबीसी की आबादी लगभग 42 प्रतिशत, अनुसूचित जाति की 15.6 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति की 21.1 प्रतिशत है। यानी कुल मिलाकर राज्य की बहुसंख्यक जनता इन वर्गों से आती है। पड़ताल में सामने आया है कि कांग्रेस ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में ओबीसी का प्रतिनिधित्व लगभग 16 प्रतिशत कम, एससी का 4 प्रतिशत कम और एसटी का 7 प्रतिशत कम दिखाई देता है।
द मूकनायक से बात करते हुए ओबीसी समाज के नेताओं ने साफ कहा कि अब उन्हें समझ आ चुका है कि उनके हक़-अधिकार केवल वही दिला सकते हैं जो संविधानवादी सोच रखते हों। उनका कहना है कि कांग्रेस और अन्य बड़ी पार्टियाँ बार-बार भाषणों में सामाजिक न्याय की बातें करती हैं, लेकिन जब संगठनात्मक हिस्सेदारी की बारी आती है तो वही वर्ग दरकिनार कर दिए जाते हैं। कार्यकर्ताओं के मुताबिक आबादी के हिसाब से हक़ दिलाने की ताकत संविधान से आती है और केवल वही नेता और संगठन इस दिशा में गंभीर हो सकते हैं जो संविधान को अपनी राजनीति का आधार मानें।
ओबीसी समाज के वरिष्ठ नेता दामोदर यादव ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि कांग्रेस पार्टी ने जिला अध्यक्षों की सूची में ओबीसी समाज के साथ बड़ा अन्याय किया है। उन्होंने कहा, “प्रदेश की आबादी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ओबीसी वर्ग की है, लेकिन हमें हमारा हक़ नहीं दिया गया। केवल 18 जिला अध्यक्ष ओबीसी बनाए गए, जबकि यह संख्या कम से कम 38 होनी चाहिए थी। राहुल गांधी जी लगातार ‘जितनी आबादी, उतनी भागीदारी’ की बात करते हैं, लेकिन उनकी ही पार्टी इस सिद्धांत को लागू नहीं कर रही। यह स्थिति बेहद निराशाजनक है।”
दामोदर यादव ने आगे कहा कि कांग्रेस को समझना चाहिए कि ओबीसी, एससी, एसटी और मुस्लिम समाज को नज़रअंदाज़ करके कोई भी पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस ने अपने संगठन में आबादी के अनुपात का सम्मान नहीं किया, तो यह नाराज़गी चुनावी नतीजों में साफ दिखाई देगी। यादव का कहना है कि “ओबीसी समाज अब जाग चुका है और वह अपना हक़ संविधान से ही लेगा। हमारी लड़ाई सिर्फ प्रतिनिधित्व की है और इसे कोई भी ताकत रोक नहीं सकती।”
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.