एक ही कानून के तहत गिरफ्तार हुए थे सोरेन और केजरीवाल, फिर पूर्व झारखंड सीएम को क्यों नहीं मिली जमानत?

दोनों ही नेताओं के ख़िलाफ़ प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है. लेकिन अरविंद केजरीवाल अंतरिम ज़मानत लेने में कामयाब रहे और हेमंत सोरेन को बेल नहीं मिल पाई.
अरविन्द केजरीवाल और हेमंत सोरेन
अरविन्द केजरीवाल और हेमंत सोरेन

नई दिल्ली: हेमंत सोरेन को इसी साल 31 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी झारखंड में एक कथित भूमि घोटाले से संबंधित है, जिसमें सोरेन पर अवैध तरीके से जमीन हड़पने का आरोप है। गिरफ्तारी के बाद, हेमंत सोरेन ने इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है और वे इस मामले में झुकेंगे नहीं। हालांकि, गिरफ़्तारी के लगभग चार महीने बाद भी उन्हें अबतक बेल नहीं मिला पाई है. 

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में उनके मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि वो हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए इच्छुक नहीं है. इसके बाद उनके वकील सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि वो अपनी याचिका वापस ले लेंगे. इससे यह स्पष्ट होता है कि हेमंत सोरेन को अभी जेल में ही रहना होगा.

लेकिन लोगों में यह भी सवाल उठ रहे हैं कि चुनावों को देखते हुए इसी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इलेक्शन कैम्पेन के लिए अंतरिम ज़मानत देने का फ़ैसला सुनाया था. 

जबकि, दोनों ही नेताओं के ख़िलाफ़ प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है. लेकिन अरविंद केजरीवाल अंतरिम ज़मानत लेने में कामयाब रहे और हेमंत सोरेन को बेल नहीं मिल पाई. क़ानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, ये स्पष्ट नहीं है कि लोकसभा चुनावों में प्रचार के लिए हेमंत सोरेन को अंतरिम ज़मानत क्यों नहीं दिया गया.

केजरीवाल मामले में क्या हुआ था?

दिल्ली के कथित शराब घोटाला मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने 21 मार्च को अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार किया था. जिसके बाद केजरीवाल ने नियमित ज़मानत के लिए याचिका दायर नहीं की. इसके बजाय उन्होंने कहा कि उनकी गिरफ़्तारी ही अवैध है और इसलिए उन्हें रिहा किया जाना चाहिए.

बीस दिनों में दिल्ली हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की याचिका ख़ारिज कर दी. नौ अप्रैल के इस फ़ैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में केजरीवाल के ख़िलाफ़ करवाई के लिए पर्याप्त सबूत है. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई पूरी की और अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया.

इस बीच, 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को एक जून तक के लिए सशर्त ज़मानत दे दी ताकि वे आम चुनावों में प्रचार कर सकें. सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल से एक जून की मियाद पूरी होने पर दो जून को सरेंडर करने का भी निर्देश दिया है.

अदालत ने उन्हें ज़मानत देने के अपने फ़ैसले में कहा कि अरविंद केजरीवाल एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. उनके ख़िलाफ़ गंभीर आरोप हैं लेकिन वे साबित नहीं हुए हैं. न तो केजरीवाल का कोई आपराधिक अतीत है और ना ही वे समाज के लिए ख़तरा हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "एक बार जब मामला अदालत के विचाराधीन होता है और गिरफ़्तारी की वैधता से जुड़े प्रश्न पर गौर किया जा रहा होता है तो और इसे अधिक समग्रता और उदारवादी नज़रिये से देखा जाना वाजिब है और वो भी तब जब 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव हो रहे हों."

इतना ही नहीं, कोर्ट ने इस फ़ैसले में "आम चुनावों को इस साल की सबसे महत्वपूर्ण घटना" भी बताया. अरविंद केजरीवाल के ज़मानत से रिहा होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने इस केस में अपनी चार्जशीट दायर की जिसमें उन्हें नामजद किया गया है.

सोरेन के मामले में क्या हुआ था? 

प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को 31 जनवरी को गिरफ़्तार किया था. उन पर झारखंड में कथित तौर पर 8.5 एकड़ ज़मीन अवैध रूप से रखने का आरोप है. गिरफ़्तारी के ठीक पहले उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.

वे दो फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. शीर्ष अदालत ने उन्हें पहले झारखंड हाई कोर्ट जाने को कहा. हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन का मामला सुना और 28 फ़रवरी को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया.

दो महीने से अधिक समय तक फ़ैसला सुरक्षित रखने के बाद आख़िरकार झारखंड हाई कोर्ट ने तीन मई को उनकी याचिका ख़ारिज कर दी. हाई कोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में उनके ख़िलाफ़ मामला बनता है. पहली नज़र में हेमंत सोरेन मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल लगते हैं और उनके ख़िलाफ़ काफी सबूत हैं.

इस बीच 30 मार्च को प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेने के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल कर दी. पीएमएलए कोर्ट (प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत बनी विशेष अदालत) ने अप्रैल की शुरुआत में चार्जशीट का संज्ञान लिया. इसके बाद 16 अप्रैल को हेमंत सोरेन ने रांची में पीएमएलए कोर्ट के समक्ष ज़मानत याचिका दायर की. हालांकि उनका बेल पिटिशन ख़ारिज कर दिया गया.

हेमंत सोरेन ने तीन मई को हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और चुनावों के लिए अंतरिम बेल की मांग की. मुख्यतया इन्हीं कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन की याचिका पर सुनवाई नहीं की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हेमंत सोरेन ने इन चीज़ों को लेकर स्पष्टवादिता नहीं दिखलाई है. पहला ये कि चार्जशीट का संज्ञान लिया जा चुका है और उन्होंने ज़मानत के लिए याचिका भी दायर की थी.

बेंच ने कहा, "हमें आपके क्लाइंट से थोड़ी स्पष्टवादिता की उम्मीद थी. उन्हें हमें बताना चाहिए था कि ज़मानत याचिका दायर की गई है."

इस पर कपिल सिब्बल ने बेंच को बताया कि ये वकील की ग़लती थी न कि हेमंत सोरेन. लेकिन सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ. अदालत ने कहा कि हेमंत सोरेन एक साथ एक से अधिक क़ानूनी विकल्पों का सहारा ले रहे थे.

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी अपने एक इलेक्शन कैम्पेन के दौरान भाषण में बोले कि, "दो चीफ मिनिस्टर अरेस्ट हुए, आदिवासी चीफ मिनिस्टर अभी भी अंदर है, अजीब बात है. आदिवासी चीफ मिनिस्टर पहले जेल गया, और आज तक नहीं निकला."

क्या कहते हैं कानूनी जानकर?

बीबीसी के हवाले से सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े कहते हैं कि केजरीवाल की तरह हेमंत सोरेन को भी अंतरिम ज़मानत मिलनी चाहिए थी. उन्होंने कहा, "केजरीवाल को ज़मानत देने का मुख्य कारण था कि आप चुनावों के दौरान एक बड़े खिलाड़ी को बाहर रख कर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं करवा सकते. उस आदेश में भले ही ये साफ़ न लिखा गया हो लेकिन इसके संकेत मिलते हैं. इसी लॉजिक पर उन्हें हेमंत सोरेन को भी ज़मानत दे देनी चाहिए थी, फिर चाहे वो एक सप्ताह के लिए ही प्रचार कर पाते."

हेगड़े कहते हैं कि अलग बेंच ऐसे विषयों पर अलग मत प्रकट कर सकती है. वे कहते हैं, "यहां उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चार्जशीट का संज्ञान तो ले लिया गया है लेकिन उसे (हेमंत सोरेन के द्वारा कोर्ट को) सार्वजनिक नहीं किया गया है. कई अन्य बेंच अंतरिम ज़मानत से इनकार करने के लिए ऐसा तकनीकी रास्ता नहीं अपनातीं."

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